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2019 चुनाव में बिहार के युवा किन मुद्दों पर वोट देंगे?

बिहार देश का एक ऐसा राज्य है जो भारत में सबसे ज़्यादा आईएएस देने के लिए जाना जाता है। बिहार के लोग अपनी मेहनत के लिए देश में ही नहीं विदेशों में भी जाने जाते हैं। देश के किसी भी कोने में आपको बिहारी दिख जाएंगे जो अपनी मेहनत की बदौलत कमाते खाते हैं। बिहार के लोगों बहुत सीधे-सादे, मेहनती और मृदुभाषी होते हैं लेकिन ऐसा क्यों है कि ये सीधे-सादे लोग अपने घर से हज़ारों किमी दूर रोज़गार के लिए जाने के लिए मजबूर हैं? ऐसा क्यों है कि इन लोगों को अपना घर-परिवार छोड़कर दो वक्त की रोटी के जुगाड़ में दूर जाना पड़ता है?

मनीष बिहार के आरा ज़िले का रहने वाला है, जो दिल्ली में एक रेस्टोरेंट में वेटर की नौकरी करता है। उससे बातचीत से पता चला कि वह इंटरमीडिएट तक पढ़ा है। वह आगे कहता है कि मजबूरी क्या नहीं करवाती है आपसे? वह बताता है कि परिवार की स्थिति खराब होने के कारण वह आगे नहीं पढ़ सका और अभी बहन की शादी भी करनी है, बिहार में नौकरी नहीं थी तो मजबूरी में दिल्ली में परिवार से दूर आकर नौकरी करना पड़ता है। उसने कहा कि वह पिछले एक साल से घर ही नहीं गया। उसका परिवार गांव में ही रहता है और वह दिल्ली में नौकरी करता है।

बिहार में बेरोज़गारी एक बहुत बड़ी समस्या है, जिसके कारण लोग पलायन कर रहे हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार बिहार की जनसंख्या 104 मिलियन अर्थात दस करोड़ चालीस लाख के लगभग है, इसमें भी 28 मिलियन युवा जो 15 से 30 वर्ष के बीच के हैं। यह पूरी बिहार की आबादी का 27% है, जबकि पूरे देश के बेरोज़गारी का 30% है। सबसे दुखद बात है कि बिहार में पढ़े लिखे युवाओं के बीच बेरोज़गारी दर सबसे ज़्यादा अर्थात 25.7% है।

यह आंकड़े दर्शाते हैं कि बिहार में युवाओं का बहुत बड़ा तबका रोज़गार के लिए दर-दर भटकता रहा है। आज बिहार में उद्योग धंधे ना के बराबर हैं। आज बिहार का पढ़ा लिखा युवा वर्ग दूसरे राज्यों में जाकर काम करने के लिए मजबूर है। लेबर डाटा के अनुसार बिहार में 30 वर्ष के ऊपर वाले लोगों में बेरोज़गारी दर 1.4% है जो कि राष्ट्रीय दल के बराबर है। यह लोग मज़दूरी करने के लिए मजबूर होते हैं या कोई छोटी-मोटी प्राइवेट नौकरी करने के लिए मजबूर होते हैं, जिसमें उनका भयंकर शोषण होता है।

फोटो प्रतीकात्मका है। सोर्स- Getty

बिहार में युवा सबसे अधिक 45.2% कृषि पर निर्भर हैं लेकिन आज बिहार के कृषि की स्थिति किसी से छुपी नहीं है। आज कृषि किसी के लिए घाटे के सौदे के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। बिहार में ना तो सिंचाई की अच्छी व्यवस्था है और ना ही बाढ़ से फसल को बचाने के लिए कोई उचित व्यवस्था है। ऐसी स्थिति में युवा कृषि में भी नाकामी हासिल कर रहा है, जिससे वो अपने चारों तरफ अंधकार महसूस कर रहा है।

दूसरे देशों में होने वाले पलायनों में बिहार दूसरे स्थान पर

बिहार के पास लगभग चार हज़ार उद्योग हैं, जिनकी हालत बहुत ही खस्ता है। यह उद्योग बिहार की जनता को पूरा रोज़गार नहीं दे पाते, जिसके कारण एक बहुत बड़ी मात्रा में लोग बिहार से रोज़गार की तलाश में पलायन कर रहे हैं। बिहार में माइग्रेशन 1999-2000 में 17%, 2007-2008 में 26% तथा 2016-2017 में 31% तक पहुंच गया है। आज बिहार से पढ़ा लिखा युवा बड़ी तेज़ी से रोज़गार की तलाश में पलायन कर रहा है। इसमें पुरुषों का पलायन काफी तेज़ है। बिहार में पुरुषों के साथ ही साथ महिलाओं का भी पलायन भयंकर तेज़ी से हो रहा है जो 48-60% है।

दूसरे देशों में होने वाले पलायनों में बिहार दूसरे स्थान पर है। पहले स्थान पर उत्तर प्रदेश है। देश से बाहर ज़्यादातर पलायन खाड़ी देशों जैसे-अरब, कुवैत आदि देशों में होता है, जहां ज़्यादा तेल का उद्योग है और वहीं काम की खोज में लोग जाते हैं। इन लोगों में ज़्यादातर गरीब, कम पढ़े-लिखे लोग होते हैं, जो मज़दूर बनकर जाते हैं। ये लोग सालों-सालों तक अपने परिवार से दूर रहते हैं।

पलायन को रोकने के लिए इन क्षेत्रों में करना होगा काम

बेरोज़गारी और पलायन को कैसे रोका जाए जब इसके बारे में हम सोचने लगे तो अपने सीनियर रिसर्च स्कॉलर जो काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से संबद्ध हैं, से बातचीत की। बात से निष्कर्ष यही निकला जब तक बिहार में कृषि व्यवस्था को सुदृढ़ नहीं किया जाएगा, उद्यमों में वृद्धि नहीं की जाएगी, जब तक शिक्षा की गुणवत्ता, स्वास्थ्य सुविधाओं की गुणवत्ता में वृद्धि नहीं की जाएगी तब तक कुछ भी परिवर्तन संभव नहीं है। क्योंकि सारी चीज़ें एक-दूसरे से आपस में जुड़ी हुई हैं। यदि इनमें से एक भी गड़बड़ होगा तो पूरा तंत्र ही बिगड़ जाएगा। अतः हमें शिक्षा, स्वास्थ्य, रोज़गार तथा कृषि पर एक साथ काम करना होगा। बिहार में उद्योग धंधे लगाने होंगे।

बिहार में उद्योग धंधों की संभावना बहुत अधिक है। बिहार की आबादी पूरे देश की आबादी का 8% है जबकि इसके वर्कफोर्स का 1% से ज़्यादा सप्लाई नहीं होता है। इसके लिए बिहार सरकार जो अब तक सोई हुई है उसको जागना होगा। बिहार में कृषि की बदतर हालत को जल्द से जल्द सुधारना होगा क्योंकि युवाओं का एक बहुत बड़ा हिस्सा कृषि से जुड़ा है अतः सरकार को इन सब चीज़ों पर ध्यान देना होगा।

आगामी लोकसभा चुनावों में बिहार की जनता के लिए बेरोज़गारी और पलायन एक बहुत ही बड़ा मुद्दा होने वाला है। पिछली सरकारों को भी जनता को जवाब देना होगा कि उन्होंने इसको रोकने के लिए क्या किया है? यदि सही से देखा जाए तो बिहार में इन गंभीर समस्याओं को लेकर आजतक किसी भी सरकार ने चाहे वह केंद्र की हो या राज्य की, सही से काम नहीं किया है। चूंकि पिछले चुनाव में नरेंद्र मोदी ने बिहार के लिए बड़े-बड़े वादे किए थे, जिनमें से ये मुद्दे भी थे पर अब तक इन पर कोई ठोस कार्य नहीं हुआ है। अतः अब बिहार की जनता को सोचना होगा कि इस बार चुनाव में वह किसे चुनती है।

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नोट- आकाश पांडेय YKA के जनवरी-मार्च  2019 बैच के इंटर्न हैं।

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