Site icon Youth Ki Awaaz

“भारत के मुसलमानों को तय करना होगा उन्हें मस्जिद चाहिए या तालीम”

6 दिसंबर 1992 से भारतीय मुसलमानों के दिलों पर कुछ ज़ख़्म हैं। उसी दिन संविधान और सुप्रीम कोर्ट की धज्जियां उड़ाकर बाबरी मस्जिद को गिराया गया। और जिन्होंने बाबरी मस्जिद गिराई थी वो मीडिया के कैमरा पर आकर बोलते हैं लेकिन अभी तक उनको कोई सज़ा नहीं मिल सकी। इसका भी दुख है वो बात अलग है।

लेकिन आज हर हिंदू और मुसलमान सिर्फ मंदिर और मस्जिद के लिए उतावले हैं क्या और कोई समस्या ही नहीं दोनों समाजों को? देश में मुसलमानों मे शिक्षा दर सबसे कम है|भारत में सबसे ज्यादा निरक्षर मुस्लिम आबादी ही है|धार्मिक समुदाय और लिंग द्वारा शैक्षणिक स्तर पर भारत की 2011 की जनगणना से जारी किए गए आंकड़ों से पता चला है कि भारत में 42.7% मुस्लिम अशिक्षित हैं। देश के किसी भी धार्मिक समुदाय में यह सर्वोच्च निरक्षरता दर है।

भारत की जनगणना 2011

मुस्लिम एकमात्र समुदाय हैं जिसमें सभी समुदायों के बीच राष्ट्रीय दर से अधिक निरक्षरता है। हिंदुओं में यह आंकड़ा 36.3% है, जो अशिक्षित लोगों का दूसरा सबसे बड़ा अनुपात है।

(यह डेटा सेट सात साल से ऊपर की उम्र की आबादी को ध्यान में रख कर निर्धारित किया गया है।)

मुसलामानों की राजनीति और सरकारी नौकरी में भी बहुत कम भागीदारी है। 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में मुस्लिमों का सदन में न्यूनतम प्रतिनिधित्व का रिकॉर्ड भी टूट गया और 4.2% हो गया जो कि 1957 का था। अधिकांश मुस्लिमों के बच्चे मदरसों में पढ़ते हैं जो कि बहुत सस्ती और प्राचीन शिक्षा पद्धति है। इसमें विज्ञान, तकनीक, गणित, अंग्रेज़ी तथा समाजशास्त्रों की उचित शिक्षा नहीं मिल पाती जिससे यदि बच्चे बाद में किसी विश्विद्यालय में जातें हैं तो उन्हें समस्या होती है। इस प्रकार मुस्लिम आबादी आधुनिक शिक्षा में पिछड़ रही है और सरकारी नौकरियों में भी उनकी भागीदारी कम होती जा रही है।

देश में कुल भिखारियों की संख्य में से हर चौथा मुसलमान है। इस प्रकार से इनकी 25% जनसंख्या भीख मांग कर ही अपना जीवन-यापन कर रही है। वहीं भारत में हर एक मुहल्ले में कम से कम एक मस्जिद तो होती ही है जिनमें हर महीने हज़ारों रुपये चंदा आता है। कितनी मज़ारें हैं उन पर कितना चढ़ावा आता है। जो चादरें चढ़ाई जाती है वो वापस दुकानदारों को बेच दी जाती है जिसका पैसा मज़ार प्रबंधन को मिलता है। इस पैसे में दुकानदारों की भी हिस्सेदारी होती है। वही पैसा मुसलमानों की शिक्षा पर लगे तो उनकी अशिक्षा कम हो सकती है।

नोट :- लेख में दिये गये आंकड़े 2011 की जनगणना के मुताबिक हैं।

Exit mobile version