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रोहित शेट्टी किसी को हीरो दिखाने के लिए किसी का रेप दिखाना ज़रूरी नहीं है

Simmba Review

फिल्म की तारीफ में भले ही यह बात कही जा रही हो कि फिल्म ने एक संवेदनशील मुद्दे को उठाया है लेकिन वास्तव में फिल्म को चलाने के लिए उस संवेदनशील मुद्दे का इस्तेमाल किया गया है। हिंदी फिल्मों का यह पुराना तरीका है हीरो को स्टैबलिश करने के लिए रेप का सहारा ले लो। कहानी में एक रेप की घटना डाल दो और फिर एक पुरुष उस रेप का बदला लेगा।

इस फिल्म का भी प्लॉट यही है लेकिन फिल्म में रेप जैसे संवेदनशील मुद्दे को बुरी तरह से बेचा गया है। निर्भया केस को लोगों ने शायद रेप का ब्रॉन्ड बना दिया है। मुझे पता है मुझे इन शब्दों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए लेकिन यहां यही हो रहा है।

पूरी फिल्म में इस मुद्दे को इतना ड्रामेटाइज़ किया गया है, बात-बात में इतना लेक्चर दिया गया है कि आप ऊब जाएंगे कि बस करो। और हां, अगर इस फिल्म के किसी किरदार को रेप के दर्द और डर को समझाना है तो उसे उसके किसी अपने के साथ रेप होने की घटना की कल्पना करवाई जाती है, चाहे वह कोर्ट की जज ही क्यों ना हो। अगर आप रेप की संवेदनशीलता को समझते तो इस तरह की चीज़ों का सहारा नहीं लेते।

विलेन से अगर रेप की बात उगलवानी भी है तो उसे एक दूसरी लड़की का रेप करने के लिए उत्सुक करवाया जाता है। यह मज़ाक नहीं तो क्या है?

रोहित शेट्टी, मुझे आपके रेप के मुद्दे पर फिल्म बनाने से ऐतराज़ नहीं है लेकिन एक बार आप इस सिलसिले में कुछ रिसर्च भी करते कि एक रेप सर्वाइवर को किन परिस्थितियों से गुज़रना पड़ता है और समाज को इस मुद्दे पर किस तरह बर्ताव करना चाहिए।

सेक्शुअल हरासमेंट पर फिल्म पिंक भी बनी थी लेकिन उस फिल्म ने इस घटना की संवेदनशीलता को समझा था, हम औरतों के पक्ष को समझा था, आपके जैसा इसे अपनी फिल्म बेचने के लिए और एक पुरुष को हीरो के रूप में स्टैब्लिश करने के लिए इस्तेमाल नहीं किया था। मेरे साथ भी सेक्शुअल हरासमेंट की घटना हुई है और हमारे समाज में अमूमन लड़कियों के साथ जीवन में कभी ना कभी सेक्शुअल हरासमेंट की घटना होती है, मेरी जैसी हर लड़की को आपकी यह फिल्म ओछी कैटेगरी की ही लगेगी।

जहां तक फिल्म की बात है इंटरवल से पहले यह पूरी तरह एक कॉमेडी फिल्म है, जिसमें रणवीर सिंह ओवर एक्टिंग की पूरी दुकान हैं। कॉमेडी का मतलब ओवर एक्टिंग तो कतई नहीं होता। कॉमेडी एक बहुत मुश्किल जॉनर होता है। एक कलाकार के लिए दर्शकों को रुलाना आसान होता है लेकिन दर्शक को हंसाना उतना ही मुश्किल होता है लेकिन इन दिनों फिल्मों में इसका सरल सा तरीका ओवर एक्टिंग ढूंढ लिया जाता है।

रणवीर सिंह एक बेहतरीन एक्टर हैं, उन्हें इस मध्यम रास्ते को क्यों चुनना पड़ता है मुझे समझ नहीं आता है। पूरी फिल्म में कुछ ही जगह वह खुद को एक मैच्योर एक्टर के रूप में स्टैबलिश कर पाए हैं और अंत में अजय देवगन की एंट्री के बाद वो वापस से एक कमज़ोर एक्टर नज़र आते हैं।

फिल्म में जज रणवीर सिंह के इमोश्नल डायलॉग से पिघल जाती हैं और इमोश्नल होकर उनकी बात को सच मान लेती हैं। मुझे यहां बताएं कि कौन से कोर्ट में इमोश्नल डायलॉग को प्रूफ के रूप में देखा जाता है? हां, बेशक यह फिल्म है यहां कुछ भी संभव है लेकिन यह मत भूलिए यह कोई कॉमेडी या साधारण से विषय पर बनी फिल्म नहीं एक संवेदनशील विषय पर बनी फिल्म है।

वैसे फिल्म रोहित शेट्टी की थी तो लॉजिक की उम्मीद करना बेवकूफी भी थी लेकिन इतना ही कहूंगी अगर फिल्म में लॉजिक नहीं था तो इस संवेदनशील मुद्दे से खेलना भी नहीं था आपको।

फिल्म में कानून की भी पूरी तरह से धज्ज़ियां उड़ाई गई हैं। फेक एनकाउंटर को जस्टिफाई किया गया है। फिल्म में जब लड़की मदद के लिए पुलिस को फोन करती है तो पुलिस दारू पीकर सो रहा होता है लेकिन रेप होने के बाद तहकीकात में बिना किसी मेहनत के बस दोषियों को ठोक देता है, क्योंकि यहां भी हीरो की हीरोगिरी दिखानी थी एक रेप सर्वाइवर का इंसाफ नहीं। फिल्म में रेप की बात पर बाहरी गुस्सा दिखाना या ज़ोर से चिल्लाना ही रेप के प्रति संवेदनशीलता नहीं होती।

फिल्म में एनकाउंटर का पूरा एक नकली सीन क्रिएट किया जाता है, जिसमें रेप के दोषियों को भड़काया जाता है ताकि वह पुलिस स्टेशन में मौजूद किसी दूसरी लड़की का रेप करने के लिए उत्सुक हो जाए। यहां उन दोषियों को रणवीर सिंह यानी सिम्बा नपुसंक कहकर भड़काता है कि ये तो नपुसंक हैं ये तो रेप कर ही नहीं सकते। कोर्ट में इनके वकीलों को इनका मेडिकल सर्टिफिकेट दिखा देना चाहिए था कि ये तो रेप करने के काबिल ही नहीं।

यहां रोहित शेट्टी क्या बताना चाह रहे थे कि एक मर्द रेप करने के काबिल होता है? जो नपुंसक होते हैं वो असली मर्द नहीं होते, वो रेप क्या करेंगे? तो क्या जो नपुसंक नहीं हैं वे सभी रेप करने के लिए एलिजिबल हैं?

और हां, दूसरी बात आपको यह समझना चाहिए कि नपुंसकता एक मेडिकल कंडीशन है इसका मज़ाक उड़ाना भी असंवेदनशीलता की हद पार करना है। एक रेप के दोषियों की तुलना आप उस मेडिकल कंडीशन के लोगों से नहीं कर सकते।

कुल मिलाकर मैं यही कहूंगी रोहित शेट्टी आप एक्शन मूवी बनाते हैं और आप उस जॉनर के एक अच्छे डायरेक्टर भी हैं, प्लीज़ इस तरह के संवेदनशील सामाजिक मुद्दों के साथ खेल मत कीजिए।

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