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तमाम आंदोलनों के बाद क्या हम निर्भया के इंसाफ की लड़ाई भूल गए हैं

आज सवेरे जब टीवी चालू किया तो देखा न्यूज़ चैनल पर चमकदार कपड़े पहने एक बाबा बड़ी ही मधुर वाणी में धरती पर नारी की महत्ता का गुणगान करते हुए “यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता” श्लोक का अर्थ समझा रहे थे। वह बोल रहे थे, “जहां नारी का सम्मान होता है वहां ईश्वर स्वयं विराजमान होते हैं और जहां नारी का अपमान होता है वहां महाभारत का विनाश होता है”।

खैर, समाज कल्याण का यह ज्ञान देने के लिए बाबा ने चैनल वालों से कितना बड़ा चेक लिया या बीच-बीच में एक बाबा के देसी घी तेल का विज्ञापन दिखाकर चैनल वालों ने उस चेक की रकम को मुनाफे के साथ कैसे वसूला, इस बात से हमें क्या फर्क पड़ता है।

बाबा का पूरा ज्ञान सुनकर मेरे मन में स्त्री सम्मान की भावना और ज़्यादा प्रज्वलित होने लगी और उसी भाव के साथ मैं अपने समाचार के दफ्तर आ गया। मैं यह सोचने लगा कि मैं कितना भाग्यशाली हूं कि मेरा जन्म उस देश में हुआ जहां शिव के पहले पार्वती, विष्णु के पहले लक्ष्मी को नमन किया जाता है।

मगर मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ में कौन बनेगा मुख्यमंत्री से भरे समाचार पत्रों और बहस करते न्यूज़ चैनलों के बीच मेरा ध्यान एक ऐसी अलग-थलग न्यूज़ पर गया जिसपर हमारा और हमारे समाज का वर्तमान और भविष्य सबसे ज़्यादा निर्भर करता है। सचिन पायलेट, अशोक गहलोत और कमलनाथ की ताजपोशी में मसरूफ मीडिया के लिए वो खबर महज़ एक समाचार ही थी, जिसे बड़े-बड़े नेताओं के बीच छोटी सी जगह दी गई।

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने निर्भया बलात्कार और हत्या पर दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए निर्भया के दो हत्यारों को 2 हफ्ते में फांसी देने से इंकार कर दिया है। मेैं एक पल के लिए जैसे बूत सा हो गया कि 16 दिसबर 2012 में एक 23 साल की मासूम के साथ हैवानियत की सारी हदे पार कर देने वाली एक ऐसी शर्मनाक घटना हुई, जिसके इंसाफ लिए सारा देश सड़कों पर उतर आया था, जिसके लिए संविधान को बदलना पड़ा, वो निर्भया मरने के 6 साल बाद, आज भी न्याय के लिए अदालत की दहलीज़ों पर भटक रही है।

निर्भया के इंसाफ के लिए सड़कों पर उतरी भीड़

आखिर क्यों? क्या हम गजनी फिल्म के शॉर्ट टर्म मेमोरी लॉस वाली स्थिति में पहुंच गए हैं कि जिसके नाम पर आंदोलन किया गया, मोमबत्तियां जलाई गईं, मार्च निकाले गए, मंदिर-मस्जिद और गुरुद्वारों में प्रार्थनाएं की, उसे इन्साफ मिला या नहीं इससे हम बेखबर हैं। या यह जानने में हमें कोई दिलचस्पी ही नहीं है।

व्हाट्सऐप पर पल-पल की अपडेट डालने वाले हम शिक्षित समाज के सभ्य लोग इतने असभ्य कैसे हो गए? क्या दोबारा सड़क पर उतरकर किसी ने आंदोलन कर पूछा कि क्या हुआ उन दरिंदो का? उन्हें सज़ा कब मिलेगी? शायद किसी ने नहीं और इस किसी नहीं में, मैं भी शामिल हूं।

अरब अमीरात, अफगानिस्तान, उत्तर कोरिया जैसे देशों में जहां बलात्कार का दोष सिद्ध होने पर कुछ ही दिनों में सार्वजनिक रूप से फांसी या गोली मार दी जाती है। भारत माता की भूमि पर 16 दिसम्बर 2012 को हैवानों का शिकार बनी निर्भया को देश की फास्ट ट्रैक कोर्ट ने 10 सितम्बर 2013 को न्याय दिया मुजरिमों को फांसी की सज़ा सुनाकर लेकिन मुजरिमों ने संविधान की बैसाखी पकड़कर हाई कोर्ट में दया की अपील कर दी। फिर उच्च न्यायलय में बहस चली 13 मार्च 2014 को फिर उन्हें फांसी की सज़ा मिली।

दरिंदों ने फिर दया के लिए सुप्रीम कोर्ट में जाकर नाक रगड़ी। फिर बहस चली कि जो इंसान कहलाने के लायक है ही नहीं, उन पर इंसानियत दिखाई जाये या नहीं। खैर, 27 मार्च 2017 को उच्चतम न्यायलय ने भी रहम करने से मना कर दिया साथ में निर्भया कानून, हेल्प नंबर, कानून में संशोधन, मुआवज़ा जैसी क्रियाओं द्वारा सरकार ने भी अपने दायित्वों की इति श्री कर ली।

खैर, समय के साथ हम भी नोटबंदी, जीएसटी, पेट्रोल की कीमत, मन की बात, बुलेट ट्रेन, विराट की शादी, तैमूर के क्यूट लुक और सपना चौधरी के आंखों के काजल में सब भूल गए कि एक निर्भया भी थी जिसकी चिता आज भी इंसाफ के इंतज़ार में सुलग रही है।

इसके बाद दिनों-दिन ऐसी निर्भया सारे देश में नज़र आने लगी। लचर और आलसी कानून व्यवस्था ने ऐसे भेडियों के नाखूनों और दांतों को और नुकीला बना दिया, जिसका काला सच राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आकड़ों से सामने आया। जिसने बताया कि निर्भया के बलात्कार और उसके नाम पर बनाये गये कानूनी प्रावधानों के बावजूद देश में बलात्कार के अपराधों में 132 फीसदी की वृद्धि हुई है। 2012 में जहां भारत में 24923 बलात्कार हुए, वहीं 2013 में 33707, 2014 में 36735 , 2015 में 34210 बलात्कार की घटनाएं हुईं।

मुझे नहीं लगता इन आकड़ों के बाद मुझे किसी और सत्य की विवेचना की ज़रूरत है। लेकिन जब कठुआ से लेकर इंदौर तक जहां एक 4 साल की बच्ची जिसे ठीक से “ब” बोलना भी नहीं आता जब उसके साथ “बलात्कार” हो रहा है, तो एक बात ज़रूर कहना चाहूंगा कि इस बार जब नवरात्री में कन्या भोज करवाये तो कन्या पूजन करते समय निर्भया को ज़रूर याद कीजियेगा।

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लेखक- विश्वम्भर नाथ तिवारी

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