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“स्लम के वे बच्चे जिन्होंने कंप्यूटर ट्रेनिंग की मदद से बदली अपनी ज़िन्दगी”

झुग्गियों में रहने वाले बच्चे

झुग्गियों में रहने वाले बच्चे

डिजिटल क्रांति के दौर में दुनिया सिमटकर एक क्लिक पर आ गई है। ऐसे में हर तरफ सिर्फ सूचना का अंबार ही दिखाई पड़ता है। आज 02 दिसंबर को पूरे वर्ल्ड में ‘इंटरनेशनल कंप्यूटर लिट्रेसी डे’ मनाया जा रहा है। इस जश्न के माहौल में आइए मैं आपको एक कहानी सुनाती हूं। एक ऐसी कहानी जिसकी शुरुआत आज से करीब डेढ़ साल पहले हुई थी जब कंप्यूटर एप्लीकेशन में अपनी मास्टर्स की पढ़ाई खत्म करने के बाद नौकरी की तलाश में थी।

इसी बीच एक संस्था का कॉल आता है और मुझे इंटरव्यू के लिए बुलाया जाता है। मैं नियत समय पर इंटरव्यू के लिए पहुंचती हूं और मेरा चयन भी हो जाता है। इस संस्था का नाम ‘रोटरी क्लब ऑफ दिल्ली’ है। इस संस्था द्वारा मुझे वंचित और शोषित तबकों के बच्चों को पढ़ाने की ज़िम्मेदारी दी जाती है। साल 2017 की बात है जब दिल्ली के सफदरजंग इन्क्लेव में स्थित ‘स्त्रीबल’ नामक एनजीओ के ऑफिस में बच्चों को डिजिटल शिक्षा देने का काम मुझे सौंपा जाता है।

तमाम तरह की परेशानियां तब उत्पन्न होनी शुरू हो जाती है जब संस्था में बच्चे आते ही नहीं हैं। आस-पास के स्लम एरियाज़ में जाकर हमें बच्चों की तलाश करनी पड़ती है और फिर वहां से हम कुछ बच्चों का चयन करते हैं, जिन्हें वाकई में शिक्षा की ज़रूरत है। आखिरकार हमें एक बच्चा मिल जाता है और फिर शिक्षा की शुरुआत होती है। धीरे-धीरे यह कार्य अनवरत रूप से जारी रहता है।

एक बच्चे से शुरू हुई इस संस्था में लगभग 50 बच्चे आने लगते हैं। ये वो बच्चे हैं जिन्हें कंप्यूटर की बेसिक जानकारी देकर नौकरी के लिए तैयार किया जाता है। प्रशिक्षण के दौरान एमएस ऑफिस, एमएस एक्सेल औ एमएस पावर पॉइंट सिखाया जाता है। कुल मिलाकर उन्हें इस लायक बनाया जाता है कि वे अपनी जीविका चला सकें।

डेढ़ साल का यह सफर तमाम मुश्किलों से भरा हुआ है। संस्था में बच्चों के पहुंचने और शिक्षा ग्रहण करने के दौरान उन्हें कई प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। कई दफा बच्चों के पिता उन्हें आने नहीं देते हैं तो कभी बच्चे खुद ही किसी पार्क में बैठकर नशा करते हैं। इन्हें जीवन की पटरी पर लाना मुश्किल काम है। कभी-कभी परेशान होकर जी करता था कि इस काम को छोड़ दूं लेकिन अंदर से आवाज़ आती थी, “चाहे कुछ भी हो जाए इस काम को पूरी श्रद्धा से करना है।”

यही सोचकर मैंने तय किया कि कुछ भी हो जाए इस काम को पूरी श्रद्धा से करूंगी। यह सोच जब भी मेरे ज़हन में आती थी तब मैं जोश से लबरेज़ हो जाती थी। एक अजीब सा सुकून मिलता था। आज जब अकेली होती हूं तब यह सोचकर खुश होती हूं कि मैंने सही फैसला लिया।

शुरुआत से लेकर अब तक मेरी संस्था से करीब 10 बच्चे अच्छी जगहों पर काम करने चले गए। वे जब भी आते हैं, हमें पैर छूकर प्रणाम करते हैं और उनकी श्रद्धा देखकर हमें भी ऊर्जा मिलती है। ये वो बच्चे हैं जो अपने साथ-साथ अपने परिवार का भी भरण- पोषण कर रहे हैं। कभी-कभी सोचती हूं तब लगता है कि दूसरों का जीवन संवारने में कितना सुख है।

आज ‘वर्ल्ड कंप्यूटर लिट्रेसी डे’ के मौके पर मुझे उन बच्चों की याद आ रही है जो अपने मज़बूत इरादों के साथ जीवन के सफर में निकल पड़े हैं। मैं पूरे समाज से यह अपील करना चाहती हूं कि उनकी मदद कीजिए ताकि यह दुनिया और भी अच्छी हो सके। हमें समझना होगा कि शिक्षा ही जीवन की असल ज्योति है।

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