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मंदिर-मस्जिद की इस लड़ाई में, कैसे पूरा होगा भारतीय एकता का ख्वाब

जब चुुभने लगती कानों को मस्ज़िद की नमाज़,

तब  उनको भी उकसाती  है घंटों की आवाज़।

 

बार-बार  तुम  यह  दुहराते, तैमूर, चंगेज खान,

याद तुम्हें फिर क्यों नहीं आते हैं अब्दुल कलाम।

 

माना सोमनाथ मंदिर को कभी गजनी ने फोड़ा था,

पर तुमको भी याद रहे मस्जिद तुमने भी तोड़ा था।

 

औरंगज़ेब की गलती थी तुम मांग रहे  भुगतान,

वो जो चाय पिलाने वाले गांव के अहमद खान।

 

यदि  राम  को  रहता  याद  रावण का अभिमान,

कभी न कहते लक्ष्मण को, ले लो रावण से ज्ञान।

 

इसी तरह मंदिर मस्जिद पर लगती रही जो आग,

सोने की चिड़िया के भारत का पूरा ना होगा ख्वाब।

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