समाज, समानता और सामाजिक न्याय की अवधारणा वर्तमान समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में सबके प्रतिनिधित्व के लिए आरक्षण को संविधान में स्थान दिया गया। 1952 के प्रथम आम चुनाव से इसे राजनैतिक अमलीजामा पहनाया जाने लगा जो लगभग 45 वर्ष के लंबे संघर्ष के बाद 2 जुलाई 1997 को शैक्षणिक स्तर पर लागू हो सका। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को क्रमशः 7.5 और 15 % आरक्षण प्राप्त हुआ।
उस समय विश्विद्यालय में सहायक व्याख्याता और आचार्य भर्ती में 40 प्वाइंट रोस्टर पर आधारित व्यवस्था अपनायी गई। सन 2007 में अन्य पिछड़ा वर्ग के आरक्षण के बाद इसे 100 प्वाइंट रोस्टर व्यवस्था बना दिया गया जिसके तहत विभाग में होने वाली भर्ती में सबको सुनिश्चित स्थान मिल सके। 2012 में अनुसूचित जाति के अनुपात को निश्चित करने के लिए 200 प्वाइंट रोस्टर व्यवस्था लागू की गई। 200 प्वाइंट रोस्टर व्यवस्था की सिफारिश राष्ट्रीय अनुदान आयोग द्वारा गठित रावकाले की अध्यक्षता वाली समिति ने की थी।
2017 में इलाहाबाद हाइकोर्ट ने विवेकानंद तिवारी बनाम भारत सरकार मामले में 200 प्वाइंट रोस्टर को अस्वीकार कर 13 प्वाइंट रोस्टर की वकालत की। जिस पर भारत सरकार और राष्ट्रीय अनुदान आयोग ने SPL दायर की जिस पर उच्चतम न्यायालय ने 22 जनवरी 2019 को इसे खारिज कर 13 प्वाइंट रोस्टर व्यवस्था को पुनः लागू कर दिया। न्यायालय के आदेश से पुनः आसमान प्रतिनिधित्व की स्थिति स्थापित हो जाएंगी जिसमे पिछड़े वर्गों को आरक्षण का लाभ नहीं मिल पायेगा। केंद्र सरकार को इस विषय पर अध्यादेश जारी कर कानून निर्माण की ओर पुनः अपना रुख करना चाहिए जिससे सबको समाज में उचित स्थान और सम्मान मिले और समतामुलक समाज की स्थापना हो सके।
क्या है 13 प्वाइंट रोस्टर?
अभी तक यूनिवर्सिटी या कॉलेज की नौकरियों के लिए यूनिवर्सिटी या कॉलेज को ही एक इकाई माना जाता था। साथ ही इन भर्तियों के लिए 200 प्वाइंट रोस्टर सिस्टम की व्यवस्था थी। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला दिया है कि रिज़र्वेशन अब डिपार्टमेंट के आधार पर लागू किया जाए। इसके लिए 13 प्वाइंट का रोस्टर बनाया गया है। इस रोस्टर के तहत जो वेकेंसी निकलेंगी उसके तहत शुरूआती तीन पद अनारक्षित, चौथा ओबीसी को फिर 5वां और 6ठा अनारक्षित, 7वां पद अनुसूचित जनजाति को, 8वां फिर से ओबीसी को और 9वां, 10वां, 11वां अनारक्षित, 12वां ओबीसी और 13वां फिर से अनारक्षित जबकि 14वां पद अनुसूचित जनजाति को दिया जाएगा। जानकारों का कहना है कि इस तरह से रिज़र्वेशन लागू किया गया तो हद से हद 30% तक ही रिज़र्वेशन का फायदा मिल पाएगा जबकि केंद्र सरकार की नौकरियों में एससी-एसटी-ओबीसी के लिए 49.5% रिज़र्वेशन का प्रावधान है।
क्यों है विरोध?
दिल्ली यूनिवर्सिटी के इकोनॉमिक्स डिपार्टमेंट में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर अनीश गुप्ता के मुताबिक इस रोस्टर के तहत रिज़र्वेशन लागू होने से कभी भी 49.5% रिज़र्वेशन लागू नहीं किया जा सकता। सबसे पहली दिक्कत तो यह है कि यूनिवर्सिटी की जगह डिपार्टमेंट को इकाई माना गया है जबकि ऐसा बहुत कम होता है कि किसी भी डिपार्टमेंट में एक साथ 13 या उससे ज़्यादा वेकेंसी निकलें। ऐसे में ओबीसी को कम से कम चार, एससी को सात और एसटी को तो 14 वेकेंसी निकलने का इंतज़ार करना होगा। जबकि इसी दौरान 10 अनारक्षित सीटों पर सामान्य वर्ग के लोगों को नौकरी मिल जाएगी। इसके आलावा उनके लिए 10% आरक्षण अलग से भी लागू किया जा रहा है।
क्या था 200 प्वाइंट रोस्टर?
इस फैसले से पहले सेंट्रल यूनिवर्सिटी में शिक्षक पदों पर भर्तियां पूरी यूनिवर्सिटी या कॉलजों को इकाई मानकर होती थीं। इसके लिए संस्थान 200 प्वाइंट का रोस्टर सिस्टम मानते थे। इसमें एक से 200 तक पदों पर रिज़र्वेशन कैसे और किन पदों पर होगा, इसका क्रमवार ब्यौरा होता है। इस सिस्टम में पूरे संस्थान को यूनिट मानकर रिज़र्वेशन लागू किया जाता है, जिसमें 49.5 % पद रिज़र्व और 59.5% पद अनरिज़र्व होते थे। हालांकि अब इसमें 10% सामान्य वर्ग का आरक्षण भी शामिल कर लिया गया है। इसमें सबसे पहले यूनिवर्सिटी को इकाई माना जाता था। यूनिवर्सिटी के सभी डिपार्टमेंट्स के पदों को A से Z तक एक साथ 200 तक जोड़ लिया जाता था। इसके बाद क्रम के अनुसार पहले 4 पद सामान्य, फिर ओबीसी, फिर एससी/एसटी इत्यादि के लिए पदों की व्यवस्था थी। इस व्यवस्था में सामान्य पदों की जगह आरक्षित पदों से भी नियुक्तियों की शुरुआत हो सकती है और अगर किसी श्रेणी में नियुक्ति नहीं होती है तो उस पद को बाद में, बैकलॉग के आधार पर भरा जा सकता था। इस हिसाब से 200 प्वाइंट रोस्टर फ़ॉर्मूले में क्रमवार सभी तबकों के लिए पद 200 नंबर तक तय हो जाते हैं लेकिन 13 प्वाइंट रोस्टर में ऐसा नहीं ।