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“मुस्लिमों को शरिया कानून के लिए नहीं अपने विकास के लिए लड़ना चाहिए”

दुनिया में या देश में कहीं भी हुए किसी भी घटना पर हर किसी की अपनी एक राय होती है, मेरी भी होती है। कभी-कभी यह राय मैं सोशल मीडिया पर डालता हूं, कभी नहीं डालता, या समय के अभाव के कारण नहीं डाल पाता।

आज मेरे किसी मित्र ने मुझे इनबॉक्स करके बताया कि वह मेरी पोस्ट पढ़ते हैं और मैं हमेशा मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति को बढ़ावा देता हूं। उन्होंने एक खास वर्ग कहा था लेकिन उनका इशारा किधर था, मुझे यह समझने में कोई परेशानी नहीं हुई और मैं खुद भी ऐसे गोल घुमाकर “एक खास वर्ग” लिखना या पढ़ना पसंद नहीं करता। तो उनको मैं यह बात साफ करके कह देना चाहता हूं कि मैं मुस्लिम, दलित या जाट, किसी भी तरह की तुष्टिकरण में बिलकुल भी यकीन नहीं रखता हूं।

फोटो प्रतीकात्मक है।

क्यों, क्योंकि मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति ने अगर सबसे ज़्यादा नुकसान किसी का पहुंचाया है तो वह सिर्फ मुस्लिम ही हैं। उसके बाद अगला नंबर हिन्दुओं और बाकि धर्म, जाति के लोगों का हुआ है।

हिन्दुओं का भय दिखाकर मुस्लिमों का वोट लेकर हर सरकार ने सिर्फ अपनी कुर्सी गरम की है, फिर चाहे उत्तर प्रदेश हो या बिहार हो या कोई और राज्य।

वोट लिया तो मुस्लिमों से लेकिन उन्हें सिर्फ अपनी कठपुतली बनाकर रखा। पिछले 2 दशकों को ही अगर मान लें तो मुस्लिमों की दशा में आखिर क्या सुधार किया है उन सरकारों ने? क्या उनके लिए कोई स्पेशल शिक्षा या रोज़गार के साधन जोड़े हैं? क्या उन्हें स्पेशल हेल्थ बेनिफिट मिले हैं? क्या उन्हें कभी मुख्यमंत्री बनाने की कोशिश भर भी की गई है? क्या उनके नाम से कोई स्कूल, हॉस्पिटल या सरकारी योजना ही शुरू की गई है? और चूंकि हिन्दूओं को तुष्टिकरण करने वाली सरकारों ने कभी वोट बैंक माना ही नहीं, तो उनका विकास और उनकी परेशानियां गई तेल लेने। अगर विकास किया तो सिर्फ अपने परिवार का और अपनी जाति के लोगों का।

यह बात मुसलमानों को भी समझ लेनी चाहिए। उन्हें सिर्फ वोट बैंक बनकर नहीं, अपने विकास में भी सरकार से हिस्सा मांगना चाहिए। मैंने कभी उन्हें अपनी शिक्षा, रोज़गार या अधिकारों के लिए सड़क पर गुज्जर, जाटों या किसानों जैसा प्रदर्शन करते नहीं देखा है। हां ट्रिपल तलाक वाले मसले पर उनकी चिंता दिखने लगती है।

उन्हें भी अपनी इस मानसिकता से ऊपर उठाना होगा। जो पुरानी पीढ़ी के लोग हैं, उनकी बात चलो मैं समझ सकता हूं कि उनके ख्यालात पुराने हैं लेकिन नई पीढ़ी के मुसलमान युवाओं को आगे आना चाहिए और अपनी कौम के विकास के लिए लड़ना चाहिए, ना कि शरिया कानून के लिए।

उनको यह बात समझनी होगी कि ना तो आपको किसी हिन्दू से खतरा है और ना ही आपका इस्लाम खतरे में है। तभी आप अपने आपको, अपनी कौम को इस तेज़ी से बढ़ती दुनिया के साथ जोड़ पाएंगे, नहीं तो वोट तो आप हर साल किसी ना किसी को देंगे ही लेकिन बस वोट बैंक बनकर रह जायेंगे।

मेरे मित्र ने कश्मीर और वहां आजकल में हुए उस घटना पर भी प्रतिक्रिया मांगी जिसमें उग्र भीड़ ने जवानों को बीच सड़क पर मारा या मारने की और चोट पहुंचने की कोशिश की है। उसका जवाब फिलहाल मैं इतना ही दूंगा कि ऐसी भीड़ को सलाखों के पीछे डालकर भारतीय कानून के मुताबिक कड़ी से कड़ी सज़ा देनी चाहिए लेकिन हमारी सरकार उनके साथ ऐसा कर नहीं सकती, इसके पीछे कई कारण हैं।

उन पर भी कभी लिखूंगा, क्योंकि कश्मीर पर लिखने को काफी कुछ है, जो लिखना बाकी है। आज के लिए बस इतना ही।

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