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समस्तीपुर उपचुनाव और रामविलास पासवान का भाई-भतीजावाद

फोटो साभार- फेसबुक

फोटो साभार- फेसबुक

समस्तीपुर लोकसभा उपचुनाव 2019 में यूपीए गठबंधन के काँग्रेस पार्टी से डॉ. अशोक कुमार राम हैं। वहीं, दूसरी तरफ एनडीए गठबंधन के लोक जनशक्ति पार्टी से प्रिंस राज हैं, जिन्होंने अपना नामांकन दाखिल किया है। वह पिता (रामचन्द्र पासवान) की सीट पर चुनाव लड़ रहे हैं। 

हाल ही में उनके पिता की मृत्यु होने के बाद यह सीट खाली हो गई थी, जिसके बाद रामविलास पासवान ने उन्हें सहानुभूति के तौर पर उम्मीदवार बनाया है। वह 2014 में कल्याणपुर से विधानसभा चुनाव लड़ चुके हैं, जहां से उन्हें भारी मतों से हार का सामना चाचा महेश्वर हज़ारी पासवान से करना पड़ा था।

टिकट का गणित

दरभंगा ज़िले के कुशेश्वरस्थान प्रखंड के रहने वाले महेश्वर हज़ारी वर्तमान में बिहार सरकार में मंत्री हैं। खास बात यह है कि अभी तक समस्तीपुर लोकसभा सीट से महेश्वर हजारी एवं प्रिंस राज के परिवार को छोड़कर कोई सांसद नहीं बना है और ना ही लोक जनशक्ति पार्टी ने आज तक किसी स्थानीय कार्यकर्ता को टिकट दिया है।

डॉ. अशोक कुमार राम ने 6ठी बार नॉमिनेशन किया है मगर वह पांच बार लोकसभा चुनाव हार चुके हैं। वर्तमान में वह काँग्रेस पार्टी से रोसड़ा के विधायक हैं। यह समस्तीपुर ज़िले के स्थानीय हैं और विभूतिपुर प्रखंड के रहने वाले हैं।

समस्तीपुर में दलित जातियों का चुनाव

समस्तीपुर लोकसभा की खास बात यह है कि यहां चुनाव दलितों की दो जाति में होती है जिसमें अन्य जातियों का समर्थन रहता है। इन दोनों जाति के प्रत्याशी को यूपीए गठबंधन होने के कारण पिछड़ा (40%) और अल्पसंख्यक (95%) समाज का साथ इनके साथ रहता है। ठीक उसी प्रकार एनडीए गठबंधन में रहने के कारण पिछड़ा (60%) और सवर्ण (95%) समाज का साथ रहता है।

फोटो साभार- चिराग पासवान फेसबुक

जीत की अहम कड़ी पिछड़े वर्ग के लोग हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि वे मोदी को देखकर वोट देंगे या महागठबंधन के नेता तेजस्वी को देखकर वोट करेंगे। इन दोनों प्रत्याशी का जनता के बीच अपना कोई वजूद नहीं है। इनको वोट सिर्फ पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के नाम पर वोट मिलता रहा है।

लोकसभा उपचुनाव और विरासत की राजनीति

विरासत की राजनीति के महल में ईंट को जोड़ने के लिए सीमेंट की नहीं, बल्कि गरीब कार्यकर्ताओं के खून, पसीने और मेहनत के मिलावट की ज़रूरत होती है, तब जाकर विरासत के राजकुमार पैदा लेते हैं।

काँग्रेस ने समस्तीपुर लोकसभा में हारे हुए प्रत्याशी को उतारकर बहुत ही गलत निर्णय लिया है। विरासत की राजनीति का मुकाबला जब दो अमीरों के बीच में हो, तब जनता उसी को चुनती है, जो सबसे ज़्यादा पैसे वाला होता है इसलिए इस मुकाबले में जीत किसकी होगी यह तो तय है।

अगर समस्तीपुर लोकसभा उपचुनाव का मुकाबला एक तरफ विरासत की राजनीति के अमीर और दूसरी तरफ गरीब संघर्ष करने वाले दलित युवाओं के बीच होता तो मुकाबले के परिणाम कुछ और ही होते।

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