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“हम मीडिया के अच्छे कामों की सराहना क्यों नहीं करते?”

प्रेस फोटोग्राफर्स

प्रेस फोटोग्राफर्स

भारतीय लोकतंत्र में मीडिया का काफी अहम किरदार होता है। समाज में मीडिया पेड़ की उस टहनी की तरह होती है जिसके सहारे नागरिक अपनी आवाज़ उनके द्वारा चुने गए प्रतिनिधि तक पहुंचा पाते हैं। किसी देश में संविधान का होना इस बात का प्रमाण नहीं होता कि वह प्रजातांत्रिक देश है।

विश्व में कई ऐसे देश हैं जहां सविधान आकाश की ऊंचाइयों तक फल-फूल रहा होता है लेकिन कई जगहों पर हालात ऐसे भी होते हैं जहां नागरिकों के अधिकारों को जमींदोज़ किया जाता है। प्रजातंत्र को पूरे विश्व में एक मज़बूत कड़ी के रूप में स्थापित करने हेतु मीडिया ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

भारत के बड़े से लेकर छोटे हिस्सों तक हर जगह मीडिया के सारे प्रारूपों ने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। प्रजातांत्रिक देशों में विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के कामकाज पर नज़र रखने के लिए मीडिया को ‘चौथे स्तंभ’ के रूप में जाना जाता है। चाहे आज़ादी की लड़ाई हो या इंदिरा का आपातकाल, मीडिया ने हर मौके पर बेहतरीन काम किया है। चुनावों में भी मीडिया की एक अलग ही भूमिका होती है।

सरकार की ‘उदारीकण’ की नीति द्वार मीडिया जगत में क्रांति की धमनी दौड़ने लगी। दिसम्बर, 1998 में दूर-संचार विभाग ने 20 प्राइवेट ऑपरेटरों को लाइसेंस प्रदान करके मीडिया क्षेत्र का निजीकरण कर दिया और इसी के साथ देश में ई-कॉमर्स की भूमि तैयार होने लगी। देश के प्रमुख ‘अखबार’ ऑन लाइन संस्करण प्रकाशित करने लगे। विज्ञापन एजेंसियों ने भी अपने उत्पादों को नेट पर बेचना शुरू कर दिया।

आज हम वर्ष 2018 के अंतिम पड़ाव पर हैं और हम सब यह महसूस भी कर रहे हैं कि मीडिया जगत किस तरह हमारे रोज़मर्रे के क्रिया-कलापों पर अपनी पैठ जमाए बैठा है।

फिल्मी हस्तियों के शादी समारोह का लाइव संस्करण हो या चुनावी ढोल और नगाड़े, गरीब के घर के चूल्हे की बात हो या अमीर के घर का बिजली बिल, हर मुद्दे पर मीडिया ने अपने कर्तव्यों का पालन किया है। यह भी ज़रूरी है कि मीडिया जगत के सहारे किए जा रहे अनैतिक कार्यों पर हमारी नज़रें तेज रहें। इसके अलावा हमें मीडिया के अच्छे कार्यों की भी सराहना करनी चाहिए।

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