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बढ़ती आधुनिकता के बीच विकास की बाट जोहता एक शहर

मोतिहारी शहर कई मायनों में बिहार के लिए महत्वपूर्ण शहर है। पिछले कुछ सालों में मोतिहारी और आसपास के इलाकों में विकास का स्तर जितना नीचे आया है शायद सत्ता पर बैठे नेताओ को इसका आभास नहीं है। हरसिद्धि, पिपरा, केसरिया, गोपालगंज, मोतिहारी लोक सभा क्षेत्र के अंतर्गत आते है। हरसिद्धि और इसके आसपास का क्षेत्र कृषि की लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है। यहां के किसान बुनयादी सुविधाओं के लिए तरस रहे है। किसानो के लिए यूरिया खाद की आपूर्ति समय पर न होने से फसल ख़राब हो जाना किसानो के लिए मुसीबत बन रही है। किसान कई बार आला अधिकारियों इसकी शिकायत कर चुके है लेकिन कोई कार्रवाई नहीं होती है। किसान कहते हैं कि हमारी सुनने वाला कोई नहीं है , कृषि मंत्री राधामोहन सिंह भी पूर्वी चम्पारण जिले से ही है लेकिन चुनाव जितने के बाद में कभी भी यहाँ के किसानों के बारे में जानकारी नहीं ली।

यहाँ सबसे ज्यादा परेशानी गन्ना की किसानों के लिए है। 2014 में कृषि मंत्री जी ने वादा किया था कि बंद पड़ी चीनी मिल को चालू कराएंगे लेकिन अब तक मंत्री जी ने अपना वादा पूरा नहीं किया।गन्ना किसान मजबूरन दूसर जिलों में गन्ना ले जाते है लेकिन दूसरे चीनी मिल गन्ना नहीं खरीदते है। सोचने वाली बात है कि किसानों की हालत इतनी है कि किसान अपना गन्ना सड़कों पर फेकने को मजबूर है ।अभी हाल ही में एक ख़बर आई कि गन्ना न बिकने से परेशान किसानों ने अपने गन्नों की ढ़ेर में आग लगा कर विरोध प्रदर्शन किया। बंद पड़ा चीनी चालू होने से किसानों को बहुत राहत मिलेगी। किसान अपना गन्ना आसानी से बेच पाएंगे, लेकिन सत्ता पर आसीन बाबुओं को किसानों की फ़िकर ही नहीं हैं।

कृषि प्रधान इस देश में किसानों की जो स्थिति है वो जग जाहिर है। चाहे बात महाराष्ट्र के किसानों की हो, तमिलनाडु के किसानों की हो, मध्यप्रदेश के किसानों की हो, छत्तीसगढ़ के किसानों को हो या फिर बात बिहार के किसानों की हो। अन्नदाता फसल ख़राब होने और कर्ज की वजह से लगातार ख़ुदख़ुशी कर रहे है। लेकिन कुछ महीनों पहले की ही बात है कृषि मंत्रालय ने NCRB का हवाला देते हुए कहा कि किसानों की आत्महत्या की वजह प्रेमप्रसंग, नामर्दी, और ड्रग्स का सेवन करना है। इससे शर्मनाक और क्या हो सकता है कि कृषि प्रधान देश में अन्नदाताओं के लिए ऐसी सोच भी है जो अन्नदाताओं को उपहास का पात्र समझे।
आईआरडीएआई की रिपोर्ट के अनुसार देशभर के जिन किसानों ने 2018 में प्रधानमंत्री फसल बीमा के तहत बीमा कराया था..उन्हें तो कोई लाभ नहीं हुआ लेकिन वित्त वर्ष 2017-2018 में 11 निजी बीमा कंपनियों को 3000 करोड़ रुपये का फायदा हुआ।
वित्त वर्ष 2017-2018 के दौरा सरकारी बीमा कंपनियों को 4085 करोड़ रुपये का घाटा हुआ। तो क्या वाकई मौजूद सरकार किसानों के उत्थान के लिए तत्पर है या 2014 का मैनिफेस्टो सिर्फ एक चुनावी जुमला था।

आगे बढ़ते युवाओं के इस दौर में जरूरत है एक युवा नेता की, जिसके नेतृत्व में इलाके और इलाके के लोगो का विकास हो। बिहार में पटना और मोतिहारी दो ऐसे शहर है जिन्हें एजुकेशन हब के तौर पर देखा जाता है। मोतिहारी में लाखों की संख्या में बच्चे पढाई करने के लिए आते है। लेकिन विद्यार्थियों के लिए कुछ ख़ास सुविधाएं नहीं है। जिस प्रकार मोतिहारी में निजी कोचिंग सेंटर और निजी स्कूलों का दबदबा बढ़ रहा है, वो सरकारी स्कूलों और कॉलेजों के लिए संकट है। विद्यार्थी सरकारी कॉलेज में दाखिला तो लेते है लेकिन नियमित रूप से पढाई के लिए कॉलेज नहीं जाते है। पढाई के लिए बच्चों को निजी कोचिंग सेंटर का सहारा लेना पड़ता है। जिसके लिए बच्चे को कोचिंग सेंटर को मोटी रकम (Fee) देनी पड़ती है। मोतिहारी में हजारों की संख्या में प्राइवेट कोचिंग सेंटर है और इनमें ज्यादातर कोचिंग सेंटर रजिस्टर्ड नहीं है फिर भी कोचिंग सेंटर का व्यापार चल रहा है। ऐसे में बच्चों में भ्रम की स्थिति पैदा हो जाती है और वो समझ नहीं पाते की उनके लिए कौन कोचिंग सेंटर बेहतर है। जरूरत है कि सत्ता इस पर ध्यान दे ताकि बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ न हो। लोकसभा चुनाव में अब कुछ महीने ही रह गए है। मोतिहारी लोकसभा सीट पर 25 सालों से काबिज़ कृषि मंत्री राधामोहन सिंह से जनता नाखुश है। 25 वर्षो में जितना विकास होना चाहिए उतना हुआ नहीं। जरूरत है बदलाव की और एक कुशल नेतृत्व की जो इलाके के विकास और उत्थान के लिए अग्रसर हो।

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