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“राम जन्मभूमि विवाद के बाद भारतीय क्रिकेट में भी राष्ट्रवाद आ गया था”

इंजमाम उल हक

इंजमाम उल हक

गली मोहल्ले में क्रिकेट खेला जाना एक आम बात है। हर वो युवा जो क्रिकेट में शानदार करियर का सपना देखता है वह गली-मोहल्ले में क्रिकेट ज़रूर खेलता है। सचिन तेंदुलकर, एडम गिलक्रिस्ट, ग्लेन मैक्ग्राथ, स्टीव वॉ, सुनील गावस्कर और कपिल देव जैसे नामी खिलाड़ियों ने ना सिर्फ हिन्दुस्तान में शोहरत हासिल की बल्कि विदेशों में भी अपने खेल के दम पर शानदार फैन फॉलोइंग बनाई।

मेरा बचपन हिंदी भाषित लोगों के बीच ही व्यतित हुआ है जहां रविवार को मोहल्ले की दो टीमों का अक्सर सामना होता था। एक खिलाड़ी उत्तर प्रदेश के यादव परिवार से था जिसकी गेंदबाज़ी काफी शानदार थी। उसकी तेज़ गेंदबाज़ी के कारण लोगों ने उसे पाकिस्तानी गेंदबाज़ वसीम अकरम के नाम से पुकारना शुरू कर दिया।

इसी तरह गुजरात के पटेल परिवार से एक गेंदबाज़ था जिसकी खासियत यह थी कि वो इंटरनेशनल गेंदबाज़ों की नकल करते हुए शानदार गेंदबाज़ी का मुज़ाएरा पेश करता था। यह 1987-88 से लेकर 1990-91 का दौर था जब क्रिकेट को बस खेल के तौर पर लिया जाता था। क्रिकेट में भारत और पाकिस्तान से कहीं ज़्यादा खेलभावना की अहमियत होती थी। उस दौर में क्रिकेट को राष्टवाद के चश्में से नहीं देखा जाता था।

मुझे याद है जब 1992 के वर्ल्ड कप की मेज़बानी की कमान ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के हाथो थी तब कपिल देव और इमरान खान का अंतराष्ट्रीय खिलाड़ी के तौर पर आखिरी वर्ल्ड कप था। वर्ल्ड कप के दौरान जब भारत और पाकिस्तान की टीम का आमना-सामना हो रहा था तब किरण मोरे और जावेद मियांदाद के बीच ‘तू-तू-मैं-मैं’ हो गई थी। खैर, इस मैच में टीम इंडिया ने पाकिस्तान के खिलाफ जीत दर्ज कर ली थी।

दूसरी ओर वर्ल्ड कप की अंक तालिका में पिछड़ने वाली पाकिस्तान की टीम ने चैंपियन बनकर सभी को हैरत में डाल दिया था। इंग्लैंड के खिलाफ खेले गए फाइनल मुकाबले में पाकिस्तन ने 22 रनों से जीत दर्ज करते हुए विश्व कप अपने नाम कर लिया।

पूर्व पाकिस्तानी कप्तान इमरान खान। फोटो साभार: सोशल मीडिया

पाकिस्तान की जीत के बाद दूरदर्शन पर भारतीय पूर्व क्रिकेट कप्तान पटौदी द्वारा इमरान खान से की गई बातचीत को दिखाया गया, जिसका मैं गवाह बना था। उस दौरान मेरा एक मित्र जो कि सिंधी समाज से था, उसने पाकिस्तान की शानदार जीत पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा था कि भारतीय क्रिकेट टीम को पाकिस्तान से सीखना चाहिए कि मैच कैसे जीता जाता है। मेरे उस दोस्त के कथन पर ज़्यादा वजन था क्योंकि अंक तालिका में पिछड़ने के बाद भी पाकिस्तानी क्रिकेट टीम ने जिस तरीके से वापसी की वह काबिल-ए-तारीफ है।

1992 का वर्ल्ड कप, दूरदर्शन पर इमरान खान की दिखाई गई बातचीत और मेरे दोस्तों में पाकिस्तानी खिलाड़ियों के प्रति इतनी इज्ज़त सब कुछ 06 दिसंबर 1992 के बाद बदल गया।

बाबरी मस्जिद की शहादत के बाद घटनाक्रम को टीवी में दिखाया गया, अखबारों में इसकी तस्वीरें छपी और तमाम नेताओं ने अपनी पीठ थपथपाई लेकिन कोई भी कानून के शिकंजे में नहीं आया। जब बाबरी मस्जिद को ध्वस्त करने की घटना ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ज़ोर पकड़ा तब इसका प्रतिकर्म इस्लामिक देशों में भी देखा गया। खासकर, पाकिस्तान में जंहा हिंदू धार्मिक संस्थानों को निशाना बनाया गया। यहां तक कि बाबरी मस्जिद की घटना के बाद लगभग सभी हिंदी भाषित देशों में हिंदू-मसलमान के बीच दंगे हुए।

इसके पश्चात मार्च 1993 में मुंबई सीरियल बम धमाके हुए जिसमें भारतीय जांच एजेंसियों ने सीधे तौर पर पाकिस्तान का नाम लिया। 24 दिसंबर 1999 को इंडियन एयरलाइंस की फ्लाईट आईसी-814 का अपहरण  होता है और इसके बाद भारतीयों में पाकिस्तानियों के प्रति और अधिक आक्रोश पनपने लगता है। इसके पश्चात जब भी भारत और पाकिस्तान के बीच क्रिकेट मैच होता था तब दोनों ही टीमें इसे युद्ध की तरह खेलने लगी।

मीडिया में भी इन मामलों की खबरे काफी अधिक प्रकाशित हुई, नतीजतन दोनों देशों की तरफ से खेला जा रहा क्रिकेट मैच राष्ट्रवाद और देशभक्ति का सबूत बनकर उभरने लगा जहां जीत का जश्न गलियों में दिवाली ओर होली की तर्ज़ पर होना शुरू हो गया। हार का मातम मसलन कोई बहुत बड़ा व्यक्तिगत नुकसान की तरह सामने खड़ा होने लगा जिसे दर्शक के रूप में मैंने भी अनुभव किया है।

सचिन तेंदुलकर। फोटो साभार: Getty Images

सन् 1999 में चेन्नई में खेले गए भारत-पाकिस्तान के मुकाबले में जब सकलैन मुस्ताक की शानदार गेंदबाजी के बल पर सचित तेंदुलकर आउट हुए और टीम इंडिया को हार का सामना करना पड़ा तब दर्शकों और भारतीय मीडिया ने इसे युद्ध में हार के तौर पर लिया था। इसका खामियाज़ा भारतीय मुसलमान समाज को चुकाना पड़ रहा था जहां अक्सर उन्हे पाकिस्तान के हिमायती के रूप में भारत देश में दिखाया जाना शुरू हो गया था।

गौरतलब है कि विल्स वर्ल्ड कप का दूसरा क्वार्टर फाइनल मैच भारत और पाकिस्तान के बीच बेंगलुरू में खेला गया था जहां भारत ने 39 रनों से जीत दर्ज की थी। इस मैच में आमिर सोहिल ओर व्यंकटेश प्रसाद की नोक झोंक आज भी दोनों देशों के बीच अपनी उपस्थिति दर्ज करवाती है लेकिन इसी मैच से भारत में जीत की खुशी में जश्न मनाने की रिवायत सी हो गई थी।

यह जीत किसी भी क्रिकेट टीम या मुल्क से ज़्यादा व्यक्तिगत हो गई थी। मुझे याद है कि इस मैच के दौरान आम भारतीय भी दर्शक बन रहा था जिसे क्रिकेट में कभी कोई दिलचस्पी नही रही थी। मुझे किसी ने बताया था कि उनके घर में एक घेरलू महिला भारतीय क्रिकेट टीम की पाकिस्तान के खिलाफ जीत के लिए मिन्नतें मांगी थी।

भारत बनाम पाकिस्तान मैच के दौरान भारतीय समर्थक। फोटो साभार: Getty Images

इसी जीत के बाद एक कवायद शुरू हो गई थी जहां भीड़ जश्न के साथ पाकिस्तान और उसके खिलाड़ियों का नाम लेकर चिन्हों के माध्यम से नारे लगाने लगी। इसमें राष्ट्रवाद का दिखावा एक प्रचलन सा हो गया था जहां पाकिस्तान के प्रति उग्र नारे राष्ट्रवाद की परिभाषा में गढ़ने शुरू हो गए। जो इन नारों से खुद को दूर रखता था उसकी देशभक्ति को शक की निगाहों से देखा जाने लगता था।

यह भीड़ मुसलमानों के इलाकों से गुज़रने लगी जहां उनके घरों के सामने अधिक वक्त तक रुकने लगे। कहीं भी मुसलमान अकेला मिल जाता तो उससे भारत माता की जय और पाकिस्तान के खिलाफ नारे लगाने के लिए शामिल करने की कोशिश ज़ोरों पर होती थी। मसलन, भारत की क्रिकेट में पाकिस्तान के खिलाफ जीत भारतीय मुसलमान समाज को एक तरह से नीचा दिखाने का कारण बन रही थी।

मेरी जान पहचान में ऐसे कई मोटर गैरेज थे जहां हिंदू और मुसलमान दोनों एक साथ काम करते थे और यही काम करने की जगह पर टेलीविज़न लगा होता था, जहां किसी पाकिस्तानी खिलाड़ी की तारीफ किसी हिंदू द्वारा किए जाने पर एक आम वाक्या था, लेकिन किसी मुलसमान ने अगर पाकिस्तानी खिलाड़ी की तारीफ कर दी तब उसे पाकिस्तानी समर्थक, पाकिस्तान के प्रति नर्म रुख रखने वाला मुसलमान घोषित कर दिया जाता था।

मसलन, भारतीय मुसलमान बहुताय इलाके को अब छोटा पाकिस्तान कहकर बुलाया जाना आम हो गया था। पाकिस्तान के प्रति भारतीय समाज में नफरत पनप चुकी थी और इसकी मार भारतीय मुसलमान पर पड़ रही थी जहां उसे अपनी देशभक्ति साबित करने के लिए एक तरह से मजबूर किया जा रहा था।

भारत बनाम पाकिस्तान मैच के खिलाफ प्रदर्शन करते लोग। फोटो साभार: Getty Images

इसी सिलसिले में 2017 में चैंपियन ट्रॉफी में पाकिस्तान से भारत की हार के बाद कुछ मुसलमान भारतीय नागरिकों पर देशद्रोह का मुकदमा इस शक पर लगाया गया कि वे पाकिस्तान क्रिकेट टीम के जीतने की खुशी में आतिशबाज़ी कर रहे थे।

व्यक्तिगत रूप से मेरा मानना है कि खेल बड़े दिल के साथ खेलना चाहिए जहां हार-जीत को किसी युद्ध की नीति के अनुसार नहीं लिया जा सकता। जिस तरह क्रिकेट के माध्यम से मुसलमान समुदाय की देशभक्ति को नापा जा रहा है, वह वास्तव में खतरनाक है।

फोटो साभार: Flickr

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