प्रेम ना तो दया है और ना ही भीख है। यह आनन्द, आदर और समर्पण जैसे तत्वों का मिश्रित भाव है। यह ह्रदय की शुचिता से बना ऐसा मेघ है जो मन के आकाश पर मौन रूप में विचरण करता है और पवित्र आत्माओं की ऊष्मा पाते ही स्वेच्छा से बरसता है।
इस बारिश की एक बूंद एक सागर की तरह, एक झोंका प्राण वायु सा और एक पल एक जीवन के समान है। यह लेन-देन, हानि-लाभ, दया, कृपा और उपकार से बहुत उपर है।
वर्तमान समय में प्रेम के स्वरूप को काफी अपवित्र कर दिया गया है। जो रोमियो अंग्रेज़ी साहित्य में शोध का विषय बनता रहा है, उस नाम को अश्लीलता का पर्याय बनना पड़ रहा है। क्या वास्तव में इसके लिए रोमियो ज़िम्मेदार हैं?
क्या वास्तव में रोमियो का कृत्य इतना घिनौना था कि उसे रोकने के लिए ‘एंटी रोमियो स्क्वायड’ बनानी पड़े और उसे प्रतीक के रूप में इस्तेमाल किया जाए? या फिर हम शब्दों में इतने दुर्बल हो चुकें हैं कि हमें गैर कानूनी कार्यों को परिभाषित करने के लिए साहित्यजनक चरित्रों की शरण में जाना पड़ रहा है?
ऐसा प्रतीत होता है कि सामाजिक विकृतियों की ज़िम्मेदारी से हम खुद को बचाए रखना चाहतें हैं और उन्हें किसी भाषा या साहित्य की ओट में रखकर अपने को बहुत ईमानदार और चरित्रवान साबित करने की मुहीम का हिस्सा बने रहने की होड़ में लगे रहना हमारी रणनीति बन चुकी है।
सुसंस्कृत समाज की रचना साहित्य को समझने और सहेजने से होगी। रोमियो को बदनाम करने से या प्रेम रूप भगवन श्रीकृष्ण के बारें में अमर्यादित टिपण्णी करने से कुछ नहीं होगा। प्रेम को प्रेम और भगवान को भगवान बनाए रखना ज़रूरी है।
संस्कृत, हिन्दी, उर्दू और अंग्रेज़ी साहित्य की अनेक कृतियों ने अजर और अमर प्रेम कथाओं को जीवंत किया है। इनमे वेद व्यास ने श्री कृष्ण और राधा के प्रेम रूप का दर्शन मात्र ही नहीं कराया बल्कि उन्हें प्रेम के सर्वोत्तम और अनुकरणीय देवता के रूप में स्थापित किया।
आज कोई कथा उनके सन्दर्भ के बिना अधूरी रहती है। महाकवि कालिदास ने अभिज्ञान शाकुंतलम द्वारा शकुंतला और दुष्यंत की मार्मिक प्रेम गाथा को विश्व के समक्ष रखा। डा. धर्मवीर भारती की कृति “गुनाहों का देवता” ने चन्दर और सुधा के चरित्रों को अमर बना दिया तो शेक्सपियर ने रोमियो जूलिएट द्वारा प्रेम के विविध पक्षों और इसमें निहित अन्तर्द्वन्दों को भावपूर्ण कथानक में पिरोकर साहित्य की अमर कृति बना दी। इन सभी कवियों और कृतियों ने ‘प्रेम’ को मनुष्य के पवित्रतम भाव के रूप में स्थापित किया।
प्रेम के प्रतीकों, पदचिन्हों, लीलाओं, परंपराओं, कथाओं, वनों, कुंडों, नदियों, बगीचों और विहारों पर ही माथा टेकना है तो ब्रज आइए। वृंदावन, बरसाना, गोकुल, गोवर्धन, वलदेव जैसे अनेक अमर स्थान यहां स्थित हैं जिन्हें श्री कृष्ण ने प्रेम के मंत्रों और भावों से सींचा हुआ है, जो जीवंत है और खाली नहीं हो सकते।
कण-कण में यह अनुभूति व्याप्त है जिसे स्पर्श करते ही आपके सारे संगीत बज उठते हैं। आपके टूटे हुए मन शक्ति से भर जाते हैं। यहां जो भी दिखता है वह भावों से दिखता है। यहां दृष्टि काम नहीं करती। अनुभूतियों के संकर्षण से आपके पग बढ़ते जाते हैं। यहां जो भी है बहुत गहरा, विराट और शास्वत है। आप सिर्फ इसमे डूब सकते हैं, पवित्र हो सकते हैं और जीवन में चैतन्यता के साथ बढ़ सकते हैं।
यहां प्रेम दफन नहीं हुआ बल्कि प्रस्फुटित हुआ है। यहां रागों ने जन्म लिया है। संगीत को स्वर मिले हैं। इसलिए सिर्फ ताजमहल देखकर निकल जाने वाले लोग प्रेम की एक इमारत भर ही देख पाते हैं उसे जीना भी है तो वृन्दावन आइए। रुकिए और अनुभूतियों को संग्रहीत कीजिये। यहां लाखों सैलानी कण-कण को चूमते हुए मिलेंगे। हज़ारों विदेशी प्रेम का भजन गली-गली और मंदिर-मंदिर गाते हुए मिलेंगे।