भारत आज पुनः विश्व के लिए एक आकर्षण बन रहा है। इसकी संघीय व्यवस्था के विभिन्न आयाम क्रमशः सशक्त हो रहे हैं। व्यापार जगत में देश नए कीर्तिमान स्थापित करने के पथ पर अग्रसर है। अकादमिक तथा प्रशासनिक जगत में नए अनुसंधानों के आधार पर समकालीन समस्याओं को हल करने के गहन प्रयास जारी हैं। ऐसे में यह ज़रूरी है कि बदलाव एवं विकास की इस गति को बढ़ाने के लिए भारत के उन आयामों का भी गहन विश्लेषण हो जो मीडिया के प्राइम टाइम बहसों का हिस्सा नहीं हैं।
मेरा गृह राज्य बिहार है, जिसका अपना एक गौरवशाली इतिहास रहा है। बिहार की मज़बूत मिट्टी परिश्रम करना सिखाती है जिसका योगदान भारतीय इतिहास के हर पहलू पर अमिट है। अभी बिहार को विकास के पथ पर अपनी भारी जनसंख्या के साथ एक लंबा सफर तय करना है।
राज्य में सुशासन पर केन्द्रित सार्वजनिक बहसों की माने तो बिहार प्रगति कर रहा है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि बिहार ने पिछले 10 वर्षों में अपार प्रगति की है, जिसका एक सरल मानक यह है कि साक्षरता दर 65% हो चुकी है। राजनीतिक एवं घरेलू निर्णय प्रक्रियाओं में महिलाओं की भागीदारी बढ़ रही है और यह सराहनीय है।
विभिन्न राज्यों से बिहारी प्रवासियों के साथ सामान्य हिंसक घटनाएं अब सामान्य हो गई हैं। गिरावट इस स्तर तक है कि बिहारी शब्द अपने आप में एक अपशब्द बन चुका है। गुजरात में बिहारी मज़दूरों के साथ जो हुआ वह कोई नई घटना नहीं थी। सोशल मीडिया पर कई लोगों ने इस घटना की निंदा की लेकिन सरकार द्वारा कोई कदम नहीं उठाया गया।
दिल्ली तथा मुंबई जैसे महानगरों में जीवन यापन कर रहे मज़दूर युवकों के बारे में यह जानना चाहिए कि वह युवक एक संवैधानिक संस्था का सदस्य है जिसे ग्राम-सभा या मुहल्ला सभा कहते हैं। यह भी ज्ञात हो कि इन संस्थाओं के पास अपने क्षेत्र से सम्बंधित प्रावधान बनाने हेतु किसी भी राज्य की विधायिका से कम शक्तियां प्राप्त नहीं हैं। फिर भी ऐसी क्या बात है कि उन मज़दूरों को अपनी क्षमता का एहसास नहीं होता।
मेरा व्यक्तिगत अनुभव यह है कि मेरे ग्राम पंचायत में 12 नवंबर को ग्राम सभा हुई थी जिसकी भनक एक दिन पहले पंचायत के सरपंच तक को नहीं थी। मेरी सूचना के बाद सरपंच ने ग्राम-सभा में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। मेरा ऐसा मानना बिलकुल नहीं है कि सभी ग्राम पंचायतों की स्थिति यही है लेकिन मुद्दा सिर्फ इतना है कि आप कहीं भी रहकर अपने गाँव/मुहल्लों के भविष्य निर्धारक महत्वपूर्ण उत्सवों में योगदान सुनिश्चित कर सकते हैं।
ज़मीन पर किसी भी स्थिति को सुधारने के लिए योजना नितांत आवश्यक है। ऐसी स्थिति में ज़रूरी है कि रोज़गार की संभावनाओं का उत्पादन ग्राम पंचायत विकास योजना का हिस्सा बने। लैंगिक तौर पर न्यायपूर्ण समाज की स्थापना पंचायत विकास योजना का हिस्सा हो। संबंधित जनसंख्या हेतु जल संसाधन विकास एवं उनके संरक्षण की व्यवस्था पंचायत विकास योजना का हिस्सा बने।
यह एक अचंभित करने वाली स्थिति है कि हम तकनीकी विकास द्वारा संचालित विश्व में तकनीक विहीन मानव श्रम के मौके ज़्यादा तलाश रहे हैं। हमने कभी पंचायत को समझने की कोशिश ही नहीं की है। हम अपने राज्य में विकास की बात तो कर रहे हैं लेकिन ग्रामीण स्तर पर कामों में उतनी तेजी नहीं दिखाई दे रही है।
बिहार की स्थिति सिर्फ बिहार तक ही सीमित नहीं है बल्कि अब देश की समस्या बन गई है। जो युवा बिहार से बाहर पढ़ने या रोज़गार करने जा रहे हैं उन्हें लेकर तरह-तरह की बातें की जाती हैं।
ग्राम पंचायत विकास योजना बनाने के इस मौसम में अगर ग्रामीण युवा जागृत रूप से भाग ले सका, तब आने वाले एक साल में भी अप्रत्याशित बदलाव नज़र आ सकते हैं। यदि युवा वर्ग स्वरोज़गार की योजनाओं के बारे में ग्राम सभाओं में बातचीत शुरू करेंगे तब उन योजनाओं का उद्देश्य भी सही अर्थों में सफल होगा।
पंचायत स्तर पर योजनाओं की समीक्षा के लिए अतिरिक्त धन की ज़रूरत नहीं है लेकिन मानवतापूर्ण प्रयास आवश्यक है। सरकार के विभिन्न प्रयासों में अगर ज़मीनी स्तर पर युवाओं का स्वीकार्यता पूर्ण नेतृत्व मिले तब स्थिति बदलते देर नहीं लगेगी।