Site icon Youth Ki Awaaz

“झारखंड के पारा शिक्षकों पर सरकार की सख्ती आखिर क्यों?”

आंदोलन के दौरान झारखंड के तमाम पारा शिक्षक

आंदोलन के दौरान झारखंड के तमाम पारा शिक्षक

झारखंड की राजधानी रांची में आयोजित झारखंड स्थापना दिवस के दौरान पारा शिक्षकों पर हुए लाठीचार्ज के विरोध में 25 नवंबर से झारखंड की समाज कल्यान मंत्री लुईस मरांडी के आवास के सामने तमाम पारा शिक्षक धरना दे रहे थे। इस दौरान 35 वर्षीय कंचन कुमार दास की ठंड से मौत हो गई।

कंचन अपने आंदोलनरत साथियों के साथ-साथ परिवार को भी छोड़ गए। वह रामगढ़ प्रखंड की भातूडि़या पंचायत के चीनाडंगाल उत्क्रमित मध्य विद्यालय में 2005 से बतौर पारा शिक्षक कार्यरत थे। पारा शिक्षकों के साथ वह विभिन्न मांगों को लेकर पिछले कुछ समय से आंदोलन में शामिल थे।

गौरतलब है कि तमाम पारा शिक्षक ‘मंत्री लुईस मरांडी’ के आवास के बाहर कई दिनों से धरना प्रदर्शन कर रहे थे लेकिन उन्होंने शिक्षकों से बात करने की ज़हमत नहीं उठाई। बहरहाल, कम मानदेय पर काम कर रहे पारा शिक्षक कंचन दास की मौत से परिजन और साथी बेहद सदमें में हैं क्योंकि रोटी का संकट खड़ा हो गया है। इसकी ज़िम्मेदारी किसकी बनती है, यह ज़ाहिर है लेकिन जानकारी के मुताबिक सरकार ने इस मौत को कतई गंभीरता से नहीं लिया।

कहानियां और भी हैं

जीनत खातून की कहानी भी कुछ ऐसी ही है जिन्होंने पेयजल एवं स्वच्छता मंत्री चंद्रप्रकाश चौधरी के आवास पर धरना देते हुए दम तोड़ दिया। वह भी अन्य पारा शिक्षकों के साथ अपनी कुछ मांगों को लेकर प्रदर्शन कर रही थीं।

एक अन्य मामले में साहेबगंज ज़िले के उधवा के रहने वाले सुभाष चंद्र मंडल की आर्थिक तंगी से मौत हो गई। जानकारी मिली कि किसी गंभीर बीमारी के कारण सुभाष ने इलाज के लिए कर्ज़ भी लिया था लेकिन पारा शिक्षकों की लगातार हड़ताल और सरकार की उदासीनता की वजह से उन्हें तीन महीनों से मानदेय नहीं मिली थी। इस दौरान इलाज के अभाव में उनकी मौत हो गई।

आंदोलन के दौरान तमाम पारा शिक्षक। फोटो साभार: सोशल मीडिया

आंकड़ों की माने तो झारखंड में अब तक तकरीबन दर्जन भर पारा शिक्षकों की मौत हो चुकी है। इसकी शुरूआत 15 नवंबर 2018 को झारखंड की राजधानी रांची में आयोजित राज्य के 18वें स्थापना दिवस के दिन से हुई। पारा शिक्षकों ने अपनी बात हठधर्मी सरकार तक पहुंचाने के लिए इसी दिन को चुना। कयास लगाए जा रहे थे कि सरकार और प्रशासन ने पारा शिक्षकों पर दमन करने की सारी तैयारी कर रखी थी।

पारा शिक्षकों द्वारा कार्यक्रम स्थल तक पहुंच कर सरकार के विरोध और अपनी मांगों के समर्थन में नारे लगाते ही पुलिस के जवानों ने हमला बोल दिया। कई शिक्षक इस दौरान घायल हो गए और यहां तक कि घटना को कवर करने आए पत्रकारों को भी चोटें आईं। इसी दौरान शिवला सोरेन नामक पारा शिक्षक लाठीचार्ज में घायल हुए जो तब से लापता ही हैं।

ऐसा लगा जैसे कुछ हुआ ही नहीं है

हैरानी की बात यह है कि दूसरे दिन प्रिंट मीडिया में खबर छपी कि 216 पारा शिक्षकों को बर्खास्त कर दिया गया और 280 गिरफ्तार कर लिए गए। उस दिन राज्य और शायद देश ने जाना कि अपनी ही चुनी हुई सरकार के खिलाफ असंतोष प्रकट करना अब अपराध की श्रेणी में आता है। मतलब  किसी ने ठीक ही कहा कि लोकतंत्र में जनता इस गलतफहमी में जीती है कि उसके वोट ने उसकी सरकार चुनी है।

इलेक्टॉनिक मीडिया और प्रिंट के पत्रकारों के साथ हुई मारपीट की खबरें चर्चा में रहीं लेकिन किसी भी मीडिया में पारा शिक्षकों की मांगों से संबंधित कोई खबर नहीं थी। इसी दिन के बाद से पारा शिक्षकों ने उग्र आंदोलन का रूख किया जिसमें दर्जन भर शिक्षकों की मौत हो चुकी है। इन सबके बीच सरकार इनकी मांगे पूरी तो दूर, इनसे बात तक करने को तैयार नहीं हैं।

इस मामले में मुख्यमंत्री रघुवर दास का बयान कोई कैसे भूल सकता है। पारा शिक्षकों की गिरफ्तारी के बाद उन्हें गुंडा बताते हुए सीएम साहब ने कहा कि इनपर इतना धारा लगाएंगे कि जमानत करवाने में पसीना छूट जाएगा। यह साफ तौर पर एक धमकी थी।

पारा शिक्षकों की मांग

पारा शिक्षकों का यह आंदोलन कोई नया नहीं है। उनकी मांग है कि उनकी सेवा को स्थाई कर उचित और सम्मानजनक वेतनमान दिया जाए। उन्होंने इसके लिए उच्चतम न्यायालय के समान कार्य-समान वेतन वाले निर्देश का हवाला दिया है। पारा शिक्षकों को जो मानदेय मिलता है वह तीन श्रेणियों में दिया जा रहा है। पहला वह जिन्होंने टेट यानि ‘टीचर एबिलिटी टेस्ट’ पास कर लिया है। दूसरे वे जिन्होंने प्रशिक्षण प्राप्त किया है और तीसरे वे जिन्होंने केवल ग्रेजुएशन किया है।

इन तीन श्रेणियों में अधिकतम मानदेय महज 10, 000 रुपये  है। पारा शिक्षकों के लिए सरकार ने स्थायीकरण वाला रास्ता बिलकुल बंद कर दिया है। सरकार ने वेतनमान वाली मांग भी अस्वीकार कर दी है और मानदेय में बढ़ोत्तरी का जो प्रस्ताव दिया है उस पर पारा शिक्षक संघ का कहना है कि सरकार ने इसके ज़रिए हमारे साथ भद्दा मज़ाक किया है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास। फोटो साभार: Getty Images

सरकार ने जो प्रस्ताव दिया है उसके मुताबिक बढ़े हुए मानदेय के हिसाब से टेट पास पारा शिक्षकों का अधिकतम वेतन 13, 000 होगा, जबकि अनट्रेंड पारा शिक्षकों का मानदेय 11,000 होगा। पारा शिक्षकों का कहना है कि यह सरकार का हठी और तानाशाही रवैया दिखाता है और हमें यह कतई मंजूर नहीं है।

पारा शिक्षक संघ का कहना है कि वे सरकारी शिक्षकों के बराबर वेतन और सुविधाएं नहीं मांग रहे हैं। बस समान कार्य के समान वेतन की तर्ज पर उचित वेतन की मांग कर रहे हैं लेकिन सरकार किसी भी तरीके से झुकने को तैयार नहीं है।

पारा शिक्षक अपनी मांगों के लिए बिहार और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों का हवाला दे रहे हैं जहां उन्हें स्थाई तौर पर बहाल किया गया है और उचित वेतन दिया जा रहा है। उनका कहना है कि छत्तीसगढ़ की तर्ज पर उनकी मांगों पर विचार किया जाए। सरकार ने इसके खिलाफ तर्क देते हुए कहा कि छत्तीसगढ़ में पारा शिक्षकों का चुनाव पंचायतों में ग्राम सभा द्वारा किया गया था जबकि झारखंड में उनका चयन गाँव की अनौपचारिक ग्राम सभा द्वारा किया गया।

मुख्यमंत्री का कहना है कि चयन प्रक्रिया को देखते हुए पारा शिक्षकों के आंदोलन का कोई मतलब नहीं बनता है। हालांकि बीच में सरकार ने पारा शिक्षकों के लिए कल्याण कोष बनाए जाने की घोषणा की थी जिसके तहत किसी पारा शिक्षक के निधन की सूरत में 2 लाख रुपये तक का मुआवजा देने की घोषणा की गई।

जब इस योजना का तह खंगाला गया तब यह हास्यास्पद और भद्दा मज़ाक सरीखा लगा। इस योजना के लिए पारा शिक्षकों के वेतन में से ही प्रतिमाह 200 रुपये कल्याण कोष में जमा करना तय किया गया और इसी जमा राशि से मुआवजे का प्रावधान था।

आपको बता दें झारखंड में तकरीबन 67,000 पारा शिक्षक हैं। झारखंड में पारा शिक्षकों की नियुक्ति साल 2002 से 2010 के बीच हुई थी। इस दौरान झारखंड में पंचायती राज व्यवस्था का कोई अस्तित्व ही नहीं था। ऐसे में किस आधार पर सरकार इसका हवाला दे रही है?

पारा शिक्षक संघ ने अपनी बात के समर्थन में तर्क देते हुए बताया कि ग्राम सभा के माध्यम से जो बहालियां हुई थीं उसकी निगरानी के लिए प्रखंड स्तर पर पर्यवेक्षकों की नियुक्ति की गई थी। शिक्षकों के चयन के बाद ज़िलाधिकारी द्वारा नियुक्तियों की जांच होने के बाद उसे शिक्षा विभाग के पास भेजा गया। जांच के बाद ही पारा शिक्षकों से सेवा लेने की शुरुआत हुई। ज़ाहिर है कि मांगों के विरोध में मुख्यमंत्री जिस तरीके की दलीलें दे रहे हैं इससे वह नियुक्ति प्रक्रिया पर ही सवाल खड़े कर रहे हैं।

झारखंड में प्राथमिक शिक्षा की रीढ़ हैं पारा शिक्षक

पारा शिक्षकों का कहना है कि वे राज्य में प्राथमिक शिक्षा की रीढ़ हैं। अध्यापन के अलावा सरकार उनसे और भी कई तरीके के गैर शैक्षिणिक कार्य लेती है जिनमें निर्वाचन सेवा से लेकर जनगणना और पोलियो ड्रॉप पिलाना तक शामिल है। झारखंड का अधिकांश इलाका सुदूर ग्रामीण और दुर्गम भौगोलिक परिस्थितियों वाला है। पारा शिक्षकों को यातायात से लेकर अपनी सुरक्षा तक की ज़िम्मेदारी लेनी होती है। वे स्कूल के अलावा आजीविका के लिए और कुछ भी नहीं कर पाते हैं।

नोट: तस्वीर प्रतीकात्मक है। फोटो साभार: Flickr

पारा शिक्षकों ने स्थायीकरण के अलावा न्यूनतम 18,000-22,000 तक के सम्मानजनक वेतन की मांग की है। इस संदर्भ में झारखंड की शिक्षा मंत्री नीरा यादव के साथ पारा शिक्षकों के प्रतिनिधियों की वार्ता हुई लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। सरकार मानदेय में उंट के मुंह में जीरा जितना बढ़ोत्तरी करने पर अड़ी है, वही पारा शिक्षक अपनी मांगों से पीछे हटने को तैयार नहीं हैं।

इनका कहना है कि अब मुख्यमंत्री से सीधे वार्ता होगी लेकिन मुख्यमंत्री हड़ताल खत्म करने की शर्त के साथ वार्ता पर अड़े हैं। पारा शिक्षकों का मानना है कि पिछले अनुभवों के आधार पर अगर वे हड़ताल खत्म करते हैं तब यह उनकी हार होगी जिससे सरकार को कोई फर्क नहीं पड़ेगा।

फिलहाल दोनों ओर से गतिरोध जारी है और तत्काल इसका कोई समाधान निकलता नहीं प्रतीत होता। इधर मुख्यमंत्री के खिलाफ पारा शिक्षकों में रोष पनपता जा रहा है। ज़ाहिर है कि इसका चुनावी नुकसान सत्ताधारी ‘भारतीय जनता पार्टी’ को हो सकता है। सहयोगी पार्टी आजसू, मुख्य विपक्षी दल झारखंड मुक्ति मोर्चा और झारखंड विकास मोर्चा आदि ने इनकी मांगों का समर्थन किया है।

नोट: तस्वीर प्रतीकात्मक है। फोटो साभार: सोशल मीडिया

अब इस आंदोलन का राजनीतिकरण हो चुका है। उल्लेखनीय है कि भारतीय जनता पार्टी ने अपने घोषणापत्र में स्थायीकरण का उल्लेख किया था। खैर, इस समय झारखंड के पारा शिक्षकों के साथ यहां की प्राथमिक शिक्षा भी अधर में है। अब देखना है कि सरकार इनकी मांगो को मानती है या फिर इनका आंदोलन जारी रहता है।


 

Exit mobile version