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“इमामों और संतों के देश में IIT, IIM का क्या काम?”

खुश होने के लिए कोई खुशी की बात होनी ज़रूरी नहीं है। खुश तो हम किसी भी बात पर हो सकते हैं। परसों मुश्ताक सब्ज़ी वाला और उसके बराबर में सुखबीर फल वाला दोनों खुश थे। मुश्ताक इस बात से खुश था कि दिल्ली सरकार द्वारा इमामों की सैलरी दस हज़ार से बढ़ाकर 18 हज़ार करने का फैसला किया गया है और सुखबीर इस बात से खुश था कि उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा जारी घोषणा के अनुसार यूपी में अब साधु-संतों को पेंशन मिला करेगी।

खबर है कि योगी आदित्यनाथ सरकार राज्य में 60 वर्ष के ऊपर की उम्र वाले 10 लाख साधु-संतों को भी वृद्धावस्था पेंशन योजना में शामिल करने जा रही है। इसके साथ दिल्ली की 300 मस्जिदों के इमामों की सैलरी अब 18000 रुपये होगी और इन तीन सौ मस्जिदों के मोअज्जिन को भी 16000 रुपये सैलरी मिलेगी। 

यह उस देश के लोगों के लिए खुशी की बात थी जिस देश में कम्प्यूटर डिप्लोमाधारी युवक-युवती को बा-मुश्किल 10 हज़ार की नौकरी नहीं मिल पाती पर 5 टाइम अज़ान देने वाला 18 हज़ार मासिक पा जाता है। इसके अलावा देश की सेवा करने वाले एक सिपाही की पेंशन समाप्त कर दी जाती और बदले में राख-भभूत लपेटे हरिनाम जपते संत को पेंशन जारी हो जाती है।

देश के शिक्षित बेरोज़गार युवाओं को राजनेताओं के इस कदम से कितनी खुशी होगी मुझे नहीं पता परन्तु यह तय है उनके दिमाग में एक बात ज़रूर आएगी कि किताबों, बस्तों का बोझ ढोकर और स्कूल कॉलेज की महंगी फीस भरकर हमारे माथे पर बेरोज़गारी का दाग है और वह धार्मिक पुस्तकों की चंद लाइन का रट्टा लगाकर वेतनमान पा गये।

फोटो सोर्स- Getty

देखा जाये तो देश में धर्म-मज़हब का कारोबार दिन दूना रात चौगुना फल-फूल रहा है। दिनभर हाड़-तोड़ मज़दूरी करने वाले एक मज़दूर से ज़्यादा कथित संत और बीएड, बीटेक, एमटेक से ज़्यादा इमाम कमा रहा है। देश का किसान खस्ताहाल में आत्महत्या कर रहा है। किसी भाई के पास आंकड़ें हो तो बताना कितने धर्म-मज़हब के पैरोकार खाली पेट आत्महत्या कर रहे हैं?

हर किसी के द्वारा अपने-अपने धर्म मज़हब की जय-जयकार जारी है। इससे तमाम धार्मिक ढोंगी धर्म-मज़हब के गुरुओं ने आर्थिक तौर पर ना केवल बड़े साम्राज्य खड़े कर लिए हैं, बल्कि महंगे लिबासों में तमाम सुख भोगते हुए आगे-पीछे दर्ज़नों लग्ज़री गाड़ियों आदि का काफिला घूम रहा है।

बस इस खुशी की खबर से देश की दिशा और भविष्य तय होता दिख रहा है कि पूरे देश में भक्तिमय माहौल बन रहा है। सभी राज्यों की सरकारें जनता की मौलिक ज़रूरतों को अलग फेंककर धर्म-कर्म में लीन हैं। हो सकता है आने वाले चुनावों में देश के नेता ही मस्जिदों में अज़ान देकर और भभूत लपेटकर आपके दर पर वोट मांगने ना आ जाएं।

यदि रोज़गार और पेंशन मज़हबों से जुड़ें लोगों को ही प्रदान करनी है तो आईआईटी, आईआईएम और यूनिवर्सिटीज़ जैसे शीर्ष संस्थानों को बंद कर देना चाहिए। राज्यवार इस धार्मिक प्रतियोगिताओं का आयोजन हो, विज्ञान टेक्नोलॉजी जैसे विषयों को बंद करके नए भारत की जगह मध्यकाल के भारत के निर्माण में आगे बढ़ें, क्योंकि ऐसे माहौल में तो बच्चों को मुख्यधारा की पढ़ाई बेकार लगेगी।

भला जब चार आयत, अज़ान रटकर या फिर गेरुए कपड़े में रंगकर रोज़गार मिल रहा हो तो आखिर वह फीस की मोटी रकम क्यों फूंके? इस अवस्था में यदि अभी भी किसी को देश का शानदार भविष्य दिख रहा हो तो वह धर्म-कर्म चश्मा उतारकर अपनी आंखें टेस्ट ज़रूर कराएं।

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