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विश्व हिन्दी दिवस: जानिए कैसे बढ़ रही है हिन्दी की लोकप्रियता

दिल्ली पुस्तक मेला

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हिन्दी अब एक ऐसी भाषा नहीं है जो सिर्फ भारत में बोली या समझी जाती है। अब हिन्दी दुनिया की चौथी सबसे ज़्यादा बोली जाने वाली भाषा है जिसे आज दुनिया भर के 176 विश्वविद्यालयों में पढ़ाई जाती है, जिनमें अकेले 45 विश्वविद्यालय अमेरिका में ही हैं। इतना ही नहीं भारत के बाहर हिन्दी में रोज़ाना करीब 25 अखबार और पत्रिकाएं छपती हैं।

हिन्दी की अपनी पहचान सिर्फ एक भाषा भर की ही नहीं है जो कुछ सौ सालों से बोली या पढ़ी जाती हो, बल्कि हिन्दी हज़ारों सालों की हमारी भारतीय सभ्यता के इतिहास का एक प्रतीक है। हिन्दी कई भाषाओं का एक मिला-जुला रूप है। हिन्दी पर पाली, संस्कृत, अपभ्रंश और फारसी का अच्छा खासा प्रभाव है।

यहां तक कि हिन्दी को उसका नाम भी फारसी शब्द ‘हिंद’ से मिला है। अरब देशों में भारत और भारतीयों के लिए भी ‘हिन्दी’ या ‘अल-हिन्दी’ ही इस्तेमाल किया जाता है। जबकि भारत में हिन्दी को पहले ‘खड़ी बोली’ के नाम से बुलाया जाता था।

हिन्दी में पहले प्रभाव अवधी, मैथली और बृज जैसी भाषाओं का ज़्यादा असर था और मुगल शासन का वक्त आते-आते हिन्दी में फारसी भाषा के शब्द भी जुड़ते चले गए। एक वक्त तक हिन्दी और उर्दू एक ही हुआ करती थी मगर 18वीं सदी में उर्दू को हिन्दी से अलग करने पर ज़ोर दिया जाने लगा और इस तरह ‘उर्दू’ हिन्दी से निकल कर एक नई भाषा बनी। साल 1881 में बिहार हिन्दी को आधिकारिक भाषा का दर्जा देने वाला पहला राज्य बना।

इसके बाद अंग्रेज़ों के समय भी खुद को ज़िंदा रखने में हिन्दी कामयाब रही और आज़ादी मिलने के साथ ही 14 सितम्बर 1949 के दिन हिन्दी को संवैधानिक भाषा का दर्जा मिल गया। तभी से 14 सितम्बर को राष्ट्रीय हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता है। साल 2006 भी हिन्दी के लिए बहुत अच्छा रहा जब 10 जनवरी को विश्व हिन्दी दिवस के तौर पर मनाने की शुरुआत हुई। तभी से हर साल 10 जनवरी को दुनिया भर के भारतीय दूतावासों और दफ्तरों में हिन्दी से जुड़े कार्यक्रम किए जाते हैं, जिनका एकमात्र मकसद दुनिया भर के देशों में हिन्दी का प्रचार-प्रसार करना होता है।

दिल्ली पुस्तक मेला। फोटो साभार: Getty Images

भले ही आपको यह लगता हो कि आज के दौर में हिन्दी का प्रभाव पहले जैसा नहीं रहा लेकिन सच यह है कि हिन्दी का वर्चस्व पहले से ज़्यादा बढ़ चुका है। ऑनलाइन और डिजिटल मार्केटिंग की दुनिया में हिन्दी एक ऐसा हथियार बन चुका है जो बड़ी आसानी से आपके घरों तक पहुंच सकती है।

पिछले 3-4 सालों में सस्ते स्मार्टफोन और इंटरनेट वाले दौर में इससे जुड़ने वाले ज़्यादातर लोग छोटे शहरों और गाँवों से हैं। इनमें से ज़्यादातर लोग पहली बार इंटरनेट से जुड़े हैं और वह हिन्दी या किसी अन्य भारतीय भाषाओं को ज़्यादा आसानी से समझते हैं। यही वजह है कि हिन्दी अब टेक्नोलॉजी की ज़ुबान बन चुकी है, जिसके कारण आप ट्विटर, फेसबुक और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स का प्रयोग भी हिन्दी में कर पा रहे हैं।

आज भले ही इंटरनेट पर लोग इंग्लिश में ‘International Hindi Day’ या ‘Hindi Day’ लिखकर ही सर्च कर रहे होंगे लेकिन कम से कम  हिन्दी से जुड़ी ऐसी चीजें गूगल के सर्च ट्रेंड में आना शुरू तो हुई ही है। यह हिन्दी का बढ़ता असर ही है जिसकी वजह से चाहे यूट्यूब हो या वैसी कोई भी साइट, वहां हिन्दी में मटेरियल बहुत ज़्यादा मात्रा में अपलोड होने लगे हैं।

दिल्ली पुस्तक मेला। फोटो साभार: Getty Images

अब मार्केट को भी अच्छे हिन्दी कंटेंट राइटर्स की सख्त ज़रूरत है, जिन्हें हिन्दी का अच्छा ज्ञान हो। हिन्दी कंटेंट राइटिंग सर्विसेज़ का यह नया बाज़ार युवाओं के लिए रोज़गार के नए अवसर खोल रहा है और आने वाले कल में इसके फलने-फूलने के पूरे आसार हैं। ऐसे में यह सोच पूरी तरह गलत है कि हिन्दी रोज़गार नहीं दे सकती।

अभी भारत में इंटरनेट का विस्तार हो रहा है और आगे भी इसके विस्तार की काफी संभावनाएं हैं। सिर्फ इतने विस्तार से ही इंटरनेट पर हिन्दी कंटेंट की मांग 94 % की तेज़ी से बढ़ रही है। सोचने वाली बात यह है कि जब इसका विस्तार पूरी तरह हो चुका होगा, तब हिन्दी की पहुंच और ताकत बढ़कर कितनी होगी? शायद इसलिए हिन्दी अब फिर से भारत के माथे की बिंदी बनने की राह पर है।

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