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क्यों सवर्णों को 10% आरक्षण का दावा एक धोखा है

नरेंद्र मोदी सरकार ने 7 जनवरी को गरीब सवर्णों को 10% आरक्षण देने की बात कही। 8 जनवरी को यह बिल लोकसभा में पेश किया गया, जिसे 323 के मुकाबले 3 वोटों से पारित कर दिया गया। अब सवाल यह है कि क्या मोदी सरकार इस बिल को राज्यसभा में पारित करा पाएगी जहां उसका बहुमत नहीं है।

इस विधेयक की तकनीकी जानकारियों में जाने से पहले हमें भारतीय संविधान सभा द्वारा संविधान में दिए गए आरक्षण के प्रावधान के उद्देश्य को जानना होगा। संविधान सभा में चर्चा के दौरान आरक्षण सिर्फ पिछड़ें तबकों के लिए देने की बात कही गई थी ताकि उन्हें समाज की मुख्यधारा में लाया जा सके।

संविधान के रचयिता माने जाने वाले बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर और महात्मा गांधी के मध्य हुए पूना पैक्ट में भी सामाजिक रूप से पिछड़ी जातियों को ही समाज की मुख्यधारा में लाने के लिए आरक्षण की बात कही गई थी। तब कहीं भी आर्थिक आधार की बात नहीं की गई थी।

उस वक्त पंडित जवाहरलाल नेहरू को देश के चौमुखी विकास के लिए सबके महत्वपूर्ण योगदान की आवश्यकता थी और पिछड़ी जातियों के इतने बड़े तबके को बिना मुख्यधारा में जोड़े यह संभव ही नहीं था। अतः सामाजिक न्याय और सामाजिक समानता के लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया था।

लोहिया ने अपनी पुस्तक ‘हिन्दू बनाम हिंदू’ में यह लिखा है,

जब समाज में भयंकर असमानता व्याप्त हो, पिछड़ों की संख्या ज़्यादा हो तो उनको उठाने के लिए दूसरे लोगों को थोड़ा दबाना पड़ेगा।

महात्मा गांधी ने भी कहा है,

जब जन्म से ही व्यक्ति के पिछड़े होने का अभिशाप और बड़े होने का गौरव प्राप्त हो जा रहा है, इस आसमानता को समाप्त करने के लिए पिछड़ी जातियों को आरक्षण दिया जाना चाहिए।

पिछड़ी जातियों की रस्सियों को खोलने के लिए दिया गया है आरक्षण

उपरोक्त कहीं गई बातों का बिलकुल यह मतलब नहीं है कि सवर्णों के साथ अन्याय किया जा रहा है। जब हम न्याय की संकल्पना को देखेंगे तो अरस्तु से लेकर जॉन राल्स तक और वर्तमान में अमर्त्य सेन तक सबका यह कहना है कि समान लोगों के लिए समान न्याय तथा असमान लोगों के लिए असमान न्याय।

इस कथन के अर्थ से हमें आरक्षण के वास्तविक अर्थ को समझने में आसानी होगी। इस कथन को एक उदाहरण से समझा जा सकता है कि दो व्यक्तियों से दौड़ में प्रतिस्पर्धा करने को कहा गया, एक को स्वतंत्र छोड़ दिया गया और दूसरे के पैर बांध दिए गए और तब हम यदि उन दोनों को प्रतिस्पर्धा करने को कहें तो यह अन्याय है। यही आरक्षण भी है जो पिछड़ी जातियों की रस्सियों को खोलने के लिए दिया गया है।

सवर्णों के अधिकारों का हनन नहीं है वर्तमान आरक्षण

लेकिन वर्तमान में आरक्षण को हटाने या उसे आर्थिक आधार पर देने की बात कही जा रही है। आरएसएस और भाजपा जो आज सत्तारूढ़ पार्टी है, इसका दलित विरोध किसी से छिपा नहीं है। आरएसएस तो संविधान का विरोध करता आया है और मनुस्मृति जिसमें दलितों के लिए भयंकर अपमानजनक बातें लिखी गईं हैं, उसे अपना संविधान मानता है। इसलिए इनको आरक्षण से चिढ़ होती है।

यह जो आर्थिक आधार पर आरक्षण देने की बात कहते हैं उसका उत्तर एक न्याय की एक परिकल्पना के एक उदाहरण से दिया जा सकता है। आज भी यदि गांव में एक गरीब ब्राह्मण है और एक दलित डीएम है, यदि कभी गांव में पंचायत में फैसला लेना हुआ तो आज भी गांव में उस गरीब पंडित की बात को उस पढ़े-लिखे दलित डीएम से ज़्यादा तवज्जों दी जाएंगी।

इसी असमानता को दूर करने के लिए आरक्षण दिया गया था ना कि गरीबी उन्मूलन के लिए लेकिन आरएसएस और भाजपा ने लोगों को इसके उद्देश्यों की जानकारी से भटका दिया है और इसे सवर्णों के अधिकारों के हनन के रूप में पेश करके सवर्णों के मन में नफरत पैदा की है।

ऐसा नहीं है कि यह बिल अचानक ही आया है। इससे पहले भी भाजपा ने गुजरात चुनाव जीतने के लिए सवर्णों को आरक्षण देने की बात कही लेकिन हाईकोर्ट ने इसे खारिज़ कर दिया। इसी तरह इन्होंने छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्य प्रदेश में भी सवर्णों को आरक्षण का लॉलीपॉप थमा चुनाव जीतने के सपने देखे थे लेकिन माननीय उच्च न्यायालय के हस्तक्षेप के कारण वो ऐसा नहीं कर पाए। उसकी अगली कड़ी है केंद्र सरकार द्वारा लाया गया यह सवर्णों को आरक्षण देने वाला बिल।

आइए अब यह जान लें कि केंद्र सरकार ने कितना हास्यास्पद इसका वर्गीकरण किया है और किसे इस सुविधा का लाभ मिलेगा-

1. जिनकी आय सलाना आठ लाख से कम हो अर्थात लगभग 66 हज़ार रुपए महीना से कम हो।

2. जिनके पास ज़मीन 5 हेक्टेयर से कम हो। इस हिसाब से तो देश के लगभग सभी सवर्ण इस आरक्षण के दायरे में आ जाएंगे।

आइए अब ज़रा यह जान लेते हैं कि इस आरक्षण का लाभ उठाने के लिए किन कागज़ातों की आवश्यकता है-

अब आप इन कागज़ों से सहज अनुमान लगा सकते हैं कि जिसकी कमाई सालाना आठ लाख रुपए से कम हो वह इसका लाभ कैसे लेगा जब उसके पास बीपीएल कार्ड ही नहीं होगा? बीपीएल कार्ड के लिए तो वर्तमान समय में 32 रुपए प्रति दिन से कम कमाने वाला ग्रामीण क्षेत्र के लिए तथा 47 रुपए प्रति दिन से कम कमाने वाला शहरी क्षेत्र के लिए गरीबी रेखा के नीचे आएगा। अब सवाल यह उठता है कि क्या मोदी जी इस प्रकार गरीबी तथा गरीबों का मज़ाक नहीं उड़ा रहे हैं?

अब इस बिल की तकनीकी खामियों पर भी नज़र डाल लें।

1. इस बिल को पास कराने के लिए संसद की दोनों सदनों में सरकार को दो तिहाई बहुमत चाहिए, जो कि सरकार के पास नहीं है।

2. संसद का यह सत्र खत्म होते ही सरकार द्वारा वे विधेयक जो लोकसभा में पास कर दिए गए हैं लेकिन राज्यसभा में पास नहीं किए गए हैं उनकी उपयोगिता समाप्त हो जाएगी क्योंकि यह सरकार का अंतिम सत्र है। बजट सत्र में सरकार बजट पास कराने पर ज़ोर देगी। इस प्रकार इस विधेयक की उपयोगिता समाप्त हो जाएगी।

3. इस बिल के लिए सरकार को संविधान के अनुच्छेद 15, 16 में संशोधन करना होगा जो कि मौलिक अधिकार हैं और माननीय उच्चतम न्यायालय ने केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य वाद में कहा कि संसद को किसी भी भाग में संशोधन करने का अधिकार नहीं है, यदि वह संशोधन संविधान को दृढ़ नहीं करता हो।

4- यदि यह मुद्दा कोर्ट में जाता है तो कोर्ट केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य केस को आधार बनाएगी। कोर्ट और पीछे जाती है तो संविधान सभा की बहसों को आधार बनाएगी या फिर पूना पैक्ट को और इन तीनों ही स्थितियों में यह बिल कोर्ट द्वारा रद्द कर दिया जाएगा।

इन सब बातों से एक बात तो साफ हो गई है कि मोदी सरकार सिर्फ अपने चुनावी फायदे के लिए इस बिल को लाने का नाटक कर रही है। वास्तविकता में वह यह जानती है कि यह बिल अदालत द्वारा रद्द कर दिया जाएगा लेकिन अपने चुनावी फायदे के लिए और समाज में वैमनस्यता और बढ़ाने के साथ ही विपक्ष को पीछे धकेलने के लिए यह बिल सरकार द्वारा लाया गया है।

(*सोर्स- लूसेंट के मौलिक अधिकार में संशोधन वाले हिस्से में पहला केस गोलकनाथ बनाम पंजाब राज्य ( सन् 1967) है, जिसमें यह कहा गया है कि संविधान के किसी भी भाग में संशोधन किया जा सकता है, जिसमें अनुच्छेद 368 व मूल अधिकार भी शामिल किया गया है। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 368 के माध्यम से मौलिक अधिकारों में संशोधन पर रोक लगा दी।

परन्तु केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य वाद में यह फैसला लिया गया कि संसद प्रस्तावना में परिवर्तन कर सकती है लेकिन वह परिवर्तन मूल ढांचे को मज़बूती प्रदान करें और मूल ढांचे में आर्थिक आधार पर आरक्षण की बात ही नहीं है। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के अनुसार आरक्षण की सीमा भी 50% की है तो फैसला इन दोनों चीज़ों का उल्लंघन करता है क्योंकि आरक्षण का आधार आर्थिक रहा ही नहीं है।)

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नोट- आकाश पांडेय YKA के जनवरी-मार्च  2019 बैच के इंटर्न हैं।

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