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महिलाओं को अपनी लड़ाई ख़ुद लड़नी होगी।

महिलाएं कभी भी पुरुषों से कमज़ोर नहीं थीं और ना ही कभी भी कमज़ोर होंगी। अब आपको आगे आना होगा और अपनी लड़ाई खुद लड़नी होगी। त्रेतायुग में जब एक महिला के चरित्र की अग्नि-परीक्षा उसके ही पति द्वारा अपमान के रूप में ली गयी थी ना वो महिला उस अपमान को सह पाई। उन्होंने खुद को धरती को समर्पित कर दिया। उसी तरह द्वापर युग में द्रोपदी नामक एक महिला के वस्त्रों को भरे महफ़िल में लूटा गया, कोई उनको अपने जांघों पे बिठाने की बात कर रहा था, तो कोई उनके साथ सोने की बात कर रहा था, उस महिला ने अपने अपमान का बदला पापियों के खून से अपने बालों को धोकर लिया। 1857 की क्रांति में भी एक वीरांगना अपने राज्य, अपने आबरू की रक्षा के लिए घोड़े पर बैठ कर हाथों में तलवार लिए तब तक अंग्रेगों से लड़ती रही जब तक उन्होनें वीरगति को न पा लिया। आज जब कल्पना चावला अंतरिक्ष में पहुँच जाती है, संतोष यादव एवरेस्ट पर पहुँच जाती है, दक्षिण-पूर्व भारत की बेटी मैरी कौम बॉक्सिंग में ये साबित कर देती है की हम महिलाओं को कम मत आंको, हरियाणा की बेटी बबिता फोगाट और ऐसे कितने उदहारण से भरा पड़ा है हमारा देश जो ये साबित करता है की हम किसी से कम नहीं है। इतिहास के पन्ने ऐसे नारियों के वीर गाथाओं से भरा पड़ा है, जिन्होंने कभी खुद को कम नहीं आकां। जब-जब पुरुष नमक शोषण कर्ता के द्वारा महिलाओं को वस्तु समझने की, भोग-विलास की सामान समझने की, पुरूसों से कम समझने की कोशिस की गयी, तब-तब  महिलाओं ने ये साबित किया कि हम किसी से भी कम नहीं हैं। आज जब दामिनी की चीख़ सुनाई देती है। बेजुवान महज 8 महीने की बच्ची के साथ रेप होता है। रिश्तेदार ही अपने अपने घर के लड़कियों के आबरू को लूट ले रहे हैं। मुज़फ्फरपुर के बालिका गृह में राजनीती के दलालों द्वारा जब 35 बहनों को दिन-रात मांस के टुकडों की तरह नोचा गया हो। और न जाने इस देश के कितने स्त्रियों के आबरू को पितृसत्तातमक समाज के भेड़ियों द्वारा लूटा जा रहा है। जो लोग संविधान की क़सम हमारे रक्षा के लिए खाते हैं, वही लोग हमें लूट रहे हैं। ऐसा तब तक होता रहेगा जबतक इस देश की महिलाएं अपनी इज्ज़त, अपनी आबरू के पहरेदारों के रूप में अपने पिता, भाई, पति, बेटा या फ़िर और किसी को मानती रहेगी। महिलाओं को अपनी लड़ाई ख़ुद लड़नी होगी। महिलाएं किसी भी तरह किसी से भी कम नहीं है। सबसे ज़्यादा अपमान तब लगता है जब एक महिला ही दूसरे महिलाओं की गुनहगार हो जाती है। ये बेटी बचाओं, बेटी पढ़ाओ वाली स्लोगन पूरी की पूरी स्त्री जाती को गाली दे रही है , स्लोगन में नारियों को ये याद दिलाया जा रहा है की आप अनपढ़ और कमज़ोर दोनों हो। इस स्लोगन की जग़ह अब ये लिखने की जरुरत है बेटा पढ़ाओ और अग़र बक्तमजी करें तो जूते लगाओ। अमित कुमार अध्यक्ष दिल्ली विश्वविद्यालय दक्षिण परिसर।

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