Site icon Youth Ki Awaaz

“रोहित की पुण्यतिथि पर मुझे उनका खत याद आता है”

रोहित की पुण्यतिथि करीब आते ही मुझे उनका लिखा गया खत याद आता है। 17 जनवरी को उनकी पुण्यतिथि है और आज भी उनकी बातें दिमाग में घुमती हैं और उनके शब्द हमें झकझोरती हैं। उनके कुछ शब्द जो कि मुझे याद आते हैं वो हैं,

एक आदमी की कीमत उसकी तात्कालिक पहचान और नज़दीकी संभावना तक सीमित कर दी गई है, एक वोट तक। आदमी एक आंकड़ा बनकर रह गया है, एक वस्तु मात्र। कभी भी एक आदमी को उसके दिमाग से नहीं आंका गया।

उनका पत्र और उसमें लिखे गए शब्द उनके जीवन की वास्तविकता से हमारा परिचय करा गई। उनका परिचय जब हमसे हुआ तो महसूस हुआ कि सच में हमने आदमी में उसकी पहचान ढूंढने की कोशिश की है और यह पहचान तय होती है उसकी जाति से।

अगर हम बात करें कि उनके साथ ऐसा क्या हुआ जिसने उन्हें मजबूर किया यह कदम उठाने के लिए तो जवाब है, “जाति व्यवस्था और समाज के हर कोने में दलित वर्ग के साथ होने वाले अन्याय”

रोहित वेमुला

उनका चला जाना दुनिया से कई सवाल पूछता है और जाति व्यवस्था पर आज भी आपका यकीन पक्का करता है। आज भी दलित वर्ग के छात्रों का पढ़ना आसान नहीं, स्कूल व विश्वविद्यालयों में उनकी जगह तो बन गई लेकिन सामाजिक दृष्टि से वे आज भी पिछड़े हैं। वह अपने परिवार में पहले व्यक्ति थे जो कि पीएचडी कर रहे थे साथ ही उन्हें विश्वविद्यायल में पढ़ने का मौका मिला, साथ ही उन्हें दो स्कॉलरशिप भी मिली थी। वह एक प्रेरणास्त्रोत थे, जिन्हें शायद सामाजिक दृष्टिकोण व विश्वविद्यालय की घटिया राजनीति का सामना करना पड़ा।

और पढ़ें: रोहित वेमुला मरा नहीं करते, वे तो बीज हैं, पौधों की तरह उग आते हैं

जाति व्यवस्था की कुरीतियों ने ही उनकी जान ली यह बात उनका लिखा गया खत हमें समझाकर चला गया। वह यह भी बताकर चला गया कि आज भी शिक्षा जाति की जंज़ीरें तोड़ने में विफल साबित हो रही है। आज भी दलित छात्र-छात्राओं की संख्या घट रही हैं, विश्वविद्यालयों, कॉलेजों में उनका शोषण किया जा रहा है।

इस सूची में रोहित पहला नाम नहीं था

क्या रोहित वेमुला छात्रों की सूची में पहले थे तो इसका जवाब है नहीं। समाज में कितने दलित स्टूडेंट असमानता की भेंट चढ़ रहे हैं। रोहित डॉक्टर भीम राव अम्बेडकर के सपनों को आगे लेकर जाना चाहते थे लेकिन क्या अम्बेडकर जी के सिद्धांत मनुस्मृति की राजनीति में सांस ले सकते हैं। वह संविधान के निर्माता कहे जाते हैं लेकिन क्या दलित वर्ग आज सुखी है? क्या वह शिक्षा पा रहा है? इन सभी पहलुओं और बातों के बीच रोहित को भावपूर्ण श्रद्धांजलि और आशा है यह समाज एक और रोहित ना देखे व राधिका अम्मा को न्याय की लड़ाई में संघर्ष करने की शक्ति दे और उनका साहस ऐसे ही बना रहे।

Exit mobile version