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झूठे वादों और चुनावी जुमलों पर एक कविता

राजनैतिक रैली

राजनैतिक रैली

वे लोग जो सरकार में हैं या सरकार खुद को मानते

जीतने के बाद ना जनता की सुनते कभी

ना ही जनता को जानते।

 

समस्याएं ढेर सारी निराकरण मिलती नहीं

जीतने के बाद नेता जनता की सुनते नहीं।

 

युवा बेरोज़गार है, पढ़ा-लिखा बेकार है

मिलता ना रोज़गार है, ऐसे नेता और सरकार हैं।

 

झूठे वादे, घोषणाएं करते हैं लाखों मगर

लोग भूखे मर रहे, बेअसर सरकार है।

 

किसानों को लालच देकर करती झूठे वादे

जीतने के बाद सारे भूल जाती कायदे

देखती सरकार केवल अपने फायदे।

 

कुर्सी पर बैठा हुआ हर नेता गद्दार है

जनता को गुमराह करके चला रहा सरकार है।

 

लाखों समस्याओं से जूझती हैं जनता इस देश में

नेताजी तो ऐश करते घूमते विदेश में।

 

डबल चेहरे हर नेताओं के हैं इस देश में

छल रहे हैं सिर्फ जनता को नेताओं के वेश में।

 

जुमलेबाज़ और भ्रष्टाचारी नेता को धिक्कार है

जनता की ना मदद करती कोई भी सरकार है।

 

पांच सालों बाद आती फिर जनता की याद

करते हैं फिर बातें और वादे इस बार होगा बदलाव

बस करिए इस बार सहयोग और जिताइए चुनाव।

 

भर-भर के परोसते हैं फिर सबको शाही पुलाव

अब ऐसे नेताओं से बचना जो भ्रष्ट और लाचार हैं

वोट देना उसको ही जो सच्चा, अच्छा और समझदार है।


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