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“मेरा महाकुंभ 12 सालों में आता है, यह सिर्फ राजनीतिक महाकुंभ है”

अगर आप इलाहाबाद (प्रयाग) के माघ मेले से परिचित हैं, तो आपका मन इसे कुंभ नहीं मान सकता। अगर मैंने इसे कुंभ मान लिया तो 6 साल पहले गंगा जमुना के जल का दर्शन करके, खुद के लिए शुभ होने की जो सद्इच्छा, जिसे मैंने इस ब्रह्माण्ड को सौंपी थी, उसे खारिज करना होगा। वह दर्शन धर्म से जुड़ा विश्वास नहीं था और ना ही जड़ चेतन के विमर्श में खुद के लिए पक्ष चुनकर अपने लिए कोई आग्रह था।

वह सभ्यता की यात्रा में एक पड़ाव के रूप में दर्ज होने वाले एक ऐसे आयोजन के साथ जुड़ी रोचकता और निष्ठा थी, जिसके साथ मैंने अपने शुभ की आकांक्षा जोड़ दी थी। वह पवित्र थी, सहज थी, भाव से और व्यवहार से। कुछ भी आडंबरी नहीं था। अब मैं फिर से 12 साल का इंतज़ार कर रहा हूं और हर साल होने वाले 12 माघों के संयोजन को परिणित होने का इंतज़ार कर रहा हूं। तो ऐसे में मध्य काल में कुंभ की यह उद्घोषणा मुझे खटक रही है।

फोटो सोर्स- Getty

मैं सरकार की व्यवस्था और चाक चौबंद प्रशासनिक तैयारियों की प्रशंसा से पीछे नहीं हटूंगा। बेहतर समायोजन है, शासन, प्रशासन अपनी ओर से उसे संभाले हुए है। सरकार अपनी प्रशासनिक क्षमता का सर्वांगीण उपयोग करके इसे सफल बनाने में लगी हुई है इससे भी इनकार नहीं। बेहतर काम किया जा रहा है। व्यवस्था के नाम पर कई तरह के प्रयोग किए जा रहे हैं।

वह सब सफलता को प्राप्त हो उसके लिए प्रयासों में कोई कमी नहीं है (अब ऐसा प्रयास बुनियादी ज़रूरतों में नहीं दिखता उस पर फिर कभी) लेकिन सिर्फ इसलिए इसे प्रयाग में होने वाला कुंभ का दर्जा दे दूं यह मेरा मन नहीं स्वीकारता। इसे कुंभ स्वरूप ना स्वीकारना, मेरे, मेरे होने का भान है। यह उस संस्कृति का भान है जो सही को सही कहने की चेतना से आती है।

मेरा निजी होना मेरे लिए राजनैतिक नहीं हो सकता। मेरा, मेरा होना आपके लिए राजनैतिक हो सकता है, मेरे लिए निजी होना खुद से आत्मसात करने सरीखा है। ऐसे में मेरा मेरा होना, आपकी राजनैतिक महत्वाकांक्षा के आड़े आ रहा है तो आपकी राजनैतिक महत्वाकांक्षा, मेरे निजी होने की सीमाओं को लांघ लेगी यह भी मुझे स्वीकार्य नहीं। स्वीकार्य इसलिए भी नहीं क्योंकि वह मेरी जड़ों से जुड़ा आयोजन है। यह उस पहचान का विषय है जो मेरे और आपके जीवन का मोहताज नहीं। वह आपके उद्घोष की और ना ही मेरे उस उद्घोष के अनुनाद को दुहरा देने का मोहताज है।

मुझे उम्मीद है कि जितनी पीढ़ियां एक व्यक्ति याद रख पाता है, उससे कई पीढ़ियों पुराने कार्यक्रम की काल और गणना किसी सरकार बहादुर की मोहताज नहीं। उसे किसी राजनैतिक पहचान की ज़रूरत नहीं और ना ही मेरे समर्थन की। तो ऐसे में आप मुझे आयोजन की व्यवस्था का हवाला और महत्ता का उल्लेख कर मेरा समर्थन चाहते हैं तो आप मुझे खुद को नकारने के लिए कह रहे हैं।

मुझे नहीं पता कि यह मांग और उसकी सफलता आपको लक्षित लाभ पहुंचा भी रहा है कि नहीं लेकिन मुझे यह ज़रूर पता है कि इस भाव ने और इस मांग ने एक ऐसी किंकर्तव्यविमूढ़ परिस्थितियां पैदा कर दी हैं, जो निष्ठुर हैं और निर्मम भी और यह आयोजन निर्मम नहीं बल्कि निर्मल होने के भाव से भरा हुआ है।

ऐसे में आपकी मांग और उद्घोष को दोहरा देने का साहस और नैतिक बल मेरे अंदर नहीं है। जो नीतिगत नहीं वह राजनीति के लिए कैसे बेहतर होगा, वह राजनैतिक विश्लेषक जाने पर मैं सहज रूप से इसे पहचान के संकट के रूप में देखता हूं। पहचान बदलकर हित साधना, छद्म होने के सरीखा है, जो पूर्ण तो कत्तई नहीं हो सकता।

आंकड़ें और आयोजन की प्रशंसा आपको मुबारक हो, मुझे मेरा माघ मुबारक है। जो जब पूर्ण होगा तो सिर्फ कुंभ होगा। 12 की संख्या का कुंभ, चिरकाल से अपनी स्वीकार्यता के साथ का कुंभ।

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