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“हां, मैं वर्जिन नहीं हूं और यह मेरी च्वॉइस है”

लड़की की प्रतीकात्मक तस्वीर

लड़की की प्रतीकात्मक तस्वीर

प्यार, विश्वास की डोर पर सम्मान की उड़ान लिए पतंग सी उड़ने को बेताब लड़कियां तुम्हारे लिए ज़िन्दा स्त्री नहीं सिर्फ माल हैं जो तुम्हारी भूख और प्यास मिटाने की वस्तु मात्र हैं।

पढ़ने-सुनने को मिला कि जाधवपुर यूनिवर्सिटी के एक प्रोफेसर कनक सरकार ने कुंवारी लड़कियों की तुलना ‘सीलबंद बोतल’ या ‘पैकेट’ से की है। प्रोफेसर ने ‘कुंवारी दुल्हन-क्यों नहीं?’ शीर्षक के साथ फेसबुक पर एक पोस्ट लिखी, जिसमें कहा था कि कुंवारी लड़कियां सीलबंद बोतल या सीलबंद पैकेट की तरह होती हैं।

उन्होंने कहा,

क्या कोई भी बिस्कुट के ऐसे पैकेट या फिर कोल्ड ड्रिंक खरीदना पसंद करेगा जिसकी सील टूटी हुई हो। अधिकांश लड़कों के लिए वर्जिन पत्नी ‘परी’ की तरह होती हैं।

प्रोफेसर कनक सरकार। फोटो साभार: फेसबुक प्रोफाइल प्रोफेसर कनक सरकार

प्रोफेसर साहब का वर्जिनिटी को लेकर बिस्कुट पैकेट, कोल्ड ड्रिंक की बोतल का उदाहरण बेहद शानदार है। इसमें कोई शक नहीं कि कोई भी महिला या पुरुष जी हां शब्दों पर गौर करियेगा कि कोई भी महिला या पुरुष बिस्कुट का खुला पैकेट और सील टूटी कोल्ड ड्रिंक नहीं खरीदेगा लेकिन क्या बिस्कुट के खत्म होने या कोल्ड ड्रिंक के खत्म होने के बाद पैकेट और बोतल की उपयोगिता रह जाती है? वह सिर्फ कचरा होता है जिसे हम फेंक देते हैं।

इस उदाहरण के अनुसार प्रोफेसर साहब एक वर्जिन पत्नी की वर्जिनिटी के बाद दूसरी वर्जिन पत्नी की व्यवस्था में लग जाते होंगे ठीक बिस्कुट और कोल्ड ड्रिंक की तरह। वस्तु और व्यक्ति, सजीव और निर्जीव का अंतर पढ़ा नहीं शायद इसलिए पढ़ाने का तो सवाल ही नहीं उठता। ऐसे घटिया और हास्यास्पद उदाहरण देकर यह  प्रोफेसर शायद यह कहना चाहते हैं कि सीलबन्द का ही उपयोग करें। जागो ग्राहक जागो का बोर्ड लगाकर उपभोक्ता फोरम या किसी परचून की दुकान में ज्ञान बांटे तो शायद काफी ग्राहकों के उनके केस का निपटारा हो जाये।

हां, हमारी वर्जिनिटी टूट चुकी है

हम सभी बेटियों, बहनों और स्त्रियों की तरफ से इस प्रोफेसर के जैसी मानसिकता लिए हर उस शख्स को बताना चाहूंगी कि हां, हमारी वर्जिनिटी टूट चुकी है। तुम्हारी नज़र में जो झिल्ली सीलबन्द या वर्जिनिटी का प्रमाण है वह टूट चुकी है। कभी पार्क में झूले पर झूलते वक्त, कभी साइकिल चलाते वक्त, कभी खेलते वक्त, कभी सीढ़ियों से गिरकर और कभी ना जाने कब।

चारदीवारी में कैद हम लड़कियां, अब उड़ने लगी हैं हर दिशा में। हमारी इस उड़ान में हमारा शरीर जाने कितने धक्के, चोटें और खरोचें खाकर सहमी हुई सिसकती दीवारों के बाहर निकला है अपना आसमान नापने को और हमने जाने अनजाने ना जाने कब तोड़ ली अपनी सीलें।

नहीं रह गए तुम्हारे मानकों के अनुसार वर्जिन लेकिन क्या तुम पुरुष अपनी वर्जिनिटी का प्रमाण यह कहकर दे सकते हो कि झूले पर, खेल में, साइकिल पर टूट गई वर्जिनिटी की परिभाषा। कोई जवाब नहीं होगा इस बात का क्योंकि अच्छी तरह जानते हो कि कब और कैसे खोते हो अपनी वर्जिनिटी।

इस तरह के बेआधार बातों को यदि स्त्री वर्ग लेकर चलने लगा और बिस्कुट के खुले पैकेट और सील खुली कोल्ड ड्रिंक की बोतल जैसे उदाहरण देने लगा तो और भी बहुत उदाहरण होंगे स्त्री समाज के पास। अभी भी वक्त है कुत्सित मानसिकता से निकलने का वरना वह दिन दूर नहीं जब कूड़े के ढेर पर एक लड़का मिलेगा, विवाह के पश्चात दुर्घटना में हाथ पैर टूट गए तो बिस्कुट के खाली पैकेट की तरह कचरे से ज़्यादा महत्व नहीं रह जायेगा। जब नौकरी छूटने या रिटारमेंट के बाद कोल्ड ड्रिंक की खाली बोतल की तरह कबाड़ी के सुपुर्द कर दिए जाओगे।

हम लड़कियां तुम्हारी वर्जिनिटी के बारे में नहीं, पसन्द नापसन्द के बारे में सोचती हैं

अभी हमारी बेटियां कचरे को भी उपजाऊ बना देती हैं और कबाड़ को भी जुगाड़ से घर में सजा लेती हैं, बड़े प्यार से, जतन से, लगन से क्योंकि वो अभी भी विवाह से पहले एक लड़के के लिए उसकी वर्जिनिटी के बारे में नहीं सोचती। वे सोचती हैं उसकी पसन्द नापसन्द के बारे में, वे सोचती हैं उसके साथ सात जन्म तक निभाने के बारे में, वे सोचती हैं उसके सुख-दुख में साथ निभाने के बारे में और वे सोचती हैं अपने सुखद भावी परिवार के बारे में।

पुरुष हैं कि वह अपनी घटिया मानसिकता के कारण झिल्लीनुमा द्वार के इर्द-गिर्द अपनी झूठी संदेहास्पद दुविधाओं के साथ ज़िंदगी के खूबसूरत क्षणों को तलाशते हैं तो सिर्फ खून के चंद धब्बों में। ऐसी मानसिकता के लोगों के लिए ज़िन्दगी प्यार का गीत नहीं हवस का खूनी खेल है।

शर्म आनी चाहिए ऐसी सोच लिए पढ़े लिखे प्रोफेसर जैसे लोगों को। उनकी सोच पर, मौन समर्थन देने वाले लोगों पर सोचने को मजबूर हूं कि शिक्षक भक्षक हैं। रक्षक ही भक्षक हैं तो समाज को कैसे मानवीय मूल्यों का आंकलन सिखाया जाए। समस्या इसलिए भी अधिक है कि एक अच्छी कोशिश की खबर पर लोगों की प्रतिक्रिया जल्दी नहीं होती लेकिन एक गलत प्रयास आग की तरह फैलता है तो ज़ाहिर है कि उसका असर भी ज़्यादा दिखता है। एक अच्छा इंसान बनने में वर्षों लगते हैं लेकिन एक बुरा व्यक्ति बनने में एक दिन की सीख काफी है।

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