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“मैंने डिजिटल ट्रेनिंग ली है लेकिन मुझे कंप्यूटर चलाना नहीं आता”

कंप्यूटर ट्रेनिंग लेते ग्रामीण की प्रतीकात्मक तस्वीर

कंप्यूटर ट्रेनिंग लेते ग्रामीण की प्रतीकात्मक तस्वीर

देश में विधानसभा चुनावों का दौर चल रहा है। तमाम राजनैतिक दलों द्वारा बहुमत पाकर सत्ता पर काबिज़ होने के लिए तरह-तरह के लक्ष्य निर्धारित किए जा रहे हैं। पार्टियों के घोषणा पत्रों में ऐसे-ऐसे वादे किए जा रहे हैं जिनका पूरा होना किसी सपने जैसा है। कुछ लक्ष्य ऐसे भी हैं जो देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा पहले ही साधे जा चुके हैं। उन्हीं लक्ष्यों में से एक है प्रधानमंत्री ग्रामीण डिजिटल साक्षरता अभियान (पीएमजी-दिशा), जिसके तहत साल 2019 तक ग्रामीण भारत के 6 करोड़ घरों को डिजिटल तौर पर साक्षर बनाना है।

इस योजना का बजट 2351 करोड़ रुपये है जिसे सार्थक बनाने के लिए 2.5 लाख ग्राम पंचायतों को अपने इलाकों से 200-300 उम्मीदवारों को इस कार्यक्रम से जोड़ने का टारगेट दिया गया था। बहरहाल, इस योजना के तहत देश के औसत पंचायतों में कॉमन सर्विस सेंटर द्वारा प्रशिक्षुओं को सर्टिफिकेट दिया जा चुका है और कुछ इलाकों में यह काम जारी है।

गौरतलब है कि योजना के मानकों के मुताबिक 2.5 लाख ग्राम पंचायतों में कम-से-कम एक कॉमन सर्विस सेंटर (सीएससी) की बात कही गई है लेकिन ज़िला अधिकारियों की मिलीभगत से औसत पंचायतों में 4-5 कॉमन सर्विस सेंटर्स खोले गए हैं।

अब बात आती है, कैसे काम करता है पूरा यह प्रॉसेस और किस प्रकार से एक ग्रमीण व्यक्ति को सर्टिफिकेट दी जाती है। ग्राम पंचायतों में स्थित कॉमन सर्विस सेंटर के पीएमजी-दिशा के तहत जब कोई ग्रामीण कंप्यूटर ट्रेनिंग प्रोग्राम में सफलतापूर्वक उत्तीर्ण हो जाता है, तब सेंटर के संचालक को 300 सौ रुपये प्रति व्यक्ति मिलते हैं।

आपको बता दें पीएमजी-दिशा के गाइडलाइन्स के तहत हर सेंटर के पास कम-से-कम तीन कंप्यूटर होना अनिवार्य है। इसके अलावा आइरिश स्कैनर, इंटरनेट कनेक्शन, बिजली  बैक-अप, फिंगर प्रिंट स्कैनन, वेबकैम और बायोमेट्रिक होना भी ज़रूरी है। ग्रामीण इलाकों में इन मानकों पर शायद ही किसी केन्द्र के संचालक खड़े उतरते हैं।

एक नज़र पाठ्यक्रम पर

इस कार्यक्रम में जब कोई ग्रामीण अपना नामांकन करवा लेते हैं तब औपचारिक तौर पर उन्हें कुछ चीज़ों की ट्रेनिंग दी जाती है, जैसे- कंप्यूटर, स्मार्ट फोन और टैबलेट चलाना, इंटनेट ब्राउज़िंग, ई-मेल भेजना और डिजिटल भुगतान के साथ-साथ ऑनलाइन सेवाओं आदि की जानकारी दी जाती है।

इस योजना की सबसे बड़ी चूक यह है कि अब तक किसी ऐसे मैकेनिज़्म का इज़ाद नहीं किया गया है जिसके तहत यह पता लग पाए कि वाकई में ग्रामीणों को कंप्यूटर की जानकारी दी जा रही है या नहीं। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि सरकार डिजिटल इंडिया के नारे को संख्यांकिक तौर पर मज़बूत बनाने के लिए यह सब कर रही है।

ग्रामीणों के बदले ट्रेनर देते हैं परीक्षा

सूरत-ए-हाल जानने के लिए हमने सबसे पहले झारखंड राज्य के दुमका ज़िले के राजासिमुरिया पंचायत अंतर्गत एक गाँव के ट्रेनर अभय (बदला हुआ नाम) से बात की। उन्होंने हमसे ‘ऑफ द रिकॉर्ड’ बात करते हुए कहा कि एक व्यक्ति के सफलतापूर्व एग्ज़ाम में पास करने के बाद हमें 300 रुपये मिलते हैं। जो ग्रामीण हमारे पास इस कोर्स को करने के लिए आते हैं या तो उनकी उम्र इतनी अधिक होती है कि चीज़ें उन्हें याद नहीं रहती, या फिर ऐसे स्टूडेंट्स आते हैं जिन्होंने पहले कभी कंप्यूटर देखा या ऑपरेट नहीं किया है।

ऐसे में अगर वे अच्छे से पढ़कर पास करना चाहेंगे तब उन्हें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा। मैं हर संभव कोशिश करता हूं कि उन्हें कोर्स से जुड़ी सारी जानकारियां दूं लेकिन एग्ज़ाम के वक्त वे नर्वस हो जाते हैं। ऐसे में हमारे पास सिर्फ एक ही काम नहीं है बल्कि मुझे प्रज्ञा केन्द्र भी संभालना होता है, जिसके तहत जाति-निवासी प्रमाण- प्रत्र बनाने जैसे मुश्किल कार्य होते हैं। समय को ध्यान में रखते हुए हमें उनका एग्ज़ाम देना पड़ता है और उनके नाम से सर्टिफिकेट जारी हो जाता है।

इस दौरान काफी मशक्कत के बाद जब पीएमजी-दिशा के तहत डिजिटल ट्रेनिंग ले चुके सुरेश मंडल (बदला हुआ नाम) से हमारी बातचीत हुई तब उन्होंने कई अहम खुलासे किए। सुरेश का कहना था कि गाँव के औसत लोग इस योजना के ज़रिए सर्टिफिकेट ले रहे थे, इसलिए मैंने भी ले लिया। कोई चंद घंटों में कंप्यूटर के बारे में कैसे जान सकता है? मैं खेतों में कुदाल चलाता हूं, कंप्यूटर हमारे बस की बात नहीं है।

जब झारखंड के एक गाँव से एेसी बात निकलकर सामने आ रही है तब ज़रा कल्पना कीजिए कि देश के अन्य इलाकों की क्या हालत होगी। ट्रेनिंग सेंटर्स के ट्रेनर को जहां प्रति कैंडिडेट 300 रुपये मिल जाते हैं, वहां धड़ल्ले से कागज़ी तौर पर ग्रामीणों को कंप्यूटर साक्षर बनाया जा रहा है। यदि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ऐसे डिजिटल इंडिया की नींव रखी है तब यह वाकई में शर्मनाक ही है।

नोट: यह लेख झारखंड के राजासिमुरिया पंचायत (दुमका ज़िला) के कॉमन सर्विस सेंटर के एक ऑपरेटर से बातचीत के आधार पर लिखी गई है। ऑपरेटर द्वारा नाम गुप्त रखे जाने के शर्त पर जानकारियां उपलब्ध कराई गई है।

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