CBI Vs Mamata Banerjee : ममता की नौटंकी का समापन
खबर यह है कि सर्वोच्च न्यायालय ने उत्तरप्रदेश के मुख्य सचिव अनूपचंद्र पांडेय को अदालत की बेइज्जती करने का नोटिस भेजा है। उप्र सरकार ने अदालत की बेइज्ज़ती कैसे की है? इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 18 अगस्त 2015 को एक आदेश जारी किया था, जिसके मुताबिक प्रदेश के सभी चुने हुए जनप्रतिनिधियों, सरकारी कर्मचारियों और न्यायपालिका के सदस्यों के बच्चों को अनिवार्य रूप से सरकारी स्कूलों में ही पढ़ना पड़ेगा।
अदालत ने यह भी कहा था कि इस नियम का उल्लंघन करने वालों के लिए सज़ा का प्रावधान किया जाए। सरकार से वेतन पाने वाला कोई भी व्यक्ति अपने बच्चों को यदि किसी निजी स्कूल में पढ़ाता है तो वहां भरी जाने वाली फीस के बराबर राशि वह सरकार में जमा करवाएगा और उसकी वेतनवृद्धि और पदोन्नति भी रोकी जा सकती है।
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इस आदेश का पालन करने के लिए अदालत ने छह माह का समय दिया था, लेकिन साढ़े तीन साल निकल गए। न तो अखिलेश यादव और न ही योगी आदित्यनाथ की सरकार ने कोई कदम उठाया। अब शिवकुमार त्रिपाठी नामक एक प्रबुद्ध नागरिक की याचिका पर देश की सबसे बड़ी अदालत ने उप्र के मुख्य सचिव को कठघरे में खड़ा किया है।
आप पूछ सकते हैं कि इस फैसले से मैं इतना खुश क्यों हूं क्योंकि यह सुझाव 2015 में मैंने अपने एक लेख में दिया था। बाद में मुझे पता चला कि उस लेख को उन न्यायाधीशों ने भी पढ़ा था। उसमें मैंने सरकारी लोगों के इलाज के मामले में भी यही नियम लागू करने की बात कही थी। मैं हमेशा कहता हूं कि विचार की शक्ति परमाणु बम से भी ज्यादा होती है। यदि शिक्षा और स्वास्थ्य के मामलों में मेरे इस विचार को सरकारें लागू कर दें तो भारत के स्कूलों और अस्पतालों की हालत रातोंरात सुधर सकती है। शिक्षा से मन प्रबल होता है और स्वास्थ्य रक्षा से तन सबल होता है। ऐसे प्रबल और सबल राष्ट्र को विश्व की महाशक्ति बनने से कौन रोक सकता है?