आज की तारीख में हम आज़ाद भारत के नागरिक हैं लेकिन इस आजादी के लिए हमें 1857 से लेकर 1947 तक अंग्रेज़ों से संघर्ष करना पड़ा। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन ने अंग्रेज़ों को मजबूर कर दिया था लेकिन मौजूदा दौर में हमें आज़ादी की अनुभूति नहीं होती है। ऐसा इसलिए क्योंकि हमें भ्रष्टाचार नामक बीमारी से मुक्ति नहीं मिली है।
ऐसा कहा जाता है कि आम आदमी की याददाश्त बहुत कमज़ोर होती है और इसी के सहारे राजनीतिक दल झूठे वादे करके भी हमारे पास फिर से वोट मांगने आ जाते हैं। जहां तक मुझे पता है अन्ना हज़ारे के आंदोलन के समय यह बातें की जाती थी कि लोकपाल आएगा, भ्रष्टाचार खत्म हो जाएगा।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि अन्ना अपनी तरफ से पूरा प्रयास कर रहे थे। इस मोड़ पर कुछ संगठनों और मीडिया के लोगों ने अन्ना को देश के सामने एक नायक की तरह पेश किया। इस घटना का असर यह हुआ कि जनमत काँग्रेस सरकार के विरोध में चला गया। इसका फायदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उठाया और बड़े-बड़े वादे करते हुए वह सत्ता पर काबिज़ हो गए।
आज सवाल यह खड़ा होता है कि लोकपाल कहां है? आंदोलन के वक्त काँग्रेस सत्ता में थी, बाद में बीजेपी नरेंद्र मोदी की अगुवाई में सत्ता में आईं, फिर भी लोकपाल का कोई पता नहीं है। बीजेपी बहुत तेजी से काँग्रेसी बन रही है। फिर मनमोहन सिंह में क्या कमियां थीं? क्या वह कम बात करते थे? नरेन्द्र मोदी भी तो प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं करते हैं।
जब 2005 में आरटीआई कानून लागू किया गया तब कई राजनेताओं का कहना था कि अन्य कानूनों की तरह यह भी पुस्तकों में सिमट कर रह जाएगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ। लोगों ने बड़े पैमाने पर इस कानून का इस्तेमाल किया जिसके चलते भ्रष्टाचार की बहुत सी घटनाएं सामने आईं।
पिछले 12 सालों में सभी पार्टियों की सरकार ने यह प्रयास किया कि इस कानून को कमज़ोर किया जाए। बहुत से आरटीआई कार्यकर्ताओं को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा, कई कार्यकर्ताओं पर जानलेवा हमले किए गए लेकिन किसी भी सरकार ने इस पर कोई कदम नहीं उठाया।
अंदाज़ा लगाइए कि आरटीआई भ्रष्टाचार के खिलाफ कितना बड़ा हथियार है लेकिन आप अकेले इस हथियार का इस्तेमाल नहीं कर सकते। भ्रष्टाचार के खिलाफ एकजुट होकर लड़ना होगा, तभी कुछ हासिल किया जा सकता है।
यह लेख लिखने से पहले मैंने एक परिचित कारोबारी से बात की जो रियल स्टेट का कारोबार करते हैं। उनका यह कहना है कि हमें नगर निगम से लेकर रजिस्ट्री ऑफिस तक भ्रष्टाचार का सामना करना पड़ता है। कई काबिल अफसरों का महीनों में ही ट्रांसफर कर दिया जाता है, क्योंकि उन अफसरों की वजह से राजनेताओं और ठेकेदारों के सो कॉल्ड धंधे बंद हो जाते हैं।
स्थानीय पार्षद या विधायक अलग-अलग त्योहारों पर चंदा मांगने आते हैं। इस चीज़ का सबसे बड़ा असर आम जनता पर पड़ता है, क्योंकि हम अपना पैसा वसूलने के लिए प्रॉपर्टी के भाव बढ़ा देते हैं। ऐसे में 20 लाख का घर हमें जबरन 22 या 25 लाख में बेचना पड़ता है। इस माहौल में बहुत से कारोबारी राजनेताओं के साथ मिलकर काम कर रहे हैं, ताकि कोई परेशानी ना हो।
मैंने जब एक फार्मासिस्ट से बात की तब कई हैरान कर देने वाले खुलासे हुए। उनका कहना है कि हमारी कंपनी किसी प्रोडक्ट के बारे में अगर डॉक्टर को बताती हैं, तब डॉक्टर कहते हैं, मेरा क्या? फिर उस डॉक्टर को कंपनी की तरफ से लगभग एक लाख का गिफ्ट दिया जाता है, तब कंपनी की पांच लाख की सेल होती है।
वो आगे बताते हैं, “ऐसे में अगर कोई दवा सस्ती हो तब डॉक्टर कहता है दाम बढ़ा दो। मुझे अपना टारगेट पूरा करना है। इसकी मार भी आम जनता को ही झेलनी पड़ती है। एक तरफ सरकारी संस्थाओं द्वारा भ्रष्टाचार तो किया ही जाता है और दूसरी ओर प्राइवेट सेक्टर में डॉक्टर भी इस गंदे खेल में उतर गए हैं।”
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