सामान्य वर्ग के गरीबों को जो 10 प्रतिशत आरक्षण दिया जा रहा है, उसका फायदा आखिर किसे मिलने वाला है? कुछ लोग इसे समझे बगैर दिन-रात टीवी पर बोल रहे हैं कि सवर्ण जाति के लोगों को 10 प्रतिशत आरक्षण दिया गया है। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि यह लोग सिर्फ अफवाह ही फैला रहे हैं।
वित्त मंत्री और समाजिक न्याय मंत्री सभी का कहना है कि इसका फायदा सामान्य वर्ग के गरीब लोगों को होगा जिनमें हिन्दू, मुसलमान, सिख और ईसाई सभी शामिल हैं। इन सबके बीच कुछ लोगों का इसे सिर्फ सवर्णों के लिए बताना वाकई में गलत है।
यह आरक्षण बहुत अच्छी सोच है क्योंकि, देश के सामान्य वर्गों में गरीबी बहुत ज़्यादा हैं लेकिन अमीरों की तादाद भी काफी अधिक है। बहुत लंबे समय से मांग चल रही थी कि सामान्य वर्गों में जो गरीब लोग हैं, उनके लिए कुछ नया किया जाए। ऐसे में यह आरक्षण उसी का नतीज़ा है।
संविधान के मुताबिक आरक्षण का आधार सिर्फ समाजिक और शैक्षणिक है जिसके ज़रिए अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्गों को क्रमशः 15 प्रतिशत, 7.5 प्रतिशत और 27 प्रतिशत आरक्षण मिलता है। वही सुप्रीम कोर्ट ने रिज़र्वेशन के लिए 50 फीसदी की सीमा तय रखी है।
मोदी सरकार ने अपने कार्यकाल के चंद दिनों के अंदर संसद सत्र के अंतिम दिन 10 प्रतिशत वाले आरक्षण के लिए संविधान संशोधन विधेयक पेश कर दिया। सबसे मज़ेदार बात यह है कि लोकसभा में राजद को छोड़कर अधिकांश दलों ने इसका समर्थन भी किया है क्योंकि, अधिकतर दलों के मैनिफेस्टो में इस आरक्षण की बात शामिल है।
लोकसभा और राज्यसभा दोनों सदनों से इस विधेयक के पास होने के बाद राष्ट्रपति रामनथ कोविंद ने भी मंजूरी दे दी। इसमें कोई दो राय नहीं है कि यह विधेयक बहुत महत्वपूर्ण है लेकिन क्या इस विधेयक को जस का तस स्वीकार कर लिया जाना चाहिए था? क्या इस पर एक अच्छी बहस नहीं होनी चाहिए थी? इसे लगभग इस सरकार के अंतिम सत्र के अंतिम दिन लाने पर सवाल नहीं पूछा जाना चाहिए?
कुछ सवाल हैं जो बीजेपी की मंशा ज़ाहिर करती हैं। अचानक से इस विधेयक को लाने के पीछे की बड़ी वजह ‘हिन्दी भाषित राज्यों’ में भाजपा की करारी शिकस्त है। दूसरी वजह राम मंदिर है जो कुछ समय से बाज़ारों में घूम रहा है, जिसके कारण बीजेपी बैकफुट पर आ गई है। इस मुद्दे से लोगों का ध्यान भटकाने के लिए भाजपा ने बाज़ारों में आरक्षण के मुद्दे पर एक प्रयोग किया है। जो लोग राम मंदिर को लेकर बीजेपी से सवाल कर रहे हैं, वे कम-से-कम आरक्षण के कारण चुनाव तक चुप ही हो जाएंगे क्योंकि बीजेपी ने उन्हें आरक्षण का लॉलीपॉप दिखा दिया है।
अब बात करते हैं ‘क्यों जुमला है यह आरक्षण।’ सबसे पहले हमें यह समझना होगा कि जो क्राइटेरिया फिक्स किया गया है, वह अपने आप में सवालिया निशान है। बताइए, साल में 8 लाख कमाने वाला व्यक्ति गरीब है। जो व्यक्ति साल में 15 लाख कमाता है, वह 8 लाख अपनी आय घोषित करता है और साहेब का क्राइटेरिया भी 8 लाख ही है।
इसके अलावा पांच एकड़ से कम ज़मीन वाले लोग भी इस आरक्षण के हकदार हैं। बात यह है कि अपने देश में लगभग 14 प्रतिशत लोगों के पास 5 एकड़ ज़मीन है। ऐसे में तो देश की 99 प्रतिशत जनसंख्या इस आरक्षण के दायरे में आ जाएगी। बताइये, 99 प्रतिशत लोगों के लिए बस 10 प्रतिशत आरक्षण?
यह जुमला नहीं तो और क्या? अगर, साहेब को आरक्षण ही देना है तब मौजूदा आरक्षण के लागू होने के बाद जो 60 प्रतिशत वाला आरक्षण होगा उसे निजी क्षेत्रों में भी लागू करा दें। साबेह निजी क्षेत्रों में नहीं दे सकते हैं ना आरक्षण क्योंकि उनकी दोस्ती खतरे में पड़ जाएगी। आरक्षण वहां दे रहे हैं जहां नौकरी ही नहीं है। केन्द्र सरकार को ज़रूरत है कि आरक्षण का लॉलीपॉप दिखाने के बजाए पहले उन 24 लाख खाली पदों पर नियुक्तियां करें।
गौरतलब है कि 1992 में नरसिंह राव सरकार ने गरीब सवर्णों के लिए आरक्षण का प्रावधान किया था लेकिन संविधान संशोधन नहीं होने के कारण सुप्रीम कोर्ट ने निरस्त कर दिया।
लोकसभा मे उपेंद्र कुशवाहा ने सही कहा है कि आरक्षण सबसे पहले उन्हें मिलना चाहिए जिनके बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ रहे हैं क्योंकि सबसे ज़्यादा आरक्षण की ज़रूरत उन्हें है।