Site icon Youth Ki Awaaz

गणतंत्र दिवस का सवाल: क्या हमारा मुल्क समाजवाद भूलता जा रहा है?

यूं तो संविधान में 448 अनुच्छेद 25 भाग और 12 अनुसूचियां है लेकिन संविधान का पूरा निचोड़ उसकी प्रस्तावना (preamble) मानी जाती है। संविधान का पूरा आकर्षण उसकी प्रस्तावना ही है। मूल संविधान की प्रस्तावना में दो शब्दों ‘समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष’ की कमी रह गई थी जिसकी कमी 1976 के 42 वें संवैधानिक संशोधन में पूरी कर दी गयी। हालांकि भारत पहले भी एक धर्मनिरपेक्ष राज्य था जिसका उल्लेख भारत के संविधान के अनुच्छेद 25 से 28 में हैं। अब भारत संपूर्ण प्रभुत्वसंपन्न समाजवादी पंथनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य है।

जैसा कि आज़ादी से पहले ही सावरकर, हिंदू महासभा भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाना चाहते थे इसलिए सावरकर ने सबसे पहले द्विराष्ट्र सिद्धांत प्रस्तुत किया। हालांकि गांधी, कॉंग्रेस और संविधान ने भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राज्य बनाया। शायद इसी कारण गांधी जी को भी शहीद किया गया। शुरुआत से आरएसएस का भी यही मुद्दा रहा है। संघ को मानने वाले जो लोग संविधान की प्रस्तावना के एक शब्द से इतनी नफरत करते हैं उन्होंने संविधान की खूबसूरती में चार चांद लगाने वाले शब्द Secular को भी ‘sickular’ बोल कर गाली बना दिया।

अब वही संघ परिवार देश चला रहा है, ये लोग हमेशा दूसरों को देशद्रोही बोलते हैं। संबित पात्रा जी हर डीबेट शो में एक मुस्लिम स्कॉलर को आतंकवादी या देशद्रोही सिद्ध करके चले जाते हैं जबकि वह जिस संघ परिवार से आते हैं वहां तिरंगा तक नहीं फहराया जाता था।

राम मंदिर, जिसको अक्सर भाजपा और संघ के लोग धर्म या आस्था की जगह भारत के गौरव का प्रतीक बताते हैं वो भूल जाते हैं कि भारत एक धर्म निरपेक्ष राज्य है। किसी धार्मिक आस्था का प्रतीक धर्म निरपेक्ष राज्य के गौरव का प्रतीक नहीं हो सकता। इस राज्य के गौरव का प्रतीक कोई भवन विशेष होगा तो वो या तो लोकतंत्र का मंदिर ‘संसद’ या न्याय का मंदिर ‘सुप्रीम कोर्ट’ होगा।

भारत एक समाजवादी राज्य हैं लेकिन समाजवाद का नाम सुनते ही हमारे मन में तुरंत कार्ल मार्क्स का नाम आ जाता है। यहां यह स्पष्ट कर दें कि समाजवाद दो तरह का होता है। जो कि कार्ल मार्क्स के बाद दो अवधारणाओं मे विभाजित हो गया। क्रांतिकारी समाजवाद(साम्यवाद) और विकासवादी समाजवाद(राजकीय समाजवाद)।

क्रांतिकारी समाजवाद, पूंजीवाद को क्रांति के द्वारा यकायक समाप्त करना चाहता है लेकिन राजकीय समाजवाद देश के संसद द्वारा लोकतांत्रिक तरीके से धीरे-धीरे समाजवादी मूल्यों को स्थापित करना चाहता है। समाजवाद में समाज को प्रधानता देते हुए उसके हित और कल्याण के लिए व्यक्तियों के कार्यों को नियंत्रित किया जाता है। यह राज्य की सहायता से समाजवाद स्थापित करने का प्रयत्न है इसलिए इसे राजकीय समाजवाद कहते हैं। हमारे देश में राजकीय समाजवाद है।

इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका में कहा गया है, “समष्टिवाद वह नीति या सिद्धांत है जिसका उद्देश्य एक केंद्रीय लोकतंत्रीय सत्ता या राज्य द्वारा संपत्ति का वर्तमान समय की अपेक्षा अधिक अच्छा वितरण करना तथा उत्पादन करना है।” बर्टेंड रसेल ने कहा है कि, समाजवाद का अर्थ पूंजी और भूमि पर सार्वजानिक अधिकार स्थापित करना है, साथ ही लोकतंत्रीय शासन भी स्थापित करना हैं।

समाजवाद की प्रमुख धारणाएं समाज को व्यक्ति के बराबर महत्व देना है और नागरिकों को समान रूप से उन्नति के अवसर प्रदान करना है। पूंजीवाद का उन्मूलन समाजवाद का मुख्य उद्देश्य समझा जाता है लेकिन हमको ये देखना चाहिए कि हमारे चारो तरफ पूंजीवाद है कि नहीं। क्या हमारे यहां समाजवाद ठीक से लागू हो पाया है? हमारे यहां पूंजी और भूमि का वितरण किस प्रकार है। हमारे देश की 0.15% आबादी के पास घर ही नहीं है प्रतिशत मे संख्या छोटी लगती है लेकिन इनकी कुल संख्या 1.77 मिलियन है।

ऑक्सफैम की एक रिपोर्ट के मुताबिक 13.6 करोड़ भारतीय साल 2004 से कर्ज़े में हैं। भारत में आबादी के 10 फीसदी हिस्से के पास देश में कुल संपत्ति का 77.4 फीसदी हिस्सा है। इसके अलावा भारत में 1 फीसदी आबादी के पास देश में कुल संपत्ति का 51.53 हिस्सा है। जबकि 60 फीसदी आबादी के पास नैशनल वेल्थ का सिर्फ 4.8 फीसदी हिस्सा ही है।


अदनान Youth Ki Awaaz के जनवरी-मार्च 2019 बैच के इंटर्न हैं।

Exit mobile version