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“मेरी सहमती के बिना मेरा फोन टैप कर रही है यूपी पुलिस”

निजता मानवीय मूल्यों की प्राथमिक शर्त रही है। इसीलिए इसे मौलिक अधिकार के हिस्से में रख कर संवैधानिक दर्जा दिया गया है, ताकि मानव मूल्यों की रक्षा की जा सके। संविधान की प्रमुख धारा 20 और 21 इसीलिए गढ़ दी गई, ताकि जहां व्यक्ति के निजी विकास के लिए ज़रूरी हो वहां वह अपनी निजता का सम्मान दूसरों से भी करवा सके लेकिन जिस तरह से इलाहाबाद पुलिस (तथाकथित प्रयागराज पुलिस) ने मेरी निजता का मान मर्दन किया वह मेरे लिए अप्रत्याशित और झकझोर देने वाला है।

थाना कर्नलगंज के एसओ के पास मेरी तमाम फोन कॉल्स की रिकॉर्डिंग्स है, जिसे उन्होने मुझे मेरे ही सामने सुना दिया। तब जाकर मुझे पता चला कि मेरा फोन टैप किया जा रहा है। टैप किये जाने की वजह मेरा सत्ताधारी पार्टी की नीतियों के खिलाफ लगातार उच्च स्वर में विरोध करना है। अब लोकतांत्रिक देश में गलत नीतियों का विरोध करना इतना बड़ा अपराध हो चला है कि मेरे साथ अपराधियों सा सलूक किया जा रहा है।

मेरी सहमति के बिना मेरे फोन को टैप किया जा रहा है। सरकार का यह कृत्य ना केवल मेरे नागरिक अधिकारो का हनन है बल्कि मेरी निजता के अधिकार को रौंद देने सरीखा है। लेकिन जब सरकार स्वयं इन कार्यों को संरक्षण दे रही हो तो उनसे क्या ही उम्मीद करना। ऐसे में हर नागरिक का दायित्व है कि ऐसी अलोकतांत्रिक सत्ता के खिलाफ आवाज़ बुंलद रखा जाए, वरना यह लोकतांत्रिक देश में नागरिक होने की शर्त को खत्म कर देंगे।

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