Site icon Youth Ki Awaaz

क्या कुंभ में भी अपना राजनीतिक फायदा तलाश रही है बीजेपी?

अर्ध कुंभ

वर्तमान सरकार को पहले से मौजूद चीज़ों की रीमॉडलिंग करने की आदत है। वार्षिक बजट की तारीख को आगे बढ़ाने के अलावा अलग-अलग शहरों के नाम बदले गए जिसे कैसे भूला जा सकता है?

कुंभ मेला 15 जनवरी 2019 से शुरू हो चुका है। यह अर्ध कुंभ है जो हर 6 साल में आयोजित किया जाता है। इससे भी बड़ा आयोजन पूर्ण कुंभ में होता है जो हर 12 साल में एक बार आता है।

साल 2019 ‘कुंभ मेले’ के साथ-साथ 2019 लोकसभा चुनाव की वजह से भी सुर्खियों में है। ऐसे में सबसे बड़ा धार्मिक कार्यक्रम सबसे बड़े राजनैतिक आबादी वाले राज्य में हो रहा है जहां योगी जैसे भगवा नेता फिलहाल विराजमान हैं।

कुंभ 2019

प्रयागराज (इलाहाबाद) में इस अर्ध कुंभ का आयोजन किया जा रहा है। इस आयोजन को ‘दिव्य कुंभ-भव्य कुंभ’ का टैग लाइन भी दिया जा रहा है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इस अर्ध कुंभ में लगभग 4200 करोड़ रुपए खर्च किया जा रहा है, जबकि 2013 के विशाल पूर्ण कुंभ का आयोजन इस रकम के तीसरे भाग में ही किया गया था। शहर के पुराने लोगों का कहना है कि उन्होंने इस तरह का आयोजन पहले कभी नहीं देखा है।

प्रयागराज में सड़कों को चौड़ा किया गया है और लाइटें लगाई गई हैं। कुंभ मेले के लिए कई जगहों पर पेंट किया गया है लेकिन एक चीज़ जो आपको आस-पास सब जगह दिखाई देती है, वह ‘भगवाकरण’ है।

वहां के लोकल मैग्ज़ीन के एडिटर के के पांडे का कहना है कि सभी पुलों और दीवारों पर भगवा पोत दिया गया है। यहां तक कि यूनिवर्सिटी की दीवारों पर भी यही सब दिखने लगा है।

उन्होंने कहा, “इस मामले में पीआईएल भी दायर की गई है जिसमें सड़कों को चौड़ा करने के लिए 16वीं सदी में शेर शाह सूरी द्वारा बनाया गया एक गेट को ढहा दिया गया। उनका कहना है कि इस गेट का ऐतिहासिक महत्व था। सन् 1857 की क्रांति में इसका बेहद खास महत्व था और अब इस गेट को ढहा दिया गया है। इलाहाबाद से ‘प्रयागराज’ करके शहरों की हिन्दू ब्रांडिंग की जा रही है।”

नोट: तस्वीर प्रतीकात्मक है। फोटो साभार: सोशल मीडिया

हिन्दू मान्यताओं के हिसाब से माना जाता है कि समुद्र मंथन से अमृत कलश बाहर निकला था और इंद्र का बेटा जयंत इस कुंभ को लेकर भागा ताकि यह राक्षसों के हाथों में ना लगे। 12 दिन तक राक्षस ‘जयंत’ का पीछा करते रहे। उस अमृत कलश से चार बूंद धरती के अलग-अलग हिस्सों में गिरी। वह जगहें हैं- प्रयागराज, नासिक, उज्जैन और हरिद्वार जहां पर इस विशाल कुंभ का आयोजन होता है।

फिलहाल इस कुंभ में वोटर्स को अमृत की तरह देखा जा रहा है और जैसा कि सभी को पता है भारतीय जनता पार्टी इसे अपनी ओर खींचना चाह रही है। कुछ लोगों का मानना है कि यह बीजेपी कि यह रणनीति का हिस्सा है जिसमें हिन्दू वोटर्स को आकर्षित किया जा सके।

क्या बीजेपी को इससे फायदा होगा?

राजनैतिक विश्लेषकों का कहना है कि कुंभ मेला अगर बिना किसी अशांति के पूरा होता है तब बीजेपी को इससे कोई फायदा नहीं होने वाला है। उनकी उम्मीदें इसी पर टिकी हैं कि किसी तरह का संघर्ष हो और वोटों का ध्रुवीकरण हो सके।

कुछ लोगों का कहना है कि मेले में स्थानीय और सामान्य लोगों को दर्शन करने का अवसर बहुत मुश्किल से मिलता है। वीआईपी यहां आते हैं और सीधे सभी तरह की सुविधाओं का आनंद लेते हैं। भक्तों को 12-14 किलोमीटर तक चलना पड़ता है और कई बार उन्हें खुले आसमान के नीचे ही सोना पड़ता है।

Exit mobile version