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क्या 2020 तक कलाम के सपनों का भारत बन पाएगा?

बाल मज़दूरी

बाल मज़दूरी

आज 21वीं सदी में एक तरफ जहां हम तकनीक की दिशा में तेज़ी से आगे बढ़ रहे हैं, जहां चांद पर जाने की बातें अब आम लगने लगी हैं वहीं दूसरी ओर इसी समाज में बाल श्रम जैसी चीज़ें एक रिवायत सी बन गई है। बाल श्रम अपराध की श्रेणी में होते हुए भी अब तो लोगों के कल्चर का हिस्सा बन चुका है।

इस समाज में ऐसी कोई जगह नहीं है जहां बाल श्रम ना होता हो। खेलने-कूदने और पढ़ने की उम्र में ना जाने उनसे क्या-क्या काम कराया जाता है। बच्चे आपको कहीं भी या तो कूड़ा उठाते नज़र आ जाएंगे या फिर किसी दुकान में काम करते तो दिख ही जाएंगे। आज कल तो मासूम बच्चों के ज़रिए अपराधी ‘अपराध’ को भी अंजाम दे रहे हैं।

क्या यही है 21वीं सदी का समाज जो गरीबी, महंगाई और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पर अपनी बेबाक प्रतिक्रिया देता है। हम समझना ही नहीं चाहते हैं कि बाल मज़दूरी जैसी समस्याओं का समाधान भी हमें ही तलाशना होगा। अगर वक्त रहते हमने इन चीज़ों को रोकने की कोशिश नहीं की तब वह दिन दूर नहीं जब गरीब घरों से हर बच्चा इस काम को अपनाता जाएगा।

आप सब जब इन बातों को पढ़ रहे होंगे तब ज़्यादातर लोग या तो देश के 70वें गणतंत्र दिवस मानाने की तैयारी कर रहे होंगे या बहुत सार लोग देश प्रेम की भावना से ओत-प्रोत होकर अपने बच्चों या दोस्तों के साथ छुट्टी मना रहे होंगे।

क्या भारत बन पाएगा कलाम के सपनों का राष्ट्र?

हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि अगले वर्ष आने वाला गणतंत्र दिवस कोई साधारण वर्षों का गणतंत्र दिवस नहीं होगा। अब आप सोच रहे होंगे कि मैंने ऐसा क्यों कहा? तो जान लीजिए, आने वाला वर्ष वह वर्ष है जिसके बारे में हम सबों के आदर्श पूर्व राष्ट्रपति ए.पी.जे अब्दुल कलाम ने कहा था कि भारत 2020 तक एक विकसित राष्ट्र हो जाएगा।

मौजूदा दौर में उनकी यह सोच सार्थक होती नहीं दिख रही है। हमने अपने हुक्मरानों से भी सवाल करना बंद कर दिया है। कलाम की बातों का उद्देश्य था कि हम युवा सोच की ताकत से अपनी इस उपलब्धि को पूरा करेंगे लेकिन दु:ख की बात है कि हमने ऐसा किया ही नहीं।

पूर्व राष्ट्रपति ए.पी.जे अब्दुल कलाम। फोटो साभार: गूगल फ्री इमेजेज़

ऐसे में गणतंत्र दिवस से पहले बेहद ज़रूरी है कि हम कलाम के सपनों को साकार करने की दिशा में कोई सार्थक पहल करें। हमें यह भी सोचना होगा कि क्या इस देश का युवा इतना सशक्त हो चुका है जो बाल मज़दूरी जैसी सामाजिक बीमारी का खात्मा कर सके।

इन सभी बातों के साथ एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि जिस देश में आज भी ‘बाल श्रम’ बड़ी चुनौतियों में से एक है, उस देश का युवा सशक्त कैसे हो सकता है? क्योंकि ‘बाल श्रम’ करने वाले बच्चे ही एक दिन देश के युवा होंगे। अतः हम सबों को मिलकर इसके खिलाफ आगे आकर बचपन को बचाना होगा। तो आइए इस गणतंत्र दिवस के मौके पर देश को ‘बाल श्रम’ मुक्त करने का संकल्प लें।

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