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“इस देश में मुसलमानों को बड़ी आसानी से देशद्रोही सिद्ध कर दिया जाता है”

कुछ दिनों पहले मशहूर अभिनेता नसीरुद्दीन शाह ने एक तथाकथित विवादित बयान दिया था, “उन्हें भारत में डर लगता है”। इसपर विश्व के जाने-माने अर्थशास्त्री और नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन ने 6 जनवरी को कोलकाता में एक कार्यक्रम के दौरान नसीरुद्दीन शाह का समर्थन करते हुए कहा कि सोचने की शक्ति की कमी के कारण असहिष्णुता है।

उन्होंने आगे कहा कि यह क्या हो रहा है इस देश में? यह सब रुकना चाहिए और अभिनेता को परेशान करने वालों के खिलाफ प्रदर्शन होना चाहिए। आज यह सिर्फ नसीरुद्दीन शाह के साथ नहीं हो रहा है, आज पूरे देश के मुसलमानों की देशभक्ति पर प्रश्न चिन्ह लगा है और उनके प्रति नफरत दिन प्रति दिन बढ़ती ही जा रही है।

मुसलमानों से नफरत का एक किस्सा सुनाता हूं जो मेरे साथ हुआ था, उस गुजरात में जिस गुजरात मॉडल की बात करके नरेंद्र मोदी केंद्र की सत्ता में आए थे। 2017 नवंबर में जब गुजरात विधानसभा चुनाव अपने चरम पर था तब मैं और मेरे दो और मित्र गुजरात गए थे, माहौल देखने और एक रिपोर्ट तैयार करने के लिए।

तीनों लोग अहमदाबाद की एलिस ब्रिज विधानसभा में पहुंचे और अलग-अलग बंटकर लोगों का इंटरव्यू करने लगे। मैं सड़क के किनारे बैठे एक पंक्चर बनाने वाले से बातचीत कर उसे अपने फोन से रिकॉर्ड कर रहा था। ये सारी घटना सड़क के उस पार बैठा एक बड़ा फल व्यापारी देख रहा था। वह सड़क पार करके हमारे पास आया और मुझे घूरने लगा और बातें सुनता रहा।

उस वक्त मेरा हुलिया एक तथाकथित मुस्लिम जैसा था। उसने अचानक चिल्लाते हुए मेरा आई कार्ड मांगना शुरू किया और जब मैंने उससे उसके अधिकार पूछे तो चिल्लाकर उसने भीड़ इकट्ठा कर ली। अब एक 30-40 लोगों का समूह चिल्लाकर मुझसे आई कार्ड मांग रहा था। मैं डर गया और अपना आई कार्ड दिखाया और जब उन्होंने मेरा नाम आकाश “पांडेय” पाया तब जाकर मैं वहां से निकला। यह तो मेरा व्यक्तिगत अनुभव है।

जिस गुजरात मॉडल की बात प्रधानमंत्री किया करते थे वह यही है कि लोगों को एक खास धर्म के खिलाफ भड़काकर उन्हें भीड़ में तब्दील कर दो जिसका नतीजा हम सब 2002 का गुजरात दंगे के रूप में देख चुके हैं। खैर, बात नसीर साहब की करते हैं। नसीरुद्दीन शाह का मुसलमान होना उनके देशद्रोही होने का एकमात्र और पुख्ता सबूत है, उन ट्रोलरों के लिए जिनको नसीर साहब की कला, उनके योगदान और उनके सम्मान से कोई लेना देना नहीं है और ऐसे ट्रोलरों को हमारे देश के प्रधानमंत्री फॉलो करते हैं और हमारे देश के मंत्री तो खुद ही ट्रोलरों की भूमिका अख्तियार कर लेते हैं।

वे यह भूल जाते हैं कि भारत की संस्कृति हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन आदि सबसे मिलकर बनती है। वे भारत की यह परिभाषा भूल जाते हैं जिसमें कहा गया है-

“उत्तरत यत्र समुद्रस्य , हिमाद्रे सर्व दक्षिणम्

वर्ष तद भारतं नाम, भारती यत्र संस्कृतम।।”

अर्थात, हिंद महासागर के उत्तर और हिमायत के दक्षिण का भूभाग भारत है और यहां की संस्कृति, भारतीय है। इसमें कहीं भी हिन्दू, मुस्लिम आदि का ज़िक्र नहीं किया गया है लेकिन नसीर साहब के मामले में सबसे ज़्यादा दोष मीडिया के कुछ घरानों का है जो अपनी दुकान चलाने और अपनी महत्त्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए समाज के समरसता पूर्ण ताने-बाने को तहस नहस करने वालों के साथ कंधे-से-कंधा मिलाकर चल रहे हैं। कुछ पत्रकार तो पत्रकारिता छोड़ चाटुकारिता में लगे हैं।

क्या कहा था नसीरुद्दीन शाह ने

आइए जब अमर्त्य सेन ने यह बात कही ही है तो हमें यह भी जान लेना चाहिए कि वाकई में नसीरुद्दीन शाह ने क्या कहा था, जिसे कुछ मीडिया ग्रुप्स ने इस भड़काऊ शीर्षक के साथ चलाया था, “नसीरुद्दीन शाह ने कहा उन्हें देश में लगता है डर।”

नसीर साहब ने कहा था,

मेरी धार्मिक तालीम हुई थी जबकि मेरी पत्नी रत्ना एक लिबरल परिवार से आती हैं। अतः मैंने अपने बच्चों को किसी भी धर्म की तालीम नहीं दी। मुझे फिक्र है कि जब भीड़ मेरे बच्चों से उनका धर्म पूछेगी तो वे क्या जवाब देंगे? मुझे ऐसे हालात से डर नहीं लगता बस गुस्सा आता है।

अब वे लोग यह बताएं कि नसीर साहब ने कहां कहा है कि उन्हें भारत में डर लगता है? ये बातें वे लोग फैला रहे हैं जिन्हें भारत की गंगा-जमुनी तहज़ीब से समस्या है, जिन्हें धर्म के नाम पर दंगे करवाकर चुनावों में वोट लेने हैं, जिन्हें अपने धर्म को दूसरे धर्म से श्रेष्ठ सिद्ध करना है, जिनके मन में दूसरे धर्म के लोगों के प्रति नफरत है।

नसीर साहब ने उन बातों के साथ यह बात भी कही थी,

ऐसे माहौल में जहां गाय के नाम पर इंसानों का कत्लेआम किया जा रहा है, जहां गाय के नाम पुलिस को भी मार दिया जा रहा है अपने बच्चों की फिक्र होती है।

इन बातों में कहीं भी नसीरुद्दीन शाह ने यह नहीं कहा है कि उन्हें भारत में डर लगता है।

यह सब सत्तारूढ़ पार्टी के इशारे पर सत्ता के हाथों की कठपुतली बन चुके मीडिया हाउसों द्वारा फैलाया गया। इसमें केंद्र सरकार के मंत्री से लेकर सत्तारूढ़ पार्टी के प्रवक्ता तक सब नसीर साहब पर खूंखार भेड़ियों की भांति टूट पड़े और उन्हें देशद्रोही सिद्ध करने लगे। ये वही लोग हैं जो आज़ादी के समय अंग्रेज़ों की गोद में बैठकर उनके साथ चाय पर चर्चा किया करते थे। इन्होंने नसीरुद्दीन शाह को निशाना इसलिए बनाया क्योंकि वह मुसलमान हैं और इस देश में मुसलमानों को देशद्रोही सिद्ध करने में ज़रा भी वक्त नहीं लगता है।

इसके बाद तो नसीर साहब के साथ जो हुआ उससे पूरा देश वाकिफ है। उन्हें देशद्रोही, पाकिस्तान परस्त, गद्दार जैसी उपाधियों से नवाज़ दिया गया, साथ-ही-साथ पाकिस्तान जाने की सलाह तक दी जाने लगी। एक छुटभैया संगठन उत्तर प्रदेश नवनिर्माण सेना ने तो उनके पाकिस्तान जाने तक का टिकट बुक कर दिया।

इस देश में क्या है नसीर साहब की उपलब्धियां

एक नज़र नसीर साहब की उपलब्धियों पर भी डाल लेना चाहिए, जो उन्होंने अपनी मेहनत से इस मुल्क में अर्जित की है और अपनी लगन और परिश्रम के बलबूते फिल्मी दुनिया में अपना वह मुकाम बनाया है जो बहुत ही कम अभिनेताओं को मिलता है।

नसीर साहब को सन् 1981, 1982 और 1984 तीन बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्मफेयर अवॉर्ड मिल चुका है। उन्हें सन 1979, 1984 और 2006 में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाज़ा गया है। सन 2000 में उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है। इनको 1987 में पद्म श्री और 2003 में पद्म भूषण से भी नवाज़ा जा चुका है।

जिस इंसान ने अपनी मेहनत से और इस मुल्क के लोगों के प्यार की बदौलत एक अलग मुकाम हासिल की हो उसके ऊपर इस तरह के आरोप बिना उसकी पूरी बात सुने लगाना उसके साथ अन्याय होगा।

अमर्त्य सेन ने सही ही कहा है कि सोचने की शक्ति की कमी के कारण असहिष्णुता है क्योंकि लोग अब सोचते नहीं हैं। टीवी पर चीज़ों को जिस तरह से दिखा दिया गया, ठीक उसी तरह ग्रहण करके लोग एक निर्णय पर पहुंच जा रहे हैं।

सोशल मीडिया पर ट्रोलरों की फौज तैयार है हमेशा किसी को भी देशद्रोही साबित करने के लिए। आज सुबह अमर्त्य सेन ने ये बातें कही हैं तब से ही ट्रोल्स उन्हें नक्सली, देशद्रोही सिद्ध करने में लगे हैं, क्योंकि लोगों ने सोचना बंद कर दिया है, समझना बंद कर दिया है। उनको टीवी के माध्यम से मुद्दों के नाम पर हमेशा हिंदू मुस्लिम ही दिया जा रहा है।

आज यह जो दौर बना दिया गया है सत्ताधारी पार्टी द्वारा, जहां गाय की जान अब इंसानों की जान से ज़्यादा कीमती है। उसके लिए वे पहलू खान, अफराजुल ,अखलाक, इंस्पेक्टर सुबोध सिंह आदि का खून बहाने को भी तैयार हैं और इन सब अत्याचारों के खिलाफ जो भी आवाज़ उठाएगा उसे देशद्रोही,गद्दार घोषित कर दिया जाएगा या मार दिया जाएगा।

अमर्त्य सेन ने जो बात कही है कि अभिनेता को परेशान करने वालों के खिलाफ प्रदर्शन होना चाहिए उस बात से इस मुल्क का हर अमन पसंद व्यक्ति सहमत होगा क्योंकि इस मुल्क की तहज़ीब, सभ्यता को नष्ट करके वो मुल्क को अशांति की राह पर ले जा रहे हैं और अमन पसंद लोगों को उनके खिलाफ प्रदर्शन करके उनको रोकने की कोशिश करनी चाहिए ताकि हमारे देश में अमन-चैन बना रहे।

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नोट- आकाश पांडेय YKA के जनवरी-मार्च  2019 बैच के इंटर्न हैं।

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