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भारत प्रसन्नता के मामले में 133 वें स्थान पर, आख़िर क्यों?

एक समृद्ध जीवन की महत्वपूर्ण जरूरत ‘प्रसन्नता’ होती है। व्यक्ति प्रसन्नचित्त होकर ही किसी भी कार्य में अपनी शत प्रतिशत ऊर्जा लगा सकता है। एक प्रसन्न व्यक्ति प्रसन्न समाज का निर्माण करता है और एक प्रसन्न समाज प्रसन्न देश का निर्माण करता है। World Happiness Report के अनुसार, भारत को 156 देशों में से प्रसन्नता के मामले में 133वां स्थान प्राप्त हुआ है जो कि पाकिस्तान एवं नेपाल जैसे अदने देशों से भी पीछे है। आँकड़े निराशाजनक और डराने वाले है।  बात सत्य है कि पिछले कुछ दिनों में भारत की जीडीपी में वृद्धि हुई है लेकिन क्या इस देश में उन लोगों की खुशियाँ जरूरी नहीं जिनके द्वारा इस देश की जीडीपी बढ़ी है? किसी भी देश की मानसिक प्रसन्नता के बिना उस देश की समृद्धि अधूरी है। कुछ निम्नलिखित मापदंड है जिनके आधार पर किसी भी देश की प्रसन्नता का आंकलन किया जा सकता है- (1)पर कैपिटा जीडीपी (2)स्वस्थ जीवन (3)आशा(4)स्वतंत्रता(5)विश्वास(6)सामाजिक समर्थन और उदारता। पिछले कुछ वर्षों में भारत दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं की श्रेणी में चोटी पर शुमार है। लेकिन देश में बेरोजगारी की समस्या जस की तस बनी हुई है। इसके इतर अन्य मामलों में या तो लोगों को अपना मनपसंद रोजगार नहीं मिला है या उनकी मेहनत का उचित मूल्य नहीं मिला है। इन सबके चलते भारत तेज़ी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था के बावजूद ख़ुश नहीं है। इसके साथ ही व्यक्ति की प्रसन्नता में स्वतंत्रता,विश्वास और उदारता भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। भ्रष्टाचार के चलते राज्य के प्रति नागरिक के मन में अविश्वास की स्थिति उत्पन्न हुई है। भारत एक लोकतांत्रिक राष्ट्र है लेकिन इस देश में इस में स्वतंत्रता अक्सर आर्थिक या सामाजिक रूप से उच्च वर्ग के लोगों का विशेषाधिकार होती है। कई बार आर्थिक एवं सामाजिक रूप से पिछड़ा वर्ग अपनी जरूरतों को पूरा नहीं कर पाता है। भारत एक उदार देश था लेकिन सामयिक हिंसाओं को देखते हुए अब इसके उदार होने की बात कहना कहीं ना कहीं खोखली लगती है। सत्ता पाने के लालच ने लोगों के भीतर सांप्रदायिक,जातीय एवं क्षेत्रीय घृणाएँ भर दी है। हमारे देश में नरेगा जैसी योजनाएं तो है लेकिन सामाजिक सुरक्षा की भारी कमी है। विश्व की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था में जब किसान को उसकी फसल का उचित दाम नहीं मिलता है तो वह आत्महत्या करने पर मजबूर हो जाता है। यह इंगित करता है कि भारत भौतिक रूप से समृद्ध होने के बावजूद मानसिक रूप से बेहद दुःखी है। इस देश का युवा डिग्रीयाँ लेकर तो बैठा है लेकिन रोजगार नहीं है। एक अनार, सौ बीमार की स्थिति है। ऐसे में युवा का घोर निराशा में डूब जाना स्वाभाविक है। भारत का अधिकतर वैश्विक स्वास्थ्य मापदंड की रिपोर्टों में भी बेहतर प्रदर्शन नहीं है। जब लोगों के पास रोजगार नहीं होगा, बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं होंगी, जीवन यापन हेतु उपयुक्त धन नहीं कमा पाएंगे, एक-दूसरे के प्रति मन में घृणा होगी, राज्य पर विश्वास नहीं कर पाएंगे और अपनी पसंद चुनने की स्वतंत्रता नहीं होगी फिर वह राष्ट्र कैसे खुश रह पाएगा? हमें अपने देश की प्रसन्नता पर आत्म चिंतन करने की जरुरत है एवं कुछ नीतियों एवं कुछ बदलावों की जरुरत है। तस्वीर साभार- Pinterest

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