Site icon Youth Ki Awaaz

“सड़क भले सरकारी है मगर ज़िन्दगी आपकी अपनी है”

रोड ट्रैफिक

रोड ट्रैफिक

भारत में रोड एक्सीडेंड के आंकड़े बेहद परेशान करने वाले हैं। साल 2017 में प्रत्येक 10 मिनट में रोड एक्सीडेंट से तीन मौतें हुई हैं। इससे पता चलता है कि हमारे देश में रोड सेफ्टी के मुद्दे को लेकर जागरुकता फैलाने और इस पर काबू पाने की कितनी अधिक ज़रूरत है।

हालांकि वर्ष 2016 की तुलना में 2017 में 1.9 फीसदी कम मौतें हुई्ं लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि हम इस पर खुश हो जाएं। आए दिन हम अपने आस-पास रोड एक्सीडेंट की घटना देखते-सुनते या पढ़ते रहते हैं।

वर्ल्ड बैंक की एक रिपोर्ट के मुताबिक यदि रोड एक्सीडेंट्स से होने वाली मौतों और दुर्घटनाओं को वर्तमान स्तर से घटा कर आधा कर लिया जाए, तब कुछ चुनिंदा देशों के जीडीपी में अगले 24 वर्षों तक 7 से 22 फीसदी तक की बढ़ोतरी हो सकती है।

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार: Flickr

मोटे तौर पर यह सरकार द्वारा प्रति व्यक्ति कल्याणकारी योजनाओं पर खर्च किए जाने वाली 6 से 32 फीसदी राशि के बराबर होगा। इसी तरह प्रतिवर्ष उचित समय पर सहायता के अभाव में करीब 1.5 मिलियन लोगों की मौत हो जाती है, जिसके साथ ही उनकी उत्पादकता भी नष्ट हो जाती है।

इससे संवृद्धि की संभावनाएं भी प्रभावित होती हैं। इस लिहाज़ से भारत की बात करें, जहां की आबादी का एक बड़ा भाग निम्न तथा मध्यमवर्गीय परिवारों का है और जहां उन्हें किसी तरह की औपचारिक सामाजिक कल्याण संबंधी सुविधा प्राप्त नहीं है, वहां रोड एक्सीडेंट्स में कमी लाकर उनके जीवन स्तर को बढ़ाया जा सकता है।

वर्ल्ड बैंक के कथनानुसार रोड सेफ्टी का मसला केवल यातायात क्षेत्र से नहीं जुड़ा है बल्कि इसका प्रत्यक्ष प्रभाव जन स्वास्थ्य, समाज और अर्थव्यवस्था पर भी पड़ता है।

इस कथन का वास्तविक अर्थ समझने के लिए निम्नलिखित तथ्यों एवं आंकड़ों पर गौर करें:

रिपोर्ट के अनुसार, रोड एक्सीडेंट्स में मरने वाले या गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त होने वाले लोगों में से ज़्यादातर 15-64 आयु वर्ग के लोग होते हैं, जिन पर किसी भी देश के आर्थिक विकास की नींव टिकी होती है। ऐसे में उनके ना होने से उस देश की उत्पादकता और विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

वर्ष 2016 में प्रस्तुत ‘यूनाइटेड नेशंस इकोनॉमिक एंड सोशल कमीशन फॉर एशिया एंड द पैसिफिक’ (UNESCAP) द्वारा 19 एशिया-पैसिफिक देशों में किए गए एक अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार, एशिया-पैसिफिक देशों में रोड एक्सीडेंट से प्रत्येक 40 सेकेंड में एक व्यक्ति मारा जाता है।

मतलब हर सप्ताह करीब 1500 जानें चली जाती हैं। इस लिहाज़ से हर साल देश को होने वाली आर्थिक क्षति का आकलन करें तो भारत केवल जापान से पीछे है। वही, अगर जीडीपी में होने वाले नुकसान की दृष्टि से देखें तब इस अध्ययन में शामिल सभी देशों की कुल जीडीपी हानि करीब 2,93,568 मिलियन डॉलर है। भारत ईरान से भी पीछे है जिसका जीडीपी करीब छह फीसदी (30,697 मिलियन डॉलर) है।

सड़क, परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के यातायात शेाध विंग द्वारा जारी इस रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2017 में भारत के सभी राज्यों एवं संघ शासित प्रदेशों में कुल 4,64,910 रोड एक्सीडेंट्स की घटनाओं में करीब 1,47,913 लोगों की मौत हुई, जबकि 4,70,975 लोग घायल हुए। रोड एक्सीडेंट्स के सबसे ज़्यादा हादसे दो-पहिया वाहनों (33.9%) से हुए हैं।

बाइक एक्सीडेंट

एक अनुमान के अनुसार भारत में वर्ष 2000 से 2018 के बीच प्रति व्यक्ति प्रति घंटे श्रम उत्पादकता की दर 9 डॉलर यानी करीब 640 रुपये है। ऐसे में हर साल रोड एक्सीडेंट से साढ़े तीन करोड़ रुपयों का नुकसान होता है। इस लिहाज से देखें तो भारत को अकेले 2017 में ही करीब 2.62 अरब रुपयों की क्षति (प्रति व्यक्ति प्रतिदिन नौ डॉलर की कमाई के अनुमान के आधार पर) हुई है।

इसी तरह ‘यूएन मोटरसाइकिल हेलमेट स्टडी’ के आंकड़ों के अनुसार प्रतिवर्ष दस में से चार मोटरसाइकिल चालकों की मौत इस वजह से होती है क्योंकि वे बाइक चलाते वक्त हेलमेट का प्रयोग नहीं करते हैं। इस वजह से हर साल करीब 15,000 बाइकर्स की मौत हो जाती है।

इससे देश को 30 करोड़ का नुकसान होता है। (प्रति व्यक्ति प्रतिदिन नौ डॉलर की कमाई के अनुमान के आधार पर) इस रिपेार्ट में बताया गया है कि कार चालकों की तुलना में मोटरसाइकिल चालकों के मौत की 26 गुना अधिक संभावना होती है। हेलमेट का उपयोग करके इस आंकड़े को 42 फीसदी तक बढ़ाया जा सकता है और 69 फीसदी दुर्घटनाओं से भी बचा जा सकता है।

इन आंकड़ों के मद्देनज़र इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि रोड सेफ्टी एक गंभीर और विचारणीय मसला है। इससे बचने के लिए निम्नांकित उपाय किए जा सकते हैं :

गाड़ियों के संबंध में

सड़कों के संबंध में

मानवीय कारक

कानून की दृष्टि से

दुर्घटना हो जाने की स्थिति में

Exit mobile version