आज सोशल मीडिया की बढ़ती ताकतों और बढ़ते जनांदोलनों के बावजूद जिस रफ़्तार से बलात्कारों की संख्या बढ़ रही है उससे साफ पता चलता है कि सरकार इसके लिए कितनी जागरूक और क्रियाशील है।
कठुआ रेप केस पर सत्तासीन पार्टी से संबंधित लोगों का आरोपी के पक्ष में किए गए प्रदर्शन और इससे मुंह छिपाने के लिए फांसी की सज़ा वाला अजीब कानून पास करना इसका उदाहरण है। अजीब इसलिए क्योंकि भले ही कानून कागज़ पर कितना भी मज़बूत दिखे, असलियत में भारतीय न्यायिक व्यवस्था में न्याय मिलने में कितना समय लग जाता है यह किसी से छिपा नहीं है।
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र में एक मतदान में भारत ने फांसी की सज़ा के खिलाफ वोट दिया। नैशनल क्राइम ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार 2004-13 के बीच कुल 1,303 मामलों में फांसी की सज़ा सुनाई गई जिनमें केवल 3 ही मामलों में लोगों को फंदे पर लटकाया गया। इस प्रकार सरकार द्वारा बनाए गए कानून का बेतुका और दोहरापन रवैया सामने आता है।
यह सब तो सरकारी/न्यायिक व्यवस्था की बात हो गई लेकिन भारतीय समाज का क्या? गीडिंग्स के अनुसार, “समाज स्वयं एक संघ है, यह एक संगठन है और व्यवहारों का योग है, जिसमें सहयोग देने वाले व्यक्ति एक-दूसरे से सम्बंधित हैं।”
यानि समाज लोगों से बना है और समाज को लोगों की परेशानियों से संबंधित भावनाओं से अवगत होना बहुत ही आम बात होनी चाहिए। एक घर में परेशानी हो तो पूरे समाज को उसके साथ खड़े होकर संदेश देना चाहिए लेकिन क्या भारतीय समाज में जिन महिलाओं के साथ बलात्कार या शोषण होता है, उनके साथ समाज द्वारा ऐसा व्यवहार होता है?
मैं आपको कुछ उदाहरणों के ज़रिए इन चीज़ों को समझाने की कोशिश करता हूं।
- एक गाँव है, जहां एक महिला मीना (काल्पनिक नाम) के साथ कुछ लड़के रात को काम से लौटने के दौरान बलात्कार करने की कोशिश करते हैं लेकिन सफल नहीं हो पाते। लड़की सहमी हुई अपने घरवालों को सब बताती है और फिर घर और समाज वाले लड़के के खिलाफ कार्रवाई से पहले लड़की का काम करना बंद करवा देतें हैं। कुछ ही दिनों में उसकी शादी किसी अनजान व्यक्ति से करवा दिया जाता है।
- उसी गाँव में रीना नाम की एक और महिला है, (काल्पनिक नाम) जिसकी अगले महीने ही शादी है। उस पर गिरने वाले पहाड़ से अनजान, वह अपने सपनों के राज कुमार के साथ अपने भविष्य की बाट जोह रही है। अचानक एक रात उसके गाँव के कुछ पियक्कड़ उसके साथ बलात्कार करते हैं और उसे बुरी हालत में छोड़ कर चल देते हैं।
समाज में पता चलने पर कोई लड़की के हालत के बारे में नहीं पूछता बल्कि सब उसकी शादी को लेकर चिंता में रहतें हैं। बात फैलने के बाद लड़के वालों की तरफ से शादी तोड़ दी जाती है। समाज, लड़की के साथ कुछ यूं पेश आता है, जैसे वह कोई अछूत हो, या उसने कोई पाप किया है। माँ-बाप के लिए वह दुःख और कलंक का कारण बन जाती है और अंततः उसके पास आत्महत्या के अलावा कोई दूजा उपाय ही नहीं रहता।
यह दो कहानियां समाज के ऊपर बड़ा प्रश्न खड़ा करता है –
- अगर किसी महिला के साथ बलात्कार जैसी घटना हुई तो उसके लिए लड़की ज़िम्मेदार कैसे और किस हद तक है?
- जो हरकत लड़की के साथ की गई उसके लिए क्या लोगों को लड़की के साथ नहीं खड़ा होना चाहिए?
- महिला के साथ बलात्कार होने पर शादी तोड़ देना कौन सा लॉजिक है?
- चौथा और सबसे बड़ा सवाल यह कि जिस महिला के साथ बलात्कार जैसी घटना होती है, उसके लिए समाज कहता है,”अरे, इसकी तो ‘इज्ज़त’ लुट गई।”
- मैं पूछता हूं, क्यों भैया? एक महिला की इज्ज़त क्या सिर्फ उसके गुप्तांगों से होती है?
अंत में यही कहा जा सकता है कि बलात्कार बेशक एक निंदनीय अपराध है लेकिन समाज द्वारा उस महिला के साथ किए जाने वाले सुलूक का क्या? क्या वह अमानवीय नहीं है?
धीरे-धीरे स्थिति बेहतरी की तरफ जा रही है मगर यह संतोष जनक नहीं है। इस दिशा में सरकार की तरफ से अच्छे उपायों की घोषणा की करना बिल्कुल निरर्थक है क्योंकि राजनीतिक दलों में ऐसे काफी लोग हैं जिनपर बलात्कार या शोषण के 2-3 मामले हैं। इसलिए, समाज को खुद आगे आना होगा। वरना जो आज देश की महिलाओं के साथ हो रहा है, कल वह आपके घरों में भी हो सकता है।
नोट: यह लेख YKA यूज़र सौरभ प्रकाश के आस-पास के इलाकों से प्राप्त जानकारियों के आधार पर लिखी गई है।
फोटो साभार: Flickr
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