किसी भी देश का भविष्य उस देश के युवा पर निर्भर होता है और उस युवा का विकास कितना हो रहा है, वह उसकी शिक्षा पर निर्भर करता है। युवाओं का देश कहे जाने वाले भारत में शिक्षा व्यवस्था पर लगातार सवाल खड़े हो रहे हैं।
अभी हाल ही में एक शोध के माध्यम से यह बात सामने आई कि देशभर के पांचवी कक्षा के 55.8 फीसदी छात्र दूसरी कक्षा के लिए तैयार किए गए पाठ पढ़ने में सक्षम नहीं हैं। इस रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया है कि आठवीं कक्षा के 56 फीसदी बच्चे भाग देने में सक्षम नहीं हैं।
देश पर कैसे पड़ रहा है इसका असर
यह कोई आम बात नहीं है कि पांचवी में पढ़ने वाले छात्र दूसरी कक्षा के पाठ नहीं पढ़ सकते। इस समस्या का सीधा असर उस वक्त देखा जाता है जब प्रतियोगिता के इस युग में युवाओं के पास डिग्री तो थमा दी जाती है लेकिन उस डिग्री का करना क्या है, उसका जवाब उसके पास नहीं होता है।
केवल एक कक्षा से दूसरी कक्षा में पहुंचना ही शिक्षा नहीं है। दुर्भाग्य की बात यह है कि भारत में बच्चों को शिक्षा देने के नाम पर हर साल मार्कशीट पकड़ा दिया जा रहा है। आलम यह है कि बच्चे आगे तो बढ़ रहे हैं लेकिन उनको यह मालूम नहीं है कि पिछले साल उन्होंने पढ़ा क्या है।
इसका हमारे देश पर तब गहरा असर पड़ता है जब केवल डिग्री लेकर युवा सड़कों पर रोज़गार के लिए भटकते हैं जहां उन्हें मालूम ही नहीं है कि किस रोज़गार के लिए उन्होंने डिग्री हासिल की है। नतीजा यह होता है कि ग्रेजुएट युवाओं को भी उन नौकरियों में अप्लाई करना पड़ता है जिनमें उनकी दिलचस्पी नहीं होती है।
बच्चों का भविष्य बनाने की ज़िम्मेदारी अध्यापकों के कंधों पर होती है जिन्हें गुरू का दर्जा दिया जाता है। ऐसे में छात्रों को ज़िम्मेदारी लेनी होगी कि क्यों पांचवी कक्षा के छात्र दूसरी कक्षा की किताब नहीं पढ़ पा रहे हैं।
असल बात यह है कि सरकारी स्कूलों के शिक्षकों को बच्चों के भविष्य की चिंता रहती ही नहीं है। वह केवल चार बजने का इंतज़ार करते हैं ताकि घर जाकर आराम फरमाएं।
अगर शिक्षकों को अपनी ज़िम्मेदारी का अहसास होता तब शायद शिक्षा की यह दुर्दशा देखने को नहीं मिलती। हमें सोचना होगा कि क्या शिक्षक उन तमाम बच्चों को यह बता पाने में सक्षम हैं कि दिक्कत कहां पर है और उन्हें कैसे सुधारा जा सकता है।
स्कूलों के मौजूदा हालातों पर हम जितना अधिक तर्क कर लें लेकिन जब तक शिक्षक अपनी ज़िम्मेदारी नहीं समझ पाएंगे, माफ कीजिएगा तब तक शिक्षा की हालत नहीं सुधर सकती है।
ऐसा नहीं है कि शिक्षा को लेकर हर शिक्षक अपनी ज़िम्मेदारी से भाग रहा है लेकिन हकीकत यह भी है कि ज़्यादातर शिक्षक अपने काम को शिद्दत से करने में असफल हैं। इसी वजह से पांचवी कक्षा के बच्चे दूसरी कक्षा की किताब नहीं पढ़ पा रहे हैं। ऐसे में शिक्षकों को पूछना पड़ेगा कि आपने आखिर दूसरी, तीसरी और चौथी कक्षा में क्या पढ़ाया?
समस्या का हल कैसे होगा?
इसमें कोई संदेह नहीं है कि हालात पहले से सुधर रहे है। जो बच्चे पहले स्कूल जाते नहीं थे, अब वह भी जाने लगे हैं। ‘मिड डे मील’ जैसे कार्यक्रम के बल पर बच्चे ना सिर्फ भोजन कर रहे हैं बल्कि स्कूलों तक पहुंच भी रहे हैं। उद्देश्य केवल बच्चों को स्कूल भेजने और कक्षा परिवर्तन करने तक ही सीमित नहीं होनी चाहिए।
हम केवल बच्चों को स्कूल भेजकर शिक्षा नहीं दे सकते है। इसके लिए बेहद ज़रूरी है कि शिक्षकों को उनकी ज़िम्मेदारी का अहसास हो। उनसे संवाद का स्तर बढ़ाते हुए बोलिए कि आपकी ज़िम्मेदारी केवल बच्चों को एक कक्षा से दूसरी कक्षा तक पहुंचाने से ही खत्म नहीं होती ब्लकि आपको उनका विकास भी करना होगा।
जिस प्रकार से क्रिकेट में खराब प्रदर्शन करने पर कोच और कप्तान पर ज़िम्मेदारी आती है और लगातार चुनाव हारने पर पार्टी अध्यक्ष की जवाबदेही होती है, वैसे ही शिक्षकों को भी ज़िम्मेदारी लेनी होगी कि क्यों पांचवी कक्षा के छात्र दूसरी कक्षा की किताब नहीं पढ़ पा रहे हैं।