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कविता: “मुझे बचा लो, मुझे बचा लो, कहता आज है पानी”

बहुत हुआ अब थक चुका हूं

मानव की बेईमानी से

शीतल से दूषित हुआ हूं

मानव की मनमानी से।

 

हो सके तो समय निकालो

सुन करुणा भरी कहानी

मुझे बचा लो-मुझे बचा लो

कहता आज है पानी।

 

कहता आज है पानी क्योंकि

बांध बनाने से ऐ! मानव

नदियां तो मुड़ जाएंगी

नदियों के मुड़ने से भैया

जन, जंगल और ज़मीन भी

उजड़ यहां सब जाएंगे।

 

कुल मिलाकर मेरे भैया

होगी बड़ी जनहानि

मुझे बचा लो-मुझे बचा लो

कहता आज है पानी।

 

कहता आज है पानी देखो

कहीं भौमजल है घट रहा

और नदियों का जल रुक रहा

शहरीकरण और कारखानों ने तो

सिर्फ गंदगी करने की ठानी

मुझे बचा लो-मुझे बचा लो

कहता आज है पानी।

 

कहता आज है पानी सुन लो

समंदर बहुत बड़ा है लेकिन

पीने के लायक नहीं

बहुत गांव पानी को तरसे

लेकिन कोई सहायक नहीं

जलचक्र भी बदल गया है

होने से, वन-बलिदानी

मुझे बचा लो-मुझे बचा लो

कहता आज है पानी।

 

कहता आज है पानी देखो

नदियां दूषित हो गयी

इतना मल बहा दिया कि

गंगा मटमैली हो गयी

और, बांध इतने बना दिए भैया

नर्मदा भी मूर्छित हो गयी

अब जाकर, भले मानुस ने,

बोला, जल ही जीवन अभिमानी

मुझे बचा लो-मुझे बचा लो

कहता आज है पानी।

 

कहता आज है पानी, ये सुन लो

अब जीवन संकटमय है

आज बचा तो कल भी बचेगा

प्रलय विशाल आने को है

ऐ! मानव अब तू, सोच में ना पड़

मैं ही हूं जीवनदानी

मुझे बचा लो-मुझे बचा लो

कहता आज है पानी।

 

कहता आज है पानी सीख लो

मेरी दुखद कहानी से

दुखड़ा सारा, कह डाला मैंने

आपबीती ज़ुबानी से

अब रुकता हूं, गला भर आया

नहीं खत्म हुई ये कहानी

मुझे बचा लो-मुझे बचा लो

कहता आज है पानी।

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