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“क्या बीजेपी की ‘समरसता खिचड़ी’ दलितों को लुभाने की तरकीब थी?”

समरसता खिचड़ी

समरसता खिचड़ी

अभी हाल ही में पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में बीजेपी को जबरदस्त पटखनी मिली है। बीजेपी के लिए स्ट्रांग पॉलिटिकल ज़ोन कहे जाने वाले हिन्दी पट्टी के तीन बड़े राज्यों- मध्यप्रदेश, राज्स्थान और छत्तीसगढ़ में पार्टी को काँग्रेस के हाथों चुनाव में हार का सामना करना पड़ा।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बार-बार अपनी रैलियों में ‘काँग्रेस मुक्त भारत’ की बात कहते रहते हैं लेकिन हिन्दी पट्टी कहे जाने वाले राज्यों में बीजेपी की अप्रत्याशित हार ने उन्हें भी सोचने पर विवश कर दिया होगा। इस हार के पीछे लोगों के बीच कई धारणाएं हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मध्यप्रदेश में हुए मंदसौर कांड, भीमा कोरेगाँव मामला और पिछले चार सालों में दलितों पर हिंसात्मक घटनाएं बीजेपी की हार की बड़ी वजह रही है।

एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक पिछले दस सालों में दलित उत्तपीड़न के मामलों में 66 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है। इस बीच देश में रोज़ाना  6 दलित महिलाओं से दुष्कर्म के मामले दर्ज़ किए गए हैं। आंकड़ों के मुताबिक भारत में हर 15 मिनट में दलितों के साथ आपराधिक घटनाएं होती हैं।

फोटो साभार: सोशल मीडिया

बहरहाल, 5 राज्यों में चुनाव सम्पन्न होते ही बीजेपी 2019 में दलित वोटरों को लुभाने की तैयारी में जुट गई है। इसकी बानगी हमें दिल्ली के रामलीला में हुए ‘समरसता रैली’ में दिख सकती है। रविवार को दिल्ली के रामलीला में बीजेपी द्वारा ‘भीम महासंगम रैली’ का आयोजन किया गया। मनोज तिवारी की अध्यक्षता में आयोजित इस रैली को ‘समरसता रैली’ का भी नाम दिया गया। इस मौके पर बीजेपी के दलित नेता सांसद उदित राज भी मौजूद रहे।

इस चुनावी रैली में 3 लाख दलित परिवारों के घरों से चावल, दाल, मसाले आदि लाकर खिचड़ी बनाई गई और इस रैली में आए सभी लोगों को खिलाया गया। ऐसा बताया जा रहा है कुल मिलाकर 5000 किलो खिचड़ी बनाई गई है जो कि एक वर्ल्ड रिकार्ड भी है।

दिल्ली बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी ने कहा, “बीजेपी की इस रैली का ध्येय ‘सामाजिक समरसता’ को बढ़ावा देना है। ‘सामाजिक समरसता’ ऐसा विषय है जिसे स्पष्टता से क्रियान्वित करना आज समाज और राष्ट्र की मुलभूत आवश्यकता है। इसके लिए सर्वप्रथम हमें ‘सामाजिक समरसता’ के व्यापक अर्थ को समझना ज़रूरी है।”

उन्होंने कहा, “संक्षेप में इसका अर्थ है ‘समाजिक समानता’। यदि इसका व्यापक मतलब निकालें तब इसका अर्थ है- जातिगत भेदभाव और अस्पृश्यता का जड़ से उन्मूलन कर लोगों में परस्पर प्रेम और सामाजिक सौहार्द बढ़ाना तथा समाज के सभी वर्णों एवं वर्गों के मध्य एकता स्थापित करना।”

मनोज तिवारी। फोटो साभार: Getty Images

मनोज तिवारी ने आगे कहा कि आज इस रैली के माध्यम से हम देश को दिखाना चाहते हैं कि हमारे यहां दलितों के साथ कोई भेद-भाव नहीं होता है। आज दलित के घर से चावल-दाल आया है और दलित ही खिचड़ी बना रहे हैं। यहां सभी वर्ग और वर्ण के लोग उनके हाथों से बनी खिचड़ी खा रहे हैं। यही तो है सामाजिक समरसता।

इसी दौरान मनोज तिवारी ने काँग्रेस और राहुल गाँधी पर विवादित बयान देते हुए कहा कि राहुल गाँधी चोर है और उनका खानदान भी चोर है। वही काँग्रेस प्रवक्ता प्रियंका चतुर्वेदी का कहना है कि यह रैली मात्र एक नौटंकी है और ऐसी रैली करना राजनीतिक विवशता मात्र है।

बहरहाल, अब यह देखना है कि बीजेपी 2019 से पहले दलित वोट बैंक को साधने के लिए और क्या-क्या पैंतरे अपनाती है। इससे पहले बीते 5 राज्यों के विधानसभा चुनावों में बीजेपी के नेता अलग-अलग ढंग से दलितों को साधने की कोशिश कर चुके हैं।

मध्यप्रदेश चुनाव के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह भी दलितों को लेकर बयान दे चुके हैं कि ‘कोई माई का लाल आरक्षण खत्म नहीं कर सकता।’ इधर योगी आदित्यनाथ द्वारा ‘हनुमान जी’ को दलित बताया जाना और 15 दिसंबर को अयोध्या में हुए ‘समरसता कुंभ’ के दौरान महर्षि वाल्मीकि को अप्रत्यक्ष रूप से दलित बताना भी एक सियासी गूगली ही मानी जा रही थी।

गौरतलब है कि सभी पार्टियों के अंदर दलितों को तरह-तरह से लुभाने के लिए अलग-अलग तरीके से खिचड़ी पक रही है लेकिन देखना दिलचस्प होगा कि 2019 में दलित वोटरों को किसकी खिचड़ी ज़्यादा पसंद आ रही है।

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