3 दिसंबर की शाम होते-होते यह खबर आई कि उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर ज़िले में भीड़ की हिंसा में एक पुलिसकर्मी की मौत हो गई। राजस्थान के साथ-साथ अन्य राज्यों में चुनावी माहौल के चलते यह मान लिया गया था कि सभी गौ रक्षक चुनाव प्रचार में व्यस्त होंगे लेकिन गौ रक्षकों का गढ़ माने जाने वाले उत्तर प्रदेश में हाल ही में कोई चुनाव नहीं है।
असल में गौशाला में होने वाली गायों की मौत पर कोई सवाल खड़े नहीं होते हैं, जहां पर विवादास्पद तरीके से दर्जनों गायों की मौत हो जाती है लेकिन इसके ठीक विपरीत गौ मांस खाने की संशय में ही किसी को मौत के घाट उतार दिया जाता है। भीड़ की ताकत या यूं कहें आत्मविश्वास कुछ इस कदर बढ़ गया है कि अब पुलिस भी इनकी चपेट में आ गई हैं।
इस मोड़ पर बात गौ रक्षकों की नहीं है बल्कि सरकारी नज़रिए की है। केंद्र सरकार खुद इस बात पर खुलकर बात क्यों नहीं करती? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब कहा कि गौरक्षा के नाम पर गुंडागर्दी नहीं चलेगी फिर भी यह घटनाएं बार-बार हो रही हैं? खासकर जिन राज्यों में भाजपा की सरकार है वहां पर इसका असर ज़्यादा दिख रहा है।
भारतीय हिंदू गाय को माता का दर्जा देते हैं फिर भी हम गायों का अच्छी तरह से ख्याल क्यों नहीं रख पाते। हम गाय की भक्ति में कुछ इस तरह खो गए हैं कि राजनीतिक दल अपने चुनावी घोषणा पत्र में यह वादा करते हैं कि वह सत्ता में आने पर गौशाला बनाएंगे। एक देश के तौर पर हमें इस पर मंथन करना पड़ेगा।
ऐसे में स्विट्ज़रलैंड में हुई एक घटना हमें रास्ता दिखा सकती है-
इस घटना को भारतीय मीडिया में बहुत कम जगह मिली या फिर किसी को यह खबर नज़र ही नहीं आई। बात यह है कि आर्मीन कपाल इस किसान के एक प्रस्ताव पर 25 नवंबर को स्विट्ज़रलैंड में सार्वमत हुआ, इनका प्रस्ताव यह था कि गाय को सींग होनी चाहिए। यह बात भारतीय लोगों को मज़ाकिया लगे लेकिन स्विट्ज़रलैंड में गर्म लोहे की पट्टी को सिंह की जगह पर रखा जाता है, जिसके कारण सींग बढ़ ही नहीं पाते या यूं कहें इसे बढ़ने से रोका जाता है।
सींग वाली गाय आर्मीन कपाल के पास है लेकिन सिंह होने की वजह से देखभाल में ज़्यादा खर्चा आता है। वह खर्चा सरकार सब्सिडी के तौर पर दे यह आर्मी कपाल का कहना है।
सरकार हर साल 1 गाय के लिए 190 स्विस फ्रैंक यानी 3500 भारतीय रुपये सब्सिडी दे। 25 तारीख को पूरे देश में सार्वमत यानी मतदान किया गया। उसका नतीजा भी आ गया, 45.3% जनता ने सब्सिडी के लिए हां कहा, तो 54.7 प्रतिशत लोगों ने सब्सिडी के लिए ना कहा। इसका मतलब साफ है अगर आप गाय की सींग रखते हैं तो वह सब खर्चा आपको खुद करना पड़ेगा।
नतीजा आने के बाद स्विट्ज़रलैंड के अर्थ मंत्री ने आर्मीन कपाल की तारीफ करते हुए कहा कि आपकी वजह से इस विषय पर देश में चर्चा हो रही है। स्विट्ज़रलैंड में नतीजे क्या आए यह महत्वपूर्ण नहीं, यहां पर लोकतंत्र की जीत हुई। यह सबसे बड़ी बात है कि एक छोटे से आदमी की आवाज़ पूरे देश को सुनाई दी।
आखिर कब तक हम सबसे बड़ी लोकतंत्र होने का ढिंढोरा पीटते रहेंगे आखिर हमारे लोकतंत्र में क्या कमियां हैं यह बात पाठक ही तय करें।