Site icon Youth Ki Awaaz

रफाल : शक अब भी बाकी है

Dr. Ved Pratap Vaidik Editorial On Rafale Deal Controversy In Hindihttps://www.talentedindia.co.in/article/dr-vedpratap-vaidik-editorial-in-hindi-on-rafale-dealरफाल सौदे पर महालेखानियंत्रक की रपट संसद में पेश क्या हुई, उजाला और अंधेरा एक साथ हो गया है। सरकार के लोग अपनी पीठ खुद ही यह कहते हुए थपथपा रहे हैं कि इस रपट के मुताबिक मनमोहन सरकार जिस दाम पर यह विमान खरीद रही थी, मोदी सरकार ने वह सौदा 2.86 प्रतिशत सस्ते में किया है| वहीं विरोधी इसी रपट के कई अंश निकाल-निकालकर बता रहे हैं कि हमारी सरकार ने रफाल-सौदे में फ्रांसीसी सरकार और दासौ कंपनी के आगे कैसे घुटने टेके हैं। 12 साल से चल रही यह सौदेबाजी बोफोर्स की तोपों से भी ज्यादा गाली-गलौज पैदा कर रही है।

मोदी-मनमोहन, दोनों सरकारें अपनी-अपनी छवि बचाने की कोशिश कर रही हैं, लेकिन दोनों पार्टियां कांग्रेस और भाजपा देश को यह ठीक से बता नहीं पा रही हैं कि अरबों-खरबों रुपए के ये रक्षा-सौदे साफ-सुथरे क्यों नहीं हो सकते हैं? उनमें इतना लंबा समय क्यों लगता है ?

सरकार यह क्यों नहीं बता पा रही है कि उसने 500 करोड़ का जहाज 1600 करोड़ रु. में क्यों खरीदा ? इसमें महालेखानियंत्रक के सहारे की ज़रूरत ही क्या है ? पिछले 12 साल में मंहगाई और डॉलर या यूरो की कीमत कितनी बढ़ी ? उस जहाज में क्या-क्या नए यंत्र या हथियार जोड़े गए ? इस बढ़ी हुई कीमत के पीछे यदि कोई प्रतिरक्षा संबंधी रहस्य हैं तो उन्हें सरकार ज़रूर प्रकट न करें, लेकिन इस कीमत को सही ठहराने के लिए यदि वह इस रपट का टेका लेना ज़रूरी समझती है तो अपने इरादों पर वह खुद ही शक पैदा कर रही है।
यह शक तब और भी गाढ़ा हो जाता है, जब इस सौदे के भारतीय कर्णधार के तौर पर अनिल अंबानी की कंपनी का नाम आता है। ऐसी कंपनी, जिसे प्रतिरक्षा-उत्पादन का क ख ग भी पता नहीं। कुछ फ्रांसीसी अखबारों और ‘हिंदू’- जैसे भारतीय अखबार ने इस सौदे की इतनी अंदरुनी परतें उखाड़कर रख दी हैं कि यदि राहुल गांधी (बोफोर्सवाला परिवार) की जगह विश्वनाथ प्रताप सिंह या चंद्रशेखर जैसा कोई नेता आज विपक्ष में होता तो चुनाव के पहले ही मोदी सरकार की बखिया उधड़ जाती।
Exit mobile version