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सड़क दुर्घटना हमारे लिए नासूर बन जाए, इससे पहले समाधान तलाशने होंगे

सुबह का अखबार उठाकर देखता हूं तो 4 से 5 सड़क दुर्घटनाओं की खबर मिल ही जाती है, जिसमें कई लोग अपनी जान गंवा देते हैं। ऐसी खबरें जब घरवाले पढ़ते हैं और जब कोई गाड़ी लेकर घर से बाहर जाता है तो उनका जी तब तक उस व्यक्ति पर लगा रहता है जब तक वह आ नहीं जाता।

हमारे देश में सड़क दुर्घटना में मरने वालों की एक बड़ी संख्या है और इन दुर्घटनाओं में अधिकतर मौतें लापरवाही (सरकारी और खुद की, दोनों) की वजह से होती हैं। सरकारी आंकड़ों की मानें तो पिछले साल देशभर में लगभग 4 लाख 64 हज़ार सड़क दुर्घटनाएं हुईं, जिनमें 1 लाख 47 हज़ार से भी ज़्यादा लोगों की जान चली गईं। हालाँकि 2015-16 के मुकाबले पिछले साल हुई सड़क दुर्घटनाओं में कमी तो आई है (2015 में लगभग 5 लाख और 2016 में 4.8 लाख) लेकिन अब भी इसमें मरने वालों की एक बड़ी संख्या है। 2016 में जहां 1.5 लाख लोग सड़क दुर्घटना में अपनी जान गंवा दिए थे, वही 2107 में  घटकर संख्या 1.47 लाख हो गई।

फोटो सोर्स- Getty

दिल्ली में गांधी विहार को संतनगर से एक हाइवे जोड़ता है, जहां से संतनगर से आने वाले और गांधी विहार के लिए जाने वाले तमाम लोग आते-जाते हैं, मैं भी कई बार गया हूं। सुबह से लेकर शाम तक लगातार लोग एक से दूसरी तरफ आते-जाते हैं दिनभर में 50 हज़ार से अधिक लोग वो हाइवे पार कर एक से दूसरी तरफ जाते हैं।

इतनी बड़ी संख्या रोज़ आती-जाती है लेकिन वहां एक छोटा सा फुट ओवर ब्रिज नहीं बनाया गया है। हालांकि ट्रैफिक लाइट के हिसाब से गाड़ियां रूकती हैं और पैदल यात्री आर-पार होते हैं इसके बावजूद एक, दो करके अब तक 7-8 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं उस हाइवे पर।

तो क्या सरकार अब किसी बड़ी दुर्घटना के इंतज़ार में है कि तब जाकर फुटओवर ब्रिज बनेगा लेकिन इससे पहले जिन्होंने जान गंवा दी उनका क्या। ऐसा एक हाइवे या सड़क नहीं है देशभर में, हज़ारों ऐसी जगहें हैं जहां पैदल यात्रियों के लिए सुविधाजनक यातायात व्यवस्था नहीं है। सड़क दुर्घटना में मरने वालों में पैदल यात्री दूसरे नंबर पर हैं। पिछले साल के सरकारी आंकड़े बताते हैं कि सड़क दुर्घटना में हुई कुल मौतों का 14% पैदल यात्री थे।

सड़क दुर्घटनाओं का एक बड़ा कारण लापरवाही भी है

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सड़क दुर्घटनाओं और उनकी वजह से मरने वालों की एक बहुत बड़ी वजह लापरवाही है। हमें ट्रैफिक रूल फॉलो करने में भी दिक्कत होती है, हम ग्रीन लाइट होने तक रुकना नहीं चाहते और पुलिस द्वारा हेलमेट चेक करने पर हम ढेर सारे बहाने ढूंढ लाते हैं। ऐसा लगता है पुलिस अपने फायदे के लिए हेलमेट के लिए पूछ रही है जबकि होती उससे हमारी सुरक्षा ही है।

मैंने कई ऐसी दुर्घटनाएं देखी हैं जिनमें हेलमेट ना लगाने की वजह से व्यक्ति की मौत हो गई और हेलमेट लगाने की वजह से जान बची है। एक उदाहरण देना चाहता हूं, मेरे मामा रोज़ 60-70 किलोमीटर की यात्रा बाइक से करते थे लेकिन जिस दिन हेलमेट लगाना भूल गए उसी दिन सिर में चोट लगने से उनकी मौत हो गई। इस घटना के बारे में बताने की सिर्फ एक वजह है कि छोटी-छोटी लापरवाही मौत की ओर धकेल देती है। अक्सर लोग बहाना बनाते हैं कि अरे बस यहीं तो जा रहा, इतनी दूर में भला क्या हो जाएगा लेकिन इतनी ही दूर के लिए अगर हेलमेट लगा लोगे तो क्या हो जाएगा। इस बात को क्यों नहीं सोचते। पिछले साल सड़क दुर्घटनों में सबसे ज़्यादा लोग दुपहिया वाहनों से मरे हैं।

इसके अलावा तेज़ गाड़ी चलाने, रैश ड्राइविंग, शराब पीकर गाड़ी चलाने, गलत साइड से गाड़ी चलाने, रेड लाइट जम्प करके जल्दी निकलने, सीट बेल्ट ना लगाने, जल्दी पहुंचने के चक्कर में गलत तरीके से ओवरटेक करना, गाड़ी चलाते समय फोन या इयरफोन का इस्तेमाल करने जैसी बहुत सारी वजहें हैं, जिनसे खतरनाक सड़क दुर्घटनाएं होती हैं।

2017 में इयरफोन या फोन के इस्तेमाल की वजह से मरने वालों में सबसे आगे उत्तर प्रदेश था। ओवरस्पीडिंग की वजह से 98 हज़ार, गलत साइड से गाड़ी चलाने से लगभग 10 हज़ार, ड्रिंक करके गाड़ी चलाने से लगभग 5 हज़ार लोग अपनी जान गंवा दिए। यह तो ऐसे कारण हैं जो खुद लोग गलतियां करते हैं लेकिन इसके अलावा और भी वजहें हैं जिन्हें सरकार कम कर सकती है।

खराब सड़कें, सड़कों पर बड़े-बड़े गड्ढे, सड़क पर टहलते आवारा पशु, खराब ट्रैफिक लाइट व्यवस्था, नियमों में सख्ती की कमी और दुर्घटना के बाद त्वरित चिकित्सा सुविधा का अभाव होने से बहुत सी बड़ी दुर्घटनाएं होती हैं और लोग इन गलतियों की वजह से लोग मौत के मुंह में जाते रहते हैं। पिछले साल सड़क पर घूमते आवारा पशुओं की वजह से 3611 दुर्घटनाएं हुईं जिनमें 1360 लोगों ने अपनी जान गंवाई, सड़क के गड्ढों की वजह से 3597 लोग मरे और अंडर कंस्ट्रक्शन रोड की वजह से 4250 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी।

हाइवे पर होती हैं सबसे ज़्यादा सड़क दुर्घटनाएं

इन सभी सड़क दुर्घटनाओं में सबसे ज़्यादा दुर्घटना हाइवे पर होती हैं और 2017 में हाइवे पर होने वाली सड़क दुर्घनाओं की संख्या 2016 के मुकाबले बढ़ी भी है। अपने यहां निजी लापरवाही, सरकारी लापरवाही, सुरक्षा में कमी नियमों में कम सख्ती के अलावा तकनीकी कमज़ोरी भी है।

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पिछले साल अमेरिका में सड़क दुर्घटनों में कमी को ध्यान में रखते हुए दो पेटेंट कराए गए थे जिसमें से एक यह था कि एक ऐसी कार की टेस्टिंग की जा रही थी जो बाहर से काफी सॉफ्ट थी और अगर उससे कोई टकराता तो उसे गहरी चोट नहीं लगती और वो सुरक्षित रहेगा। दूसरा पेटेंट यह था कि गाड़ियों में एक्सटर्नल एयरबैग की सुविधा दी जाए। जैसे इंटरनल एयरबैग अंदर बैठे लोगों को सुरक्षित रखता है वैसे ही एक्सटर्नल एयरबैग होने से वहां से किसी के टकराने पर उसे गहरी चोट नहीं आएगी।

ज़ाहिर है कि ऐसे वाहन होने पर सड़कों पर होने वाली दुर्घटनाओं और उनसे होने वाली मौतों में काफी हद तक कमी आ सकती है, तो भारत में सरकार को इस तरह की तकनीक पर विचार करना ही होगा, अगर दुर्घटनाओं को कम करना है तो। सबसे ज़रूरी हमें ट्रैफिक नियमों को और अपनी सुरक्षा को लेकर गंभीर रहना होगा, जिसको लेकर हम अक्सर गंभीर नहीं रहते और काम चलाऊ उपाय अपनाते हैं।

रोड एक्सिडेंट के पेशेंट की मदद करने से क्यों डरते हैं लोग

पिछले महीने मैं बनारस गया था, एक ऑटो में बैठकर सारनाथ जा रहा था, कुछ दूर जाने के बाद रास्ते में अचानक से आगे से एक कॉन्सटेबल साइकिल से आ रहा था और दूसरी तरफ से तेज़ी से आती एक बाइक ने उसे धक्का मार दिया जिससे वो कॉन्सटेबल गिर गया। मैंने रिक्शा रुकवाया और उन्हें उठाने के लिए उतरा, कुछ और लोग भी आसपास से आ गए उन्हें उठाने के लिए। हमलोग उन्हें उठा ही रहे थे कि बगल से एक बाइक वाला गुज़रा और मुझसे बोलते हुए निकल गया कि अरे छोड़ो भाई कहां चक्कर में पड़े हो जाओ पुलिस आएगी फालतू का झंझट होगा परेशान हो जाओगे तुम।

वो इतना कहकर निकल गया। सबने उन्हें उठाकर बैठाया, पानी पिलाया गया, कुछ देर बाद वो अपनी साइकल लेकर पैदल ही चले गए। यह जो बात है ना कि छोड़ो रहने दो और पुलिस परेशान करेगी, यह भी एक बड़ी वजह है सड़क दुर्घटना में मरने वालों की, क्योंकि दुर्घटनांए तो तमाम होती हैं लेकिन बहुत सारी दुर्घटनाओं में छोटी-मोटी चोट ही आती है या बड़ी चोट भी आए तो समय पर अस्पताल पहुंचने से आदमी की जान बच जाती है।

एक बड़ी संख्या उनकी भी है जो समय पर अस्पताल ना पहुंच पाने के कारण अपना दम तोड़ देते हैं। लोग या तो फोन पर वीडियो बनाने में लगे रहते हैं या पुलिस के डर से उसे अस्पताल नहीं ले जाते। आए दिन ऐसे मामले आते रहते हैं कि आदमी तड़पता रहा और लोग वीडियो बनाते रहे, समय से अस्पताल ना पहुंचने के कारण व्यक्ति की मौत हो गई, पुलिस जांच करती रही और आदमी ने दम तोड़ दिया।

पुलिस के साथ की होती है पूरी ज़रूरत

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यह रोकना ज़रूरी है, पुलिस को, सरकार को, प्रशासन को लोगों को इतना आश्वस्त करना होगा और हमें भी इतनी संवेदना लानी होगी कि जब कोई दुर्घटना हो तो बिना सोचे उसे लोग उठाकर अस्पताल ले जाएं उसका इलाज कराएं और डॉक्टर बिना सवाल-जवाब किए पहले उसका इलाज करे, जांच बाद में।

जब पुलिस आए तो उस व्यक्ति को परेशान ना करे जो सिर्फ इस वजह से उसे अस्पताल लाया था ताकि उसकी जान बच जाए। बल्कि मामले की सही तरीके से जांच करे। लोग डर से किसी को सड़क से नहीं उठाते कि कहीं पुलिस उन्हें ही ना फंसा दे इस मामले में, जब तक यह डर नहीं निकलेगा तब तक इस वजह से और लोग मरते रहेंगे।

लेकिन इसमें भी कानूनी पेंच है इसलिए डॉक्टर तुरंत इलाज करने से कतराता है। गाज़ीपुर के पुलिस कॉन्सटेबल धर्मराज मौर्या ने बताया कि कानूनी प्रक्रिया यह है कि अगर सड़क पर किसी का एक्सीडेंट होता है और अगर पुलिस खुद से आ गई या किसी ने पुलिस को बुला लिया तो वो केस दर्ज करके व्यक्ति को अस्पताल ले जाएगी और उसका इलाज शुरू हो जाएगा।

लेकिन अगर कोई भी अन्य व्यक्ति दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति को अस्पताल लेकर जाता है तो डॉटर उसके कहने पर इलाज तब तक नहीं शुरू करता जब तक पुलिस द्वारा MLC (मेडिको लीगल केस) ना मिल जाए। जब पुलिस एक्सीडेंट का केस दर्ज कर लेती है, उसके बाद ही डॉक्टर इलाज शुरू करता है।

क्या है कानून

अब बात करते हैं देश में ट्रैफिक कानून की कि ट्रैफिक नियम तोड़ने पर क्या कानूनी प्रावधान हैं। मोटर वेहिकल ऐक्ट 1988 और सेंट्रल मोटर ऐक्ट 1989 के आधार पर ही अभी ट्रैफिक के सारे नियम-कानून संचालित होते हैं। हालांकि कुछ बड़े-छोटे संशोधनों और बदलावों के साथ ट्रैफिक ऐक्ट 2016 प्रस्तावित है लेकिन अभी लागू नहीं हो पाया है।

जो नियम हैं उनके आधार पर कुछ सज़ा या ज़ुर्माना निर्धारित किया गया है, जैसे-18 से कम उम्र के व्यक्ति को ना ही लाइसेंस दिया जाएगा और ना ही वह गाड़ी चला सकता है लेकिन अगर बिना गियर की बाइक हो तो 16 साल का लड़का चला सकता है।

वहीं, ड्राइविंग लाइसेंस के लिए उम्र, ट्रेनिंग के साथ-साथ शारीरिक मानसिक रूप से स्वस्थ होना भी ज़रूरी है लेकिन अक्सर ऐसा देखने को मिलता है कि लोग लाइसेंस गाड़ी चलाने के लिए कम, आईडी प्रूफ के तौर पर इस्तेमाल करने के लिए ज़्यादा बनवाते हैं, जिसका खामियाज़ा किसी और को भुगतना पड़ता है।

कानून की उतनी सख्ती नहीं बरती जाती जितनी बरती जानी चाहिए, अगर अयोग्य व्यक्ति को गाड़ी चलाने की परमिशन दे दी जाएगी तो ज़ाहिर है वो खुद के साथ और लोगों के लिए भी खतरा साबित हो सकता है।

कुछ ट्रैफिक नियमों और सज़ा का ज़िक्र करना ज़रूरी है, जैसे-

ऊपर जितने भी नियमों की बात की गई वे कहीं ना कहीं सड़क दुर्घटना के मुख्य कारणों में से हैं, जिनके उल्लंघन की वजह से किसी को चोट या किसी की मृत्यु हो सकती है लेकिन इनको लेकर होने वाली सज़ाओं को देखें तो लगता है कानून में बहुत ढील है और 100, 200, 500 देकर आदमी ऐसे मामलों से निकल जाता है। उसको लगता है कि उसने कोई गलती नहीं की इसलिए वह उसको सुधारने की कोशिश नहीं करता और आगे भी इतने पैसे जु़र्माने के रूप में देकर अपना काम चला लेता है।

इस तरह की जो मानसिकता है वही सबसे बड़ा खतरा है। “हेलमेट नहीं लगाया तो जु़र्माना भर दिए क्या दिक्कत है, आगे भी भर देंगे लेकिन हेलमेट कौन लगाए”, यह सोच खतरा पैदा करती है खुद के लिए भी और दूसरों के लिए भी। एक्सीडेंट और घायल होने जैसे मामलों को छोड़ दें तो ज़्यादातर मामलों में उतनी सख्ती नहीं दिखती और इस वजह से लोग इसको गंभीरता से नहीं लेते। इसके लिए ज़रूरी है कि ट्रैफिक नियम और कड़े किए जाएं, उनका सख्ती से पालन किया जाए और लोग भी ट्रैफिक नियमों को लेकर जागरूक हो क्योंकि ये उनकी ही सुरक्षा के लिए होता है।

सड़क दुर्घटना देश के लिए एक गंभीर सवाल है और इसकी कई बड़ी वजहें हमें पता है इसलिए सरकार को और हमें अपने स्तर पर इस समस्या का समाधान ढूंढना होगा। इससे पहले कि यह समस्या हमारे लिए नासूर बन जाए।

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