ऑडनारी की वेबसाइट पर मैंने एक प्रथा के बारे में पढ़ा था, एक ऐसी प्रथा जिसमें लड़कियों को रेप से बचाने के लिए उनके स्तन जला दिए जाते हैं। इसका नाम है ‘चेस्ट आयरनिंग’ यानी स्तनों को ऐसे दबाना कि उनके उभार का पता ना चले। इसमें गर्म पत्थर की मदद से लड़कियों के स्तनों को दबाया जाता है ताकि उनके टिशू टूट जाए और वह उम्र के साथ बढ़े नहीं। ऐसा हफ्ते में दो बार किया जाता है।
आपको यह जानकर हैरानी होगी कि ऐसी प्रथा किसी छोटे या पिछड़े देशों में नहीं बल्कि मॉडर्न यूके में ज़ोर पकड़ रही है और यह काफी हिला देने वाली घटना है। एक पल ठहर कर सोचिए अगर कोई गर्म पत्थर आपको छू जाए तो आप कितनी ज़ोर से चीखेंगे।
माचिस की तीली जलाते वक्त या आग का कोई भी काम करते वक्त, अगर हमारी उंगली छू भी जाती है, तो हम कितने बेचैन हो उठते हैं। तो उस दर्द की कल्पना तो हम कर ही नहीं सकते, जो दर्द वे लड़कियां प्रथा के नाम पर भोगती हैं। प्रथा के नाम पर उन लड़कियों को किस शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना से गुज़रना पड़ता होगा, यह हमारी कल्पना से भी परे है।
एक अंग्रेज़ी अखबार ने इस बात का खुलासा किया और तहकीकात करने पर पता चला कि हज़ारों लड़कियों और औरतों को इस दर्दनाक टॉर्चर जिसे लोग प्रथा कहते हैं, उससे गुज़रना पड़ता है। दक्षिण लंदन के शहर, क्रोयडॉन में ही 15-20 मामले मिले हैं, जो ब्रेस्ट आयरनिंग के हैं।
ऑडनारी की उस खबर में ‘द गार्डियन’ अखबार के एक इंटरव्यू का ज़िक्र किया गया है, जिसमें एक माँ ने बताया,
जैसे ही मेरी बेटी को पीरियड्स शुरू हुए, मैंने उसकी ब्रेस्ट आयरनिंग करनी शुरू कर दी। मैंने एक पत्थर लिया, उसे गर्म किया, फिर उस पत्थर से अपनी बेटी के स्तनों को मसाज करना शुरू कर दिया।
एक पल ठहर कर सोचिए, एक तरफ तो वह बच्ची पीरियड्स के दर्द को सह रही होगी और दूसरी तरफ प्रथा के नाम पर टॉर्चर।
यौन शोषण से बचाव के लिए होती है ब्रेस्ट आयरनिंग
जी हां, लड़कियों को पुरुषों की नज़रों से बचाने के लिए, उनके स्तनों के उभार को ही खत्म कर दिया जाता है। ताकि पुरुषों की नज़रें उन पर पड़े ही नहीं और वह उनके यौन शोषण, रेप से बची रह सकें। यहां बात यह उठती है कि एक ओर लड़कियां अपने बचाव के लिए पेपर स्प्रे रख रही हैं, आत्म सुरक्षा की ट्रेनिंग ले रही हैं, तो इस प्रथा की ज़रूरत ही क्या है? यह प्रथा तो जेंडर वॉयलेंस है।
यह प्रथा काफी खतरनाक है और निरर्थक भी। पुरुषों से बचाव के लिए अपने शरीर को कष्ट देना और मानसिक रूप से प्रताड़ित होना, यह कैसा न्याय है, कैसी प्रथा है? डॉक्टरों के अनुसार, यह प्रथा अपने आप में शोषण है और इसका सीधा प्रभाव लड़कियों के स्वास्थ्य पर पड़ता है और इस वजह से उन्हें इनफेक्शन, ब्रेस्ट कैंसर आदि बीमारियां हो जाती हैं। ताज्जुब की बात यह है कि ब्रिटिश पुलिस को इस प्रथा के बारे में पता है पर फिर भी वह कुछ नहीं करती, वह भी इसलिए क्योंकि वह इसे कल्चर का हिस्सा मानते हैं।
दुनियाभर में इस तरह की और भी दर्दनाक प्रथाएं हैं, जिनसे लड़कियों को गुज़रना पड़ता है। कभी खतना के नाम पर, तो कभी ब्रेस्ट आयरनिंग के नाम पर ताकि उनकी इज्ज़त बची रहे। क्या इज्ज़त कोई चीज़ है, जो लड़कियों के प्राइवेट पार्ट्स में रहती है? लोगों को इन सब प्रथाओं से बाहर आना होगा।