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“कर्ज़माफी के आगे सरकार आखिर सोचती क्यों नहीं है?”

किसानों की प्रतीकात्मक तस्वीर

किसानों की प्रतीकात्मक तस्वीर

भारत के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने ‘जय जवान जय किसान’ का नारा लगाया था। उसके बाद हरित क्रांति (ग्रीन रिवॉल्यूशन) के कारण भारत में खेती करने के तरीके बदल गए लेकिन हम यह भूल जाते हैं कि हरित क्रांति की वजह से भारत में गेहूं और चावल के उत्पादन में बड़े पैमाने पर बढ़ोतरी हुई है जिसका असर पंजाब और हरियाणा में देखने को मिल सकता है।

इसके आगे किसी सरकार ने सोचने की ज़हमत नहीं उठाई। भारत में आज भी अन्य देशों के मुकाबले तकनीकी स्तर पर ज़ोर-शोर से खेती नहीं होती है। साल 2018 में पूरे साल भर किसानों का मुद्दा चर्चा में रहा। किसानों ने दिल्ली और मुंबई जैसे बड़े शहरों में प्रदर्शन किए। अभी हाल ही में पांच राज्यों में हुई विधानसभा चुनावों में बीजेपी को करारी शिकस्त झेलनी पड़ी जिसकी बड़ी वजह किसानों की नाराज़गी है।

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलौत। फोटो साभार: Getty Images

उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे राज्यों में पहले ही कर्ज़माफी कर दी गई थी लेकिन बाद में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भी कर्ज़माफी का फैसला लिया गया। काँग्रेस द्वारा तीन राज्यों में किसानों की कर्ज़माफी किए जाने के बाद सोनेवाल सरकार ने असम में भी यह फैसला ले लिया लेकिन किसी भी सरकार ने स्थाई समाधान ढूंढने की कोशिश नहीं की।

ऐसे में दिलचस्प बात यह है कि तेलंगाना में चंद्रशेखर राव फिर से बहुमत के साथ सीएम बनें। इसके पीछे किसानों को की गई मदद का बहुत बड़ा योगदान है। तेलंगाना सरकार ने कर्ज़माफी पर अधिर ज़ोर ना देते हुए किसानों को प्रति एकड़ 4000 की राशि मदद के तौर पर दी जिसके कई फायदे सामने आए।

किसानों ने ज़्यादा से ज़्यादा ज़मीन पर फसल उगाई और ऐसा करने के लिए उन्हें अपने घरों से अधिक पैसे नहीं लगाने पड़े। ऐसे में लागत मूल्य कम हो गया और मुनाफा बढ़ गया।

मैं ऐसा नहीं कह रहा हूं कि यह पूर्ण रूप से समाधान है लेकिन कर्ज़माफी से तो अच्छा हो सकता है। ऐसे में इसे एक अच्छी शुरुआत कहना गलत नहीं होगा। इस योजना को केन्द्रीय स्तर पर पूरे देश में लागू करने पर भी विचार होना चाहिए।

ऑर्गेनिग फार्मिंग एक बेहतरीन विकल्प: यह कोई नई बात नहीं है लेकिन इस पर शायद ही किसी ने ध्यान दिया हो। इस विषय में सिक्किम जैसे छोटे राज्य का काम काबिल-ए-तारीफ है जहां लगभग 100% खेती ऑर्गेनिक तरीके से की जाती है। इसका फायदा किसानों को यह हुआ कि जो पैसा रासायनिक खाद एवं कीटकनाशक पर खर्च होते थे, उनमें काफी बचत हए जिसके चलते मुनाफा बढ़ गया।

ऑर्गेनिग फार्मिंग। फोटो साभार: Wikipedia

ऑर्गेनिक खेती को अगर हम पूरे देश में लागू करते हैं तब सरकार पर प्राइवेट कंपनियों का प्रेशर आ सकता है। ऐसे में सरकार को तगड़ी रणनीतियों के साथ काम करना होगा। सरकार को कर्ज़माफी के आगे भी सोचने की ज़रूरत है। तेलंगाना मॉडल हो या फिर ऑर्गेनिक खेती का तरीका, यह बातें एक सकारात्मक बदलाव ला सकती हैं लेकिन खेती में टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल हो, इस पर सरकार को ध्यान देने की ज़रूरत है।

फसल के मार्केट को सरकार की ज़रूरत से ज़्यादा हस्तक्षेप से बाहर रखने की भी आवश्यक्ता है। ‘न्यू इंडिया’ किसानों के लिए भी होना चाहिए तभी हम सुपर पावर बनने की बातें कर सकते हैं। आज कल कई मौकों पर राजनेता गाँधी को याद करते हैं और इसी कड़ी में वे यह भूल जाते हैं कि गाँधी जी ने कहा था कि गाँवों का विकास हो। गाँवों का विकास होगा तभी यह गाँधी का भारत होगा जो अब इंडिया बनने की राह पर अग्रसर है।

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