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“जॉब पाने की रैट रेस में थकना मना है” : एक IITian की आत्मकथा

बीटेक स्टूडेंट्स

नमस्कार!

शायद आपने बैचलर्स की पढ़ाई की होगी या फिर डिप्लोमा या मास्टर्स डिग्रीधारी हो सकते हैं। आपने बैचलर्स की पढ़ाई की होगी, इसके अधिक चांसेज़ हैं लेकिन ध्यान रहे मैं आपका मज़ाक बिल्कुल भी नहीं उड़ा रहा हूं क्योंकि मैं भी आप में से ही एक हूं। इसलिए Just Chill!

हमारे देश में हर साल लगभग 15 लाख इंजीनियर्स बनाए जाते हैं। उनमें से अधिकांश विद्यार्थियों का यह कहना होता है कि यार पैरेन्ट्स ने इंजीनियरिंग में एडमिशन करवा दी या फिर इंजीनियरिंग करने के बाद कुछ तो हो ही जाएगा। कोई कहता है, ‘कुछ नहीं मिला तो इंजीनियरिंग ही ले ली।’

कुछ ही विद्यार्थी ऐसे होते हैं जो बड़ी शिद्दत से इंजीनियर बनना चाहते थे और उन्होंने अपना सपना पूरा भी किया। कुछ मेरी तरह होते हैं जो चाहते तो थे एक बड़ा आदमी बनना मगर जानकारी के अभाव में और बिना किसी दबाव में इंजीनियर बन गए।

अगर आप भारत में इंजीनियर हैं तब आईआईटी आपके लिए उस हसीन सपने से कम नहीं है जिसमें आपको सभी बेशकीमती चीज़ें अपने पास रखने की चाहत होती है। इस चक्कर में आप पूरी शिद्दत के साथ आईआईटी में एंट्री लेने की कोशिश में लग जाते हैं। यहां तक तो ठीक है पर हम आखिर ऐसा करते क्यों हैं?

आईआईटी में जाने के लिए लोग मरते क्यों हैं? चलिए मैं बताता हूं, जिस प्रकार से 15 लाख लोग इंजीनियरिंग करते हैं और सफल केवल 10% ही हो पाते हैं, ठीक उसी प्रकार से 10,000 स्टूडेंट्स आईआईटी करने आते तो हैं लेकिन उनमें से ज़्यादातर विद्यार्थी सिर्फ करोड़ों की नौकरी पाने की चाहत अपने मन में रखते हैं।

अगर आप मुझसे सहमत नहीं हैं तब आकड़े उठा लीजिये और आपको पता चलेगा कि कितने प्रतिशत इंजीनियर्स वाकई में इंजीनियर का काम करते हैं। मैं यह भी कहना चाहूंगा कि मैं पूरे सिस्टम को एक ही चश्मे से नहीं देखता हूं। अगर ऐसा ही होता तब हमारे देश के आईआईटी से नारायण मूर्ति, सूंदर पिचई, नंदन नीलेकणि जैसे इंजनियर्स ना निकले होते।

मैं अपने अनुभव के हिसाब से कह सकता हूं कि हमारे देश में सिर्फ 1% इंजीनियर्स ही आईआईटी से इंजीनियरिंग कर पाते हैं, बाकी 99% तो आप समझ ही गए होंगे। चलिए अब 99% की बात करते हैं जो पहले साल से ही अपने को कुछ कम महसूस करने लगते हैं क्योंकि आपने ‘आईआईटी-जेईई’ जो नहीं क्लियर किया होता है (झूठ मत बोलिये, हम सब जानते हैं)।

मैं भी आप ही में से एक था, तो मुझे इस बात को कुबूल करने में कोई दिक्कत नहीं है। शायद यही चीज़ें हैं जो हमारे मनोबल को ना सिर्फ कमज़ोर करते हैं बल्कि बड़े सपने देखने से रोकते भी हैं। यकीन मानिए, आपकी इच्छा और आपकी सोच ही आपके सपनों को पूरा करती हैं, आईआईटी या कोई और इंस्टीट्यूट तो सिर्फ एक ज़रिया या यूं कहिए कि उन सपनों तक पहुंचने के लिए सीढ़ी है।

बीटेक स्टूडेंट्स की प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार: Getty Images

अब विषय यह है कि आपको अपने सपनों को पूरा तो करना है लेकिन आप में से ज़्यादातर लोग अधिक पैसों वाली नौकरी को ही अपना सपना बना बैठे हैं। चाहे वो आईआईटीएन हो या किसी दूसरी संस्था में इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने वाले छात्र। अब जब आपने इसे ही अपना लक्ष्य माना है तब कोई बात नहीं।

इस मामले में तो आईआईटी ही बाज़ी मारेगा क्योंकि इतने सालों तक घिसे जो हैं, पहले 10वीं से 12वीं तक और फिर इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए जो चार साल उन्होंने दिए हैं।

तो चलो भाई, “आईआईटी मुंबई के स्टूडेंट ने पाया 1 करोड़ का पैकेज, फेसबुक और गूगल बने Highest Payer।” अब जो आईआईटी से नहीं हैं वे सिर्फ Cognizant और TCS से ही खुश हैं, तभी दूसरे दिन अखबार में खबर आती है कि ‘XYZ’ कॉलेज के स्टूडेंट ने मारी बाज़ी, गूगल में मिली नौकरी।

फिर आप सोचते हैं कि यार मुझे क्यों नहीं मिली ऐसी नौकरी। आपको भी मिल सकती थी ऐसी नौकरी लेकिन कभी खुद से पूछकर देखिएगा कि आपने अपने ऊपर विश्वास किया था क्या? क्या आपने उस हद तक मेहनत की थी? अगर हां, तो लगे रहिए, एक दिन सफलता ज़रूर मिलेगी।

अब जब इंजीनियरिंग कर ही ली है तो क्यों ना कुछ इंजीनियर जैसा किया जाए। अब आप सोचेंगे कि मैं कुछ टेक्निकल बाते करूंगा लेकिन आप ऐसा कैसे सोच सकते हैं क्योंकि ‘इंजीनियर्स’ इंजीनियरिंग छोड़कर बाकी सब करते हैं और मैं भी वही करूंगा। अगर आप इंजीनियर हैं तब आपको अपने कॉलेजेज़ में होने वाले ‘Fests’ के बारे में तो पता ही होगा।

मैं आपसे यह इसलिए कह रहा हूं क्योंकि बेशक हमारे देश में हज़ारो इंजीनियरिंग कॉलेजेज़ हैं जहां से हर साल लाखों इंजीनियर्स निकलते हैं लेकिन इन कॉलेजों की एक खास बात है और वो यह कि वे आपको प्लैटफॉर्म देती हैं जिनके ज़रिए आप अपने अंदर के टैलेंट को पहचान पाएं। यही वो चार साल होते हैं जहां आप एक नई दुनिया से मिलते हैं। इस दौरान अपने आप को बेहद करीब से पहचानते हैं।

यह ज़रूरी नहीं कि आप हमेशा अपने सपनों या अपने पैशन को फॉलो कर पाएं लेकिन कुछ अलग करने का जुनून तो आपके अंदर ज़रूर रहता है। ऐसे में ज़रूरी यह है कि आप उस जुनून को मरने ना दें।

अब मुझे ही देख लीजिये मैंने इंजीनियरिंग की जिस यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की है वह आईआईटी तो नहीं है लेकिन फेमस ज़रूर है। वहां मुझे वह वातावरण मिला जिसके ज़रिए अपने अंदर के टैलेंट को समझने का मौका मिला। मैंने अपने मन को पहचाना, अपने अंदर छिपे आर्टिस्ट को समझा और खुद को खुश रखना सीखा (By The Way Placement भी ली वहां से)। इतना तो काफी था मेरे लिए लेकिन कहते हैं ना जब तक आप अपने सपने को पूरा ना कर लें, चैन कहां मिलती है। आखिर मैं अपने पोस्ट ग्रेजुएट के लिए आईआईटी में आ ही गया।

कंवोकेशन के दौरान दिल्ली में आईआईटी स्टूडेंट्स। फोटो साभार: Getty Images

भाई एक बात ध्यान रहे कि आईआईटी में आने के बाद पता चला, ‘यह सारे के सारे ‘Extra Curricular Activities’ में भी तीस मार खां हैं। तभी तो देश के बेस्ट कल्चरल और टेक्निकल फेस्ट भी यहीं होते हैं। इसी एनवायरनमेंट की देन हैं, जयराम रमेश, मनोहर पर्रिकर, अरविंद केजरीवाल, अशोक खेमका, नितेश तिवारी, चेतन भगत, राहुल राम, टीवीएफ कंपनी और पता नहीं कितने ही हैं।

चलिए अब मैं अपनी बात करता हूं। मुझे लिखने का शौक पिछले एक साल में आया और मैंने लिखना शुरू कर दिया। मुझे पता नहीं था कि कैसे लिखना है, क्या लिखना है पर इतना पता था कि बस लिखना है। जब आप कुछ ठान लेते हैं तब रास्ते अपने आप ही निकल जाते हैं। मैंने सिर्फ लिखना ही शुरू नहीं किया, बल्कि उसे ऑनलाइन माध्यमों में पब्लिश भी किया और मुझे साथ मिला एक बेहतरीन प्लैटफॉर्म का जिसने मेरे लिखावट को पहचानते हुए मेरी सराहना भी की।

Youth Ki Awaaz ने  मुझे अपनी स्टोरीज़ कहने की आज़ादी दी और मानो मेरे इस शौक को मुहर लग गई हो। आज मैं लिख रहा हूं, मुझे पता नहीं मैं क्यों लिख रहा हूं लेकिन बस लिख रहा हूं, अपने मन को तसल्ली देने के लिए और अपने शौक को बढ़ावा देने के लिए या उस बीज को ज़िंदा रखने के लिए, जो मुझे हमेशा कुछ करने से डराता नहीं बल्कि साथ देता है।

एक बहुत महत्वपूर्ण बात है और वो यह कि आप जो भी कर रहे हैं, उसे अच्छे से करने के लिए आपका खुश होना या रहना ज़रूरी हैं, तभी आप अपना बेस्ट दे पाएंगे, चाहे वो पढ़ाई हो, एग्ज़ाम हो या फिर प्लेसमेंट्स। यही वजह हैं कि आज मैं अपने ड्रीम कॉलेज में अपने सपनों की ओर बढ़ते हुए, पढ़ाई में भी अच्छा कर रहा हूं और प्लेसमेंट का भी सुख प्राप्त कर लिया है।

मैंने अपने अंदर के आर्टिस्ट को भी ज़िंदा रखा है। यही तो ज़िन्दगी हैं, जिसमे थकना मना हैं, पर थकना कहां है, वह आपको तय करना है। आप कभी भी अपना फ्यूचर प्लैन नहीं कर सकते, क्योंकि यह ज़िन्दगी काफी अतरंगी है।

प्यार और आभार

आपका अपना Engineer!

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