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“वेब सीरीज़ It’s not that simple देखकर मेरा पूरा दिन बर्बाद हो गया”

पता नहीं क्या सोचकर मैंने It’s not that simple वेब सीरीज़ देख ली और अपना पूरा दिन बर्बाद कर लिया। वेब सीरीज़ के ट्रेलर और प्रमोशन में इसे एक मिडिल क्लास हाउस वाइफ के सपनों की उड़ान की तरह बेचा गया। किस तरह वो बंबई जैसे महानगर में रहते हुए अपने तलाक के मामले से निपट रही है और अपनी 10 साल की बच्ची को भी पाल रही है।

लेकिन वेब सीरीज़ में ऐसा कुछ नहीं है। मेरे हिसाब से ‘मीरा’ नाम की महिला का किरदार बहुत ही कमज़ोर लिखा गया है। पूरी सीरीज़ में वो अपनी सेक्शुएलिटी एक्स्प्लोर करने की बजाय आदमियों के लिए एंटरटेनमेंट बनी ही नज़र आ रही हैं।

एक प्रगतिशील महिला की पसंद बनाम उलझनें

उनका कई साल पुराना दोस्त उनपर बुरी नज़र रखता है। वो उसके साथ जिस्मानी रिश्ते ना रखने के लिए उसे खराब चरित्र की महिला कहता है लेकिन मीरा जैसी स्ट्रॉन्ग महिला अपने चरित्र पर सवाल उठाए जाने के बावजूद उसे बेस्ट फ्रेंड ही रखती हैं।

मतलब ऐसा कौन सा बेस्ट फ्रेंड होता है जो अपनी महिला मित्र की शादी होने और उसकी 10 साल की बच्ची होने के बावजूद, उसे सिर्फ खराब नज़रों से देखे? एक आदमी जिसे मीरा के हज़ार बार ना कहने या उसके कंसेंट की परवाह नहीं वो कैसा बेस्ट फ्रेंड? वेब सीरीज़ के लेखकों ने बड़ी चालाकी से अपने दूसरे किरदार से चंद सेकेंड्स में कंसेंट पर एक डॉयलॉग ज़रूर बुलवा दिया ताकि सोशल मीडिया की बहसों और ज़िरह में भी रेलेवेंट ही बने रहें।

सातों एपिसोड्स के दौरान मीरा का किरदार कहता रहता है कि उसकी सफलता किसी मर्द के बिस्तर से होकर नहीं जाएगी लेकिन करतीं बिलकुल उसका उल्टा हैं। अपने बेस्ट फ्रेंड, जो कि सारा समय उनसे सेक्शुअल फेवर्स मांगता रहता है, उसे जाने ही नहीं देतीं। बॉस, जिसका सिर्फ एक ही मकसद है, उसे पाना, उसे भी एंटरटेन करती हैं। हां बाद में धोखा मिलने पर यह ज़रूर कहती हैं कि वो उसे जेल भी भिजवा सकती हैं, बिकॉज़ सेक्शुअल हैरेसमेन्ट एट वर्क प्लेस, लेकिन भिजवाती नहीं हैं।

पता नहीं आजकल किस तरह के तलाक हो रहे हैं। जिस पति से तलाक लेकर वो अपना ‘सेल्फ’ खोज रही हैं, उस पति को एंटरटेन भी कर रही हैं। वो उसी के घर रहता है, उसी से चिकन वाला सूप भी बनवा रहा है लेकिन दोनों तलाक भी ले रहे हैं। वेब सीरीज़ में ये साफ नहीं हो पाता कि वो तलाक ले क्यों रहे हैं?

एक स्टॉकर या फिर एक संवेदनशील पुरुष

एक अंगद नाम के पत्रकार हैं जो पद्मश्री लिए बैठे हैं, वो कोई मीटिंग्स अटेंड नहीं कर रहे, कोई रिपोर्टिंग नहीं कर रहे, बस एक शादीशुदा महिला को स्टॉक कर रहे हैं।

क्योंकि देर रात दोनों की गाड़ियां भिड़ जाती हैं और दोनों लड़ पड़ते हैं। उसके बाद दोनों सोशल मीडिया पर एक दूसरे को भयंकर ट्रोल करते हैं। इसके बावजूद अंगद, मीरा के पीछे 500 चक्कर, 600 ईमेल और करीब हज़ारों बार फोन करते हैं क्योंकि उन्हें मीरा से सलाह लेनी है कि वो अपनी बेटी को सच कैसे बताएं, जो उनकी है तो बेटी लेकिन दोस्त भी है।

पागलों की तरह एक दूसरे को सोशल मीडिया पर ट्रोल करने के कुछ सीन बाद ही अंगद, द पद्म श्री पत्रकार, मीरा के घर बैठे हैं और उसको गले लगाकर कहते हैं कि वो उनकी ज़िंदगी में मायने रखती हैं।

मीरा, उस आदमी को भी ना नहीं कह पाती जो उनके घर-दफ्तर के 500 चक्कर लगा चुका है जिसे लीगल टर्म्स में पीछा करना यानी स्टॉकिंग कहते हैं। बाद में अंगद के किरदार को बाकी मर्दों से अलग दिखाने की छोटी सी कोशिश की गई है। वो आदमी जो मदद मांगती महिला का फायदा नहीं उठाता लेकिन सारा समय उससे साथ सेक्शुअल जोक्स ज़रूर करेगा। उसे मजबूर करके अपने कमरे में रखेगा, अपनी शर्ट उतारकर काम करेगा।

लेकिन वह बाकियों से तो अलग ही है क्योंकि उसने फायदा तो नहीं उठाया ना!

स्टीरियोटाइप तोड़ रहे हैं या कहानी की कमड़!

इस सीरीज़ में एक और स्टीरियोटाइप तोड़ने के लिए लेस्बियन कपल की भी कहानी जोड़ दी गई है। हालांकि वो कपल कहानी में क्यों रखा गया ये मुझे अंत तक समझ नहीं आया। हो सकता है लेस्बियन यौन संबंध दिखाने की फैंटसी पूरी करने के लिए जोड़ दिया गया हो।

एक और चीज़ भी समझ नहीं आई, आदमियों को शर्टलेस दिखाने की क्या ज़रूरत थी? एक तरफ फेमिनिज़्म का ध्वज दूसरी तरफ माचोइज़्म का भी? मतलब बराबरी बनी रहे!

हालांकि वेब सीरीज़ में फेक न्यूज़ को भी पकड़ने की कोशिश की गई है। अंगद, द पद्म श्री पत्रकार, फेक न्यूज़ पर भी एक डायलॉग मार रहा है। वीरे दी वेडिंग की तरह चार-पांच डायलॉग महिलाओं के बारे में ओछी टिप्प्णियों वाले भी रखे गए हैं।

कुल मिलाकर काफी प्रोग्रेसिव येट रिग्रेसिव वेब सीरीज़। कमज़ोर महिला के किरदार को पावरफुल दिखाकर बेचने की कोशिश। ज़्यादातर कंटेंट फेसबुक से उठाकर फेसबुक की जनता को ही परोस दिया गया है। स्वरा भास्कर, पूरब कोहली और सुमीत व्यास जैसे अच्छे एक्टर्स का टाइम बर्बाद किया गया है। देखने वालों का तो हो ही रहा है।

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