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क्या बहुजन कॉम जिंदा लाश है?

क्या बहुजन कॉम जिंदा लाश है?

क्यों हिचकिचाहट है, बहुजन समाज के बुद्धिजीवी में ?

जबकि 8 व 9 जनवरी बहुजन समाज के लिए काला दिन रहा और खामोश रह गये लोकसभा व राज्यसभा में
बहुजन समाज के प्रतिनिधित्वकर्त्ता.

जब संविधान का चिरहरण संसद में मनुवादी शक्तियां कर रहे थे, तो हंसी-ठिठोली के साथ संविधान के शपथ खानेवाले भी उनका साथ दे रहे थे.

समाज के जिन हिस्सों को सदियों से मनुवादी शक्तियां गुलाम बनाके रखा था. भेदभाव, घृणा व हेय दृष्टि से देखा करता था. यहां तक कि उसे शिक्षाओं से वंचित करके रखा था. आज उसी के पक्ष में खड़ा है, हमारे समाज के बुद्धिजीवी व नेता आखिर क्यों?

फिर से इन समाजों को गुलामी की ओर धकेलने का प्रयास जारी है.

जिन समाजों के लिए महात्मा ज्योतिबा फुले, माता सावित्रीबाई फुले,बाबा तिलकामांझी, बिरसा-मुंडा, फुलो-झानो, पेरियार, भगत सिंह, डॉ. भीमराव अंबेडकर व तमाम क्रांतिकारी साथियों ने संघर्ष किया व शहादत दी. लेकिन, आज हम उनके संघर्ष व शहादत को भूल गये.

क्या हमें उन नेताओं के भरोसे रहना चाहिए? जो अपने समाजों के साथ गद्दारी की हो.

क्यों हमारे लोग हमारे ही लोगों के साथ गद्दारी कि,इसे समझने की जरूरत है?

जब हम किसी नायकत्व के भरोसे हम.बैठे रहेंगे, तो हमारे साथ हमेशा गद्दारी ही होते रहेगा.

क्योंकि हम आज भी मनुवाद के चंगुल से बाहर नहीं निकल पाये हैं. हम आज भी मानसिक गुलाम हैं. हम भूल गये अपनी विरासत को व अपने शहीदों को जो हमें गुलामी की जंजीर से बाहर निकाल कर एक बेहतर मुल्क व समाज का सपना दिखाया था.

साथियों,

हम कहना चाहते हैं, जो हमारे मान-सम्मान व स्वभिमान के साथ खड़ा नहीं हो, हम उसे नकार दें. हमें अपने अंदर आत्मविश्वास पैदा करने की जरूरत है. अपनी लड़ाई हमें खुद एकजुट होकर सड़कों पर लड़नी होगी. जब हमारे लिए सारे रास्ते बंद हो जाता है, तो एक ही रास्ता हमारे पास बचता सड़कों पर संघर्ष का रास्ता.

आगे आऐं

अपनी विरासत व शहीदों को याद करते हुए एक नई लड़ाई का आगाज करें और इस मनुवादी व पूंजीवाद व्यवस्था को उखाड़ फेकें.

:- अंजनी विशु

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