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प्यार और इश्क धर्म के मोहताज नहीं

बाजीराव मस्तानी के अंत में हमने देखा कि किस तरह बाजीराव और मस्तानी, जो एक दूजे के इश्क में सराबोर होना चाहते थे, दुनिया के सारे दुखों से दूर अपनी दुनिया बसाना चाहते थे, कभी एक ना हो सके और अंत में दुनिया की लगाई हुई नफरत भरी आग ने उनको लपेट लिया। आखरी सांसे लेते हुए पेशवा की आंखों में मस्तानी का सौम्य चेहरा था तो मस्तानी महल में चीत्कॉरं॓ भरती मस्तानी की आंखों में पेशवा के साथ वह प्यार भरे लम्हे दम तोड़ रहे थे जिन्हें कभी उन्होंने परवान चढ़ने का सपना देखा था। पेशवा और मस्तानी बाई भले ही चले गए लेकिन प्यार मोहब्बत और इश्क का धागा जो उन्होंने बुना था यूं ही नहीं टूटा। इस धागे के एक सिरे को थामा बाजीराव पेशवा की पहली पत्नी काशीबाई ने और दूसरा मस्तानी बाई की बेटे शमशेर बहादुर ने। प्यार और इश्क की बहुत सी अनोखी कहानियां कही और सुनी जाती है लेकिन ममता भरे प्रेम से प्रज्वलित यह कहानी कुछ ऐसी है जो सिर्फ कुछ शब्दों में बहुत कुछ कह जाती है ।मूल सिद्धांत सिर्फ एक ही की धर्म जो कुछ भी हो प्रेम के आगे काफी फीका और बासी लगने लगता है। अपने पिता और मां के चले जाने के बाद शमशेर बहादुर अनाथ हो चुका था, एक ऐसा बेसहारा और सच्चे प्रेम की तलाश में बच्चा जिसे काशीबाई ने अपने आंचल में जगह दी यह जानते हुए भी कि कि वह स्वर्गीय बाजीराव के जिस पुत्र को अपनी गोद में खिला रही है वे उनकी सौतन मस्तानी बाई की कोख से जन्मा है। प्यार, सौहार्द और नम्रता मानो काशी भाई के आभूषण थे।तमाम मराठा सरदारों के विरोध के बावजूद उन्होंने शमशेर बहादुर को शस्त्र विद्या सिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। अपने सौतेले भाइयों रघुनाथराव और नाना साहब के साथ शमशेर बहादुर ने एक कुशल योद्धा बनने के गुर सीखे। 1 माता के अतुल्य प्यार का ऋण अदा करने में शमशेर बहादुर ने कोई कसर नहीं छोड़ी। 1761 में अफ़गानो और मराठा फौज के तीसरे युद्ध में बांदा के नवाब शमशेर बहादुर ने सारे मतभेदों को एक किनारे रखते हुए मराठा फौज् का पूरा पूरा साथ दिया परंतु अंत में जीत अफगान फौज की रही और शमशेर बहादुर इस युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए। पेशविन बाई, काशीबाई इसे सह ना सकी और कुछ विश्वस्त इतिहासकारों की माने तो आघात के कारण चल बसी। एक हिंदू और मुस्लिम बेटे के बीच इस प्यार को भले ही इतिहासकारों ने उचित न समझा लेकिन अगर आप अपने अपने दिलों में झांक कर देखें तो पाएंगे कि यह प्रेम उतना ही पवित्र है जैसे गंगा का निर्मल जल, जैसे सूरज की पहली किरण,जिसकी ओट में आनंद की एक‌‌ अलग ही अनुभूति का अहसास होता है।

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