Site icon Youth Ki Awaaz

“ज़रूरी है भारत में पितृत्व लाभ बिल”

बदलाव प्रकृति का नियम है। वक्त के साथ साथ सभ्यताएं विकसित होती गई। इसी दृष्टिकोन से हमें पितृत्व अवकाश बिल की तरफ देखना पड़ेगा। एक वक्त ऐसा था जब महिलाएं अपनी पढ़ाई बीच में छोड़कर बाल विवाह जैसी कुप्रथा का शिकार होती थी। वर्तमान समय में इसको लेकर काफी बदलाव नज़र आता है। पितृत्व अवकाश बिल एक सकारात्मक पहल हो सकती है जिसके अच्छे परिणाम हो सकता है हमें एक दशक बाद देखने को मिलें।

भारतीय समाज में यह विचार किया जाता है कि बच्चों का पालन-पोषण करना घर-गृहस्ती को संभालना स्त्री का काम है, आदमी सिर्फ पैसे कमाए। हमारे प्राचीन इतिहास में हमें मैत्रयी, गार्गी जैसी विद्वान महिलाओं का जिक्र मिलता है। मध्ययुगीन कालखंड में परिस्थितियां बदल जाती है। ऐसा क्यों है? भारत नें अपने पूरे इतिहास में कभी किसी अन्य देश पर आक्रमण नहीं किया लेकिन भारत पर बहुत विदेशी हमले हुए। उस वक्त विदेशियों के लिए भारत सोने की चिड़िया था।

हमेशा युद्ध के प्रभाव में रहने के कारण वह समय भारतीय महिलाओं के लिए साथ ही साथ भारतीय समाज के लिए मुश्किल भरा रहा लेकिन सबसे ज्यादा हानि महिलाओं को उठानी पड़ी। आगे चलकर महिलाओं की आजादी छीन ली गई। पितृसत्ता पद्धति प्रबल बन गई। जिसका नकारात्मक प्रभाव भारतीय समाज पर इसवी सन 1800 तक देखा जा सकता है।

इसके बाद अंग्रेज़ी मिशनरी स्कूलों में लड़कियों को पढ़ने का मौका मिला लड़कियों को पढ़ने के विषय में सावित्रीबाई फुले का महाराष्ट्र में बहुत बड़ा योगदान रहा है। वो भारत की पहली महिला शिक्षिका, मुख्य अध्यापिका बनीं। कुछ सालों बाद देश की पहली महिला डॉक्टर आनंदीबाई जोशी बनीं वो भी महाराष्ट्र की ही थी। देश के तौर पर हमें बड़े लक्ष्य को हासिल करना है। समाज में हमें घर के कामों में मदद करने वाला बेटा या पत्नी की सहायता करने वाला पति बहुत अभाव से नज़र आता है। बेटा हो या पति वह पीढ़ी दर पीढ़ी चले आ रहे पितृसत्ता वाले संस्कार छोड़ नहीं पाता। किसी की मन में यह क्रांतिकारी विचार आ भी जाता है तो वह अकेला पड़ जाता है जोरू का गुलाम की संज्ञा के साथ।

ऐसा नहीं है कि बदलाव नहीं हो रहा लेकिन बदलाव की गति कम नज़र आती है। इस लिहाज़ से पितृत्व अवकाश बिल एक अच्छी शुरुआत हो सकती है। इस बात पर भी ध्यान दिया जाए कि अगर यह कानून बनता है तो सही तरीके से इस पर अमल हो नहीं तो  यह कानून भी  दहेज  विरोधी  कानून की तरह  किताब में ही रह जाएगा। दहेज विरोधी कानून होते हुए भी बहुत से लोग दहेज लेते हैं और देते भी हैं। हम भी इसी समाज का हिस्सा हैं। कोई आदमी पौधा लगाता है तो उस पेड़ के फल का लाभ उसकी आने वाली पीढ़ी उठाती है। ठीक उसी तरह इस बिल का लाभ आने वाली पीढ़ी उठा सकती है लेकिन पहले इसको लागू किया जाना चाहिए और थोड़ा इंतज़ार करना चाहिए। इंतज़ार का फल मीठा होता है। सांसद राजीव सतव की पहल अच्छी है, शुभकामनाएं।

Exit mobile version