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झारखंड की ‘सौरिया पहाड़िया’ जनजाति जिन्हें पानी तक नसीब नहीं

आदिवासी समाज

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संताल परगना के गोड्डा ज़िले के सुंदरपहाड़ी प्रखंड में कई जनजातियां निवास करते हैं। यहां के दुर्गम पहाड़ी क्षेत्रों में निवास करने वाली जनजातियों में ‘सौरिया पहाड़िया’ जनजाति को सबसे प्राचीन जनजाति माना जाता है।

मौजूदा वक्त में ‘सौरिया पहाड़िया’ जनजाति की संख्या में लगातार कमी आ रही है जो भारी चिंता का विषय है। वर्ष 2001 में भारत की जनगणना के अनुसार इनकी जनसंख्या 61,121 थी। वहीं, साल 2011 की जनगणना मे यह घट कर मात्र 46,222 रह गई। अब प्रश्न उठता है कि इन दस वर्षों में 14,899 ‘सौरिया पहाड़िया’ आखिर कहां चले गए ?

बाहरी हस्तक्षेपों एवं तथाकथित विकास के बुलडोज़रों ने इन आदिवासियों के प्राकृतिक संसाधनो को कम कर दिया है। वे आदिवासी जंगलो पर आश्रित थे जिनका जीवन कंदमूल, जड़ी बूटी एवं जंगली उत्पादों द्वारा चलता था। विकास के नाम पर जब अंधाधुंध जंगलों की कटाई शुरू हुई तब यहां की स्थानीय जनजातियां भी उस तथाकथित विकास के कारण प्रभावित हुई।

तबाह होते जंगल

आपको बता दें कि वर्ष 1936 में यहां 66% जंगल थे जो अब केवल 10% ही रह गए हैं। हमें यह स्वीकारना होगा कि जिस प्रकार से इन क्षेत्रों में जंगल कम होते जा रहे हैं, उसी अनुपात से यहां के जनजातियों की संख्या भी घटती जा रही है। ऐसे में इन चीज़ों को गंभीरता से समझने की ज़रूरत है।

इन क्षेत्रों में कृषि इन जन जातियों के जीवन का आधार नहीं बन पाई क्योंकि यहां पानी की जबरदस्त दिक्कत है। यहां के जनजातियों की संख्या में तेज़ी से कमी आने के लिए पानी की समस्या भी एक प्रमुख कारण है। पीने के लिए पानी और खेती के लिए यह आदिवासी समुदाय पूर्ण रूप से मौसम पर ही निर्भर हैं।

नोट: तस्वीर प्रतीकात्मक है। फोटो साभार: Flickr

आलम यह है कि पीने का पानी चार पांच किलोमीटर दूर से लाना पड़ता है। यह आदिवासी जिस स्रोत से पीने का पानी लाते हैं वह पानी उनके लिए किसी ज़हर से कम नहीं है। इन क्षेत्रों में लापरवाही के कारण पानी की ऐसी सुविधा उपलब्ध नहीं हो पा रही है, जिसका नतीजा यह है कि यहां के जनजातियों को ज़हरीला पानी पीना पड़ रहा है।

ज़मीनों पर अडानी का कब्ज़ा

सुंदर प्राकृतिक क्षेत्रों से घिरा यह ‘सुंदरपहाड़ी’ अब अडानी जैसे कंपनियों के हवाले कर दिया गया है। अडानी समूह के 1600 मेगावाट वाले थर्मल पावर प्रोजेक्ट को मंजूरी मिल गई है। वहां के आदिवासियों एवं किसानों की ज़मीनों का अधिग्रहण भी शुरू हो चुका है।

‘विकास’ उन किसानों एवं आदिवासियों को कहां उठाकर फेंक देगा पता नहीं! खैर, निश्चिन्त रहिए, सरकार द्वारा ‘आदिवासी कार्निवल’ के लिए इन जनजातियों को खोज ही लिया जाएगा ताकि महामहिम के समक्ष यह जनजातियां नृत्य और गीत पेश कर पाएं और महामहिम इन जनजातियों के लिए कोई अच्छा सा भाषण दे सकें।

नोट: प्राचीन जनजाति ‘सौरिया पहाड़िया’ पर एक डॉक्यूमेंट्री से आंकड़े लिए गए हैं।

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