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“मॉल में वॉशरूम साफ करने वाली उस महिला की हालत ने मुझे शर्मिंदा कर दिया”

जो लोग तुम्हें, तुम्हारे नाम से नहीं,

तुम्हारे काम से पुकारते हैं,

जो लोग मनुष्य नहीं समझते तुम्हें,

वे लोग हर सुबह तुम्हारे आने का इंतज़ार करते हैं,

तुम चाहो तो उनसे छीन सकते हो,

उनकी सुबह।

किसी कवि की लिखी यह पंक्तियां मुझे एकदम सटीक और सच ही लगी जब मेरा सामना ऐसी ही एक परिस्थिति से हुआ।

फोटो सोर्स- Pexels

हम सभी मॉल में जाते हैं, वहां बड़े-बड़े ब्रॉन्डों में शॉपिंग करने में गर्व महसूस करते हैं। मॉल का वॉशरूम भी हम सभी अक्सर उपयोग करते हैं। क्या कभी वहां मौजूद सफाई कर्मचारियों को देखा है? जो हमारे उपयोग किए गए टॉयलेट को लगातार साफ करते रहते हैं, ताकि हमें कभी भी असुविधा का सामना ना करना पड़े। इसके लिए उन्हें हर वक्त वहां मौजूद होना पड़ता है। क्या हम और आप कभी इतनी देर तक वॉशरूम में वक्त बिता सकते हैं? सभी का जवाब ना में ही होगा पर मॉल में मौजूद सफाई कर्मचारियों को अपनी ड्यूटी ऐसे ही पूरी करनी पड़ती है।

मैं भी आज के युवाओं की तरह मॉल जाना पसंद करती हूं। एक दिन एक ऐसे ही मॉल में जाना हुआ तो मैंने वहां का वॉशरूम प्रयोग किया। जैसे ही बाहर जाने को मुड़ी तो देखा कि दरवाजे़ के पास एक महिला सफाईकर्मी बीमारी की हालत में वॉशरूम के अंदर दरवाज़े पर बैठी थी। मैंने पूछा कि इतनी बीमार होकर आप यहां वॉशरूम के ठंडे फर्श पर क्यों बैठी हैं? उसने बताया कि ऐसा करना उसकी ड्यूटी है। उसकी हालत देखकर मुझे बेहद अफसोस हुआ कि मैं उसके लिए व्यक्तिगत तौर पर कुछ कर नहीं सकती।

हममें से कई लोग मॉल के कॉमन वॉशरूम को उपयोग करना अपना अधिकार समझते हैं और बड़े ही बेतरीब तरीके से उसका उपयोग यह सोचकर करते हैं कि हमें क्या करना है, बाद में पानी आदि चलाकर। सफाई कर्मचारी है ही, वही साफ कर देगा लेकिन ऐसा करने से पहले हमें उन सफाई कर्मचारियों के बारे में सोचना चाहिए जो हर वक्त वहां मौजूद होते हैं। उन्हें अपने वर्किंग आवर बड़ी ही मजबूरी में वॉशरूम की बदबू को झेलते हुए गुज़ारने पड़ते हैं और ऊपर से हम बेतरतीब तरीके से वॉशरूम उपयोग करके उनकी मुश्किलों को और बढ़ा देते हैं।

सामाजिक बुराई तो यह है कि एक व्यक्ति गंदगी फैलाए और दूसरे व्यक्ति द्वारा उसे साफ किया जाए और जो व्यक्ति गंदगी साफ करे, उसके साथ भेदभाव भी हो। उसकी गरिमा व सम्मान को ठेस पहुंचाई जाए और उसे अस्पृश्य समझा जाए। इनकी सेवाओं का लाभ लेने में तो हमें कोई शर्म नहीं आती है लेकिन इन्हें अपना मानने में शर्म आती है।

ऐसा कोई मनुष्य होगा जो स्वेच्छा से दूसरे मानव का मल-मूत्र साफ करने का कार्य करना चाहेगा या पुश्तैनी सफाई कार्य करना चाहेगा? तथाकथित उच्च कुल का आदमी मरते मर जायेगा किंतु ऐसा गंदा काम वो हरगिज़ नहीं करेगा।

सरकारी आंकड़े चाहें जो दावे करते हो किंतु सामाजिक बदलाव अभी भी कोसों दूर हैं। हालांकि सरकार की मंशा इन्हें ऊपर उठाने की रही है और इसलिए ही इन्हें समाज में बराबरी दिलवाने के उद्देश्य से ही आरक्षण तथा अन्य कानूनी सुविधाए मुहैया कराई गई थीं लेकिन दुर्भाग्य यह रहा कि ये सारी कार्रवाई कथनों तक ही सीमित रही।

मॉल में यह नियम नहीं होना चाहिए जिसमें सफाई कर्मचारियों को वर्किंग आवर में वॉशरूम के अंदर ही रहने को बोला जाए। क्योंकि हम तो शायद कुछ मिनट ही वहां रह पाए तो फिर यह कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि सफाई कर्मचारी सारा दिन वहां बिताए। अपने ही जैसे किसी मनुष्य को एक पालतू जानवर जैसा दर्जा देने की निंदा होनी चाहिए।

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